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शिक्षक दिवस की सार्थकता

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम

हमारे देश में गुरु शिष्य परंपरा बहुत प्राचीन है.उसवक्त सबलोग चाये रजा का लड़का ही या साधारण घर का सबको गुरुकुलों में जा कर शिक्षा गृह्रण करनी पड़ती थी.अंग्रेजों के आने के पहले में देश में गुरुकुलों की परंपरा थी जहाँ रहकर गुरु शिष्यों का संपूर्ण विकास करके समाज और रास्त्र के लिए उपयोगी बनाते थे.इस तरह बच्चो में कोई भेद भाव नहीं होता था.इसीलिए देश बहुत संपन्न था परन्तु मैकाले ने देश में अंग्रेज़ी शाशन को स्थापित करने के लिए हमारी शिक्षा पद्धति को असैवाधानिक घोषित कर अंग्रेज़ी शिक्षा को हमारे ऊपर थोप दिया जिससे आज़ादी के बाद भी हम मुक्त नहीं हो सके.देश में बढ्रते हुए पब्लिक स्कूल और सहायता प्राप्त स्कूल की गिरती अवस्था बहुत ही चिंतनीय है.अब तो धीरे धीरे शिक्षा एक व्यापार का रूप ले चुकी है और शिक्षक पुरे व्यापारी हो गए हैं.स्वंतन्त्रता के कुछ सालो तक टीक था धीरे जबसे टीचर्स यूनियन बन गयी पुरी शिक्षा प्रणाली ध्वस्त हो गयी और सरकार ने पूरा ध्यान नहीं दिया.पहले शिष्यों का पूर्ण विकास हो कर उनके चरित्र और अनुशाशन पर पूरा ध्यान दिया जाता था परन्तु अब तो किसी तरह अच्छे अंक आकर नौकरी मिलना ही लक्ष्य है.उसके लिए शिक्षको द्वारा कोचिंग क्लासेज लगाना, tution करना और फिर नक़ल करवना, अंक बदवाना और  दूसरेश्जगाड़ लगाना ही उद्देश है.सहायता प्राप्त स्कूल जो किसी वक़्त बहुत अच्छी शिक्षा देते थे अब बिलकुल बेकार हो गए अध्यापक पढ़ाते नहीं हड़ताल में लगे रहते, बच्चे जाते नहीं और स्तर गिरता जा रहा है.हम १२ साल तक ऐसे ही स्कूल में पढ़ाई की थी और ६ साल इस तरह के स्कूल में पढ़ाई कार्य किया.और १० साल तक पब्लिक स्कूल में अध्यापन कार्य किया. तब  हालत (१९६२-६४) में बिगड़ने लगे थे खूब tution होती थी प्रैक्टिकल टीचर्स को जितनी पूजा उतने ही अच्छे मार्क्स फिर  नक़ल की शुरुहात हो चुकी थी.धीरे२  टीचर्स यूनियन बनी और टीचर्स हड़ताल पर जाने लगे आज  कल तो एक दो को छोड़ कर सब बेकार हो गए.पब्लिक स्कूल बढ़ते जा रहे जिनकी फीस बहुत ज्यादा है वाह पढ़ाने के लिए गलत कार्य माँ बाप द्वारा किये जाते उसके अलावा इन स्कूलओ में असामनता बहुत है.यहाँ पे भी tution को रोग बहुत ज्यादा है प्रैक्टिकल में नंबर लेने हो तो tution करो.इसके अलावा टीचर्स ख़ास कर महिलाये बच्चो से जन्मदिन के नाम पर खूब गिफ्ट्स इकट्टा करती है.इन स्कूल की मान्यता  दिल्ली बोर्ड से होती है जिनको परीक्षा में खूब मार्क्स मिलते है जब्को यू.पी बोर्ड के विद्यार्थिओं को कम .यदपि यू पी बोर्ड ने भी दिल्ली बोर्ड्स की नक़ल करनी शुरू कर दी उससे स्तर गिर गया  क्योंकि स्कूल में पढ़ाई नहीं होती उसके साथ नक़ल भी खूब होती है.जब तक शिक्षा पर नयी नीति नहीं बनती और tution पर रोक नहीं लगती कोई सुधार नहीं हो सकता.आज कल तो क्लास ८ के बच्चो को आई.टी.टी.की कोचिंग की शुरुहात हो जाते है जिससे उस पर भोझ के साथ उसका क्लास में मून नहीं लगता.अच्छी शिक्षा रास्त्र की धरोहर है और अनुशाशन हीनता ख़राब शिक्षा का परिणाम है.पहले शिक्षा चरित्र बनाने  के साथ रोज़क प्रेदक होती थी और विद्यार्थी का संपूर्ण विकास होता था जो आजकल  केवल नौकरी तक सीमिति है.५ सितम्बर को पुरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.यह दिन हमारे पूर्व राष्ट्रपति भारतीय दर्शन ,धर्म और संस्कृत के महान विद्वान डॉक्टर. राधाक्रिश्नंजी का जन्मदिन था इस दिन की शुरुहात १९६२ से शुरू हुयी जब उनके शिष्य उनसे उनके जन्मदिन मानाने के लिए आगया मांगने के लिए गए तब उन्होंने इसे शिक्षक (टीचर्स)दिवस के मनाने के लिए कह तबसे इस दिन को मानना शुरू हुआ.इस दिन प्रदेश,रास्ट्रीय जिले स्तर पर विशिस्ट शिक्षको को उनके अच्चे कार्य के आधार पर पुरस्कृत किया जाता है .पब्लिक स्चूल्स में अच्छी तरह मनाया जाता है जहाँ स्कूल प्रबंधक हर टीचर्स को कोई तोहफा देते हैं और विद्यार्थी कुछ प्रोग्राम करते हैं इस दिन भी जुगाडू लोग अपने लिए बच्चों से स्पेशल गिफ्ट का इंतजाम कर लेते हैं.शीषक दिवस जिस उद्देश्य से मनाया जाना चाइये वो पूरा नहीं होगा जब तक पुरानी तरह की गुरु शिक्षा परंपरा शुरू न हो.इस साल नयी सरकार ने इसे “गुरु उत्सव “के नाम से मनाया जिस का कुछ राज्यों ने विरोध किया क्योंकि वे मकाउले की मानसिकता से ऊपर उठ नहीं सकते.हमारे प्रधान मंत्री ने एक नयी परंपरा शुरू करके देश भर के बच्चो से तकनीकी की सहायता से संबाद कायम किया जिसमे उन्होंने अपनी बात कही और बच्चो के प्रश्नों के उत्तर दिए यह बहुत अच्छी परंपरा है और बच्चों को देश और सरकार से जोड़ने और उनकी समस्याओ को जानने का बहुत अच्छा तरीका है.हर नयी परंपरा का विरोध स्वाभाविक है.इस प्रयास की ज्यादातर लोगो ने प्रशंशा की .उम्मीद है नहीं सरकार शिक्षा को सुधरने की दिश में नए कदम उठा कर इसको सार्थक बन्येगी.क्या देश के लिए शर्म की बात नहीं की विश्व के १०० सर्वश्रेस्ट विश्वविधालयों में भारत का कोई नहीं है.?इस का कारन है की हम गुरन्व्त्ता