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भारत के अतीत की कहानी

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
_________________________ भारत की सम्पन्नता और अंग्रेजों की कूटनीति______________

अंग्रेजों के आने के पहले हमारा देश एक संपन्न राष्ट्र था. यहाँ के लोग बहुत अमीर, खुशहाल, और मेहनती थे. आज़ादी के बाद हमारे कुछ नेताओं ने देश विदेश में जाकर अंग्रेजों के गुणगान करते हुए कहा कि हम लोग तो पिछले सैकड़ों सालों से अशिक्षित एवं गरीब थे, परन्तु अंग्रेंजों ने हमे शिक्षा, विज्ञान और उद्योग दिए तथा हमें सभ्य बनाया. यह हमारी गुलामी मानसिकता को दर्शाता था. यदि भारत गरीब होता तो अँगरेज़ 250 और पुर्तगाली 400 साल तक यहाँ क्यों रुकते तथा विदेशी आक्रमणकारी सिकंदर, तैमूरलंग, मोहम्मद गोरी, महमूद गज़नवी आदि आक्रमण करके यहाँ से सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात भारी मात्रा में लूट कर कैसे ले जाते ? सोमनाथजी का प्रसिद्ध मंदिर तो 17 बार लूटा गया था.यूरोप, इंग्लैंड और चाइना से लोग हमारे देश में भ्रमण करके अपने देश जाकर यहाँ के विकास और सम्पन्नता के बारे में लेख और दस्तावेजों द्वारा वर्णन करते थे जो आज भी वहां के सरकारी पुस्तकालयों और फाइलो में मौजूद हैं. 2 फरवरी 1835 को लार्ड मैकाले ने अपने देश की संसद की विदेशी समिति के सामने जो वर्णन किया था वह आँखे खोलने वाला था. उसने बताया था की 2 वर्ष तक उसने पूरब से पच्छिम और उत्तर से दक्षिण का विस्तृत भ्रमण किया और पाया कि वहां कोई भीख नहीं मांगता, कोई गरीब नहीं, बीमारी बहुत कम है तथा मजदूरी बहुत सस्ती है. वहां के घर सोने से भरे रहते हैं. भारत किसी वस्तु का आयात नहीं करता और वहां बेरोजगारी नहीं है. बहुत से घरों में सोने के सिक्के गिनने की वजाय तौल कर हिसाब रखते हैं. वहां के लोग सूर्य और चन्द्र गृहण और महीनों के समय की सही गणना सही ढंग से बहुत पहले कर लेते हैं. भारत को “सोने का सागर” कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी. ऐसे अमीर देश को न हम जीत सकते हैं न गुलाम बना सकते. जब भारत इतना समृद्ध था उस वक़्त अंग्रेजो के यहाँ खेती नहीं होती थी और कोई उद्योग नहीं थे. कोलकता से जो ज़हाज़ अमेरिका, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका जाते थे उनको लूटकर काम चलाते थे. लन्दन में भारत की तरह का हल 1760 में बनाया गया था.

देश की सम्पनता के पीछे शिक्षा के साथ उद्योग-व्यापार का बड़ा योगदान था. देश को निर्यात के बदले सोना मिलता था क्योंकि उसवक्त और कोई मुद्रा नहीं थी. देश की सम्पन्नता में ईश्वरीय वरदान भी अहम था. खेती के लिए यहाँ की मिट्टी विश्व में सर्वश्रेष्ठ थी. इसमें 18 विभिन्न तरह के खनिज अंश पाए जाते थे. जिसकी वज़ह से खूब फसल होती थी. पानी खूब मिलता था, सूर्य की रोशनी खूब उपलब्ध होती थी. विश्व के अन्य देशों में मात्र 2-3 तरह के जलवायु क्षेत्र होते थे जबकि हमारे यहाँ 16 तरह के होते हैं. एक-एक गाँव में 4-4 फसलें होती थीं और 2700 विभिन तरह के अन्न, फल, सब्जियां, फूल, वनस्पतियाँ आदि होती थीं. पूरे देश में 80000 से ज्यादा तरह की जड़ी बूटियां, फल, अनाज, 5000 तरह के आम और 2500 तरह के गन्ने पैदा होते थे. गाय का गोबर खाद के काम और गोमूत्र कीट नाशक के लिए इस्तेमाल किया जाता था. खेती के साथ साथ पशुपालन भी होता था जिससे ढूध, दही, मट्ठा घी की कमी नहीं होती थी. गांवों में विभिन्न तरह की हस्तकारियां विकसित की जाती थीं जिनका भी निर्यात किया जाता था. कहीं कहीं एक एक एकड़ में 56 क्विंटल धान होता था. भारत में करीब 732000 गाँव थे. देश में कई तरह की कपास होती थी जिससे कपड़ा बनाया जाता था जो विदेशों में निर्यात किया जाता था. यह कपडा बहुत उच्च कोटि का होता था जिसके बनाये परिधान विदेशों के समस्त राजघरानों में पहने जाते थे. रेशम से मलमल बनाई जाती थी और ढाके की मलमल विश्व प्रसिद्ध थी. कपड़ा इतना पतला होता था की 15 हाथ लम्बा कपड़ा अंगूठी के अन्दर से निकल जाता था. सूरत, ढाका, मालदा में रेशम बनाई जाती थी. अंग्रेजों के आने के 3000 वर्ष पहले ही कपड़ा बनना शुरू हो गया था.

10वीं सदी में भारत में लोहे का काम शुरू हुआ था. यहाँ लोहे के खनिज पदार्थ से बाद में उच्च कोटि का स्टील (डोमेक्स)बनाया जाने लगा. जो लोहे और कोयले के मिश्रण से बनाया जाता था जिससे पानी के जहाज़, युद्ध में काम आने वाले हथियार, बर्तन, खिलौने, सरिये आदि बनाये जाते थे. इस स्टील में जंग नहीं लगती थी और इससे बनाये सामान 100 वर्षों तक इस्तेमाल किये जा सकते थे. देश के बनाये ज़हाज़ यूरोप से एक चौथाई सस्ते होते थे, इसलिये यूरोप के देश भारत से पुराने जहाज़ खरीद कर उपयोग करते थे. गाँव गाँव में स्टील बनाने की भट्टियां होती थीं जिनमे कुछ रसायनों की मदद से 1500 डिग्री तक का तापक्रम पैदा किया जाता था जो लोहे को गलाने के काम आता था. यह भट्टियां आसानी से एक जगह से दूसरी जगह लाई जा सकती थीं. उस वक्त देश में 2000 फैक्ट्री 24 घंटे कार्य करती थीं. स्टील का काम झारखण्ड, वेस्ट बंगाल, ओडिशा, आसाम, गोवा, महाराष्ट्र में होता था. समुद्र के किनारे 2 लाख गांवों मे पानी के जहाज़ बनाने का काम होता था. महरोली में जो लौह स्तम्भ है वह भारतीय कारीगरी का उत्कृष्ट नमूना है जो खुले आकाश के नीचे सैकोड़ो वर्षों से बिना जंग के खडा है. देश में 27 तरह के खनिज पदार्थ पाए जाते थे.

इसके अलावा हमारे यहाँ पतली ईंटें बनाई जाती थीं जिसको चूने से जुड़ाई करके मकान और किले बनाये जाते थे जो 1000 वर्षो तक चल सकते थे और सीलन भी नहीं आती थी. विदेशों में बहुत से मकान, किले आदि इन्हीं ईटों से बने खंडहर के रूप में अभी भी देखे जा सकते हैं. इन पतली ईटों और चूने का भी निर्यात होता था. विभिन्न पेड़ो और बेलों से कागज़ भी बनाया जाता था. इन सब चीजों के निर्यात वजह से हम लोग बहुत संपन्न थे. 1833 में देश विश्व का 33% निर्यात करता था, 43% उत्पादन होता था और 27% आमदनी होती थी. देश की सम्पन्नता में शिक्षा का बहुत योगदान था. शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा था. दक्षिण भारत में 100% और उत्तर भारत में 97% साक्षरता दर थी. हर गाँव में कम से कम एक गुरुकुल होता था और किसी किसी गाँव में एक से ज्यादा भी होते थे. इनमे पढ़ाई सूर्योदय से सूर्यास्त तक होती थी. कोई फीस नहीं ली जाती थी. 5 साल 5 महीने और 5 दिन की उम्र के बच्चों को प्रवेश मिलता था तथा १४ साल तक शिक्षा दी जाती थी. सब बच्चों को गुरुकुल में रहना अनिवार्य था. गुरुकुलों के लिए जमीन गाँव वाले दान में देते थे और कुछ ज़मीन गुरुकुल के पास होती थी जिसपर खेती कर के गुरुकुल का खर्च चलाया जाता था. 18 विषयों की शिक्षा दी जाती थी जिसमे संस्कृत, हिंदी, वैदिक गणित, आध्यात्म, भौतिक, रसायन, जीव, धातु, नक्षत्र, सैन्य विज्ञान, ज्योतिषी शास्त्र मुख्य थे. गुरुकुल के बाद की शिक्षा के लिए कॉलेज और विश्वविद्यालय होते थे जिनमे शिक्षा के अलावा अनुसन्धान भी होते थे. 1822 में मद्रास प्रांत में 11375 कॉलेज और 104 विश्वविद्यालय थे. पूरे देश में 14000 कॉलेज थे और 500 से 525 विश्वविद्यालय थे. इनमे इंजीनियरिंग, चिकित्सा विज्ञानं, प्रबंधन, आयुर्वेद और सर्जरी की भी शिक्षा दी जाती थी. शिक्षा संस्थानों में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होता था. जबकि भारत में शिक्षा इतनी विकसित थी इंग्लैंड में आम बच्चों के लिए पहला स्कूल एक चर्च में 1868 में खोला गया था जिसमें धार्मिक शिक्षा दी जाती थी. परन्तु राजघरानो और अधिकारियों के लिए राजमहलो में शिक्षा की व्यवस्था थी. शिक्षा पद्धति में श्रेष्ठ होने की वजह से भारत विश्व गुरु कहलाता था. यूरोप और इंग्लैंड के लोग हमारे यहाँ आकर विभिन्न विषयों का मुफ्त में ज्ञान अर्जन करके उसे अपने देश में विकसित कर के अपने नाम से रजिस्टर्ड करवा लेते थे.

हमारे यहाँ दान का बहुत महत्व था जिसकी वजह से प्रत्येक नागरिक अपनी आय का कुछ प्रतिशत दान में देते थे. दक्षिणी भारत में उत्तपी शहर में एक मंदिर में पिछले 400 वर्षों से 75000 लोगों के लिए नित्य मुफ्त भोजन की व्यवस्था थी जो लोगो द्वारा दिए धन से की जाती थी. ऐसे सैकड़ों मंदिरों में मुफ्त भोजन की व्यवस्था होती थी. दक्षिण के कुछ गाँव में लोग गरीबों या अतिथियों को खिलाये बिना भोजन नहीं करते थे.

हमारी संपन्नता का पता इससे चलता है कि जब रोबर्ट क्लाईव 6 साल के शासन के बाद लन्दन लौटा तो अपने साथ 900 पानी के जहाज सोना, चांदी, हीरे, जवाराहत आदि से भर कर ले गया था. जिसकी अनुमानित कीमत 17-18 लाख करोड़ रुपये थी. इसी तरह 84 गवर्नर लूटते रहे. अंग्रेजो ने करीब 300 लाख करोड़ रुपये लूटे – कुछ टैक्स लगा कर और कुछ सामान ले जाकर. हमको बर्बाद करने के लिए अंग्रेजों ने सबसे पहले हमारी शिक्षा व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित कर अपनी शिक्षा शुरू की जिसका उद्देश्य उनकी सरकार की नीतियों के आधार पर विद्यार्थियों को तैयार करना था. इसमें मूल्यों की कोई जगह नहीं थी और मुख्य उद्देश्य नौकरी पाना था जो काले अंग्रेजों को पैदा करता था और हमारी संस्कृति, सभ्यता और धर्म को गलत ढंग से प्रचारित करके हम लोगों में हीनभावना पैदा करना था जिससे हम अपने अतीत के बारे में ज्यादा गर्व न कर सकें. इससे मानसिक गुलामी बढ़ती गयी.

कृषि और गाँव को नष्ट करने के लिए लगान शुरू किया जो 90% था और जमीन का मालिकाना हक खत्म कर दिया गया. लगान न देने पर पुलिस और सरकारी अधिकारी बुरी तरह प्रताड़ित करते, मारते और अत्याचार करते थे और ये सब गाँव में खुलेआम और महिलाओं के सामने किया जाता था. और महिलाओं की भी इज्ज़त सरे आम लूटी जाती थी. गायों को काटने के लिए कत्लखाने खोले गए और पहला कत्लखाना कलकत्ते में खोला गया. अंग्रेजों के समय 350 कत्लखाने थे जबकि अब 26000 से ज्यादा हैं. इससे गाँव में लोग गरीब होने लगे और बेरोजगारी बढ़ती गयी.

उद्योगों और व्यापार को खत्म करने के लिए विभिन्न तरह के टैक्स लगाये गए जिनसे व्यापारियों में डर बैठ गया. दिक्कतें आने लगीं, कर बचाने के लिए व्यापारियों ने झूठ बोलना शुरू किया, डर बैठ गया और फिर भ्रस्टाचार शुरू हो गया. कर वसूलने के लिए बहुत से ऑफिसर्स कलेक्टर, कमिश्नर, तहसीलदार, पटवारी की नियुक्ति की गयी जिससे व्यापारियों का उत्पीड़न शुरू हो गया क्योंकि इन ऑफिसर्स को कर वसूलने की पूरी आज़ादी थी. 34544 तरह के कानून बनाये गए जिनके नाम पर लूटमार, अत्याचार, उत्पीड़न और शोषण शुरू हो गया. कुछ कर जैसे 1840 में एक्साइज कर 350%, केंद्रीय व्यापार कर 180%, आयकर 97%, के अलावा सेल्स टैक्स, हाउस टैक्स, टोल टैक्स, निर्यात कर, बिल्डिंग टैक्स आदि 23 तरह के टैक्स लगा कर 90 वर्ष तक लूटते रहे. ऑफिसर्स की सहायता के लिए पुलिस फोर्स बनाया गया जिसको अत्याचार करने को व्यापक अधिकार दे दिए गए थे और उसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं सुनी जाती थी. इस व्यवस्था के चलते उत्पादन 5% रह गया. गांवों, व्यापार और उद्योगों के खत्म होने से हम गरीब होते गए और सम्पन्नता कम होती गयी और अँग्रेज और उनका देश संपन्न होता गया.

अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन में (1857 1947) 725000 भारतीय और 334000 अँग्रेज शहीद हुये. आज़ादी के बाद आबादी बढ़ती गयी और उसी के साथ बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी भी बढ़ती गयी. देश की स्वतंत्रता के बाद भी देश की हालत में ज्यादा सुधार नहीं हुआ क्योंकि केवल सत्ता का हस्तांतरण हुआ – व्यवस्था नहीं बदली. टैक्स 23 से बढ़ कर 64 हो गए. कानून, पुलिस और अधिकारिक व्यवस्था वैसी ही रही. इससे देश के बढ़ते भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही से हालत बहुत बिगड़ गयी. आज साक्षरता दर 50% है, 20% जनता भूखी सोती है, 40% स्कूलों में शौचालय नहीं हैं. कक्षा 1 से 6 के 50% बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं, 5 लाख गाँव में स्वच्छ पानी नहीं है, 75% गांवों में शौचालय नहीं हैं. 4 लाख गाँव में चिकित्सालय सुविधा नहीं है. गांवों में आदमी ज्यादा और काम कम होने से शहरों की तरफ पलायन शुरू हुआ जिससे शहरो की समस्या बद्रने लगी.

आज़ादी के बाद 63 वर्षो में एक अनुमान के अनुसार 258 लाख करोड़ रुपये देशवासियों ने विदेशी बैंको में जमा कर रखा है. यू.एन.ओ के अनुसार 86 सबसे गरीब देशों में भारत का नंबर 70वां है. इसके माने हमसे ज्यादा गरीब केवल 16 देश हैं. इस तरह हमारा संपन्न देश अंग्रेजों की चालाकी और कूटनीति से गरीब हो गया और अपनी सांस्कृतिक विरासत खो बैठा. उम्मीद थी कि आज़ादी के बाद हालत फिर टीक हो जायेंगे परन्तु नेताओं और अधिकारियों की बेईमानी और लालच से देश की हालत और खराब हो गयी. हालत में तभी सुधार सम्भव है जब देश की बागडोर किसी ऐसे नेता के हाथ होगी जिसमे देश को सही तरीके के दिशा निर्देश देने की काबिलियत हो और भ्रष्टाचार में सख्ती से लगाम लगा सके. अभी हॉल में ही लन्दन में एक परचर्चा अंग्रेजो के मुग़ल सम्राट जहाँगीर के दरवार में ४०० साल पुरे होने में हुई थी जिसमे प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक विल्लियम डेलरिपल ने पुरे अद्दिवेशन में कहा की मुग़ल कार्य में भारत इतना धनी  था की लन्दन, पेरिस, मेड्रिड, रोम, मिलान भी एक साथ मिलकर भी उसकी सम्ब्रिधी के मुकाबले कहीं खड़े नहीं थे. अँगरेज़ इसी लालच से भारत आये थेतोपखाने की ताकत के बूते हिंदुस्तान का पैसा लूट यूरोप पहुंचाया ब्रिटेन की खुशहाली भारत की बर्बादी से हुई.भारत को बर्बाद करके ही ब्रिटेन दुनिया में अपराजेय और शक्तिशाली बना था,यह निष्कर्ष छद्म सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में हुआ था.(जागरण २२ सितम्बर  २०१४)

रमेश अग्रवाल, कानपुर

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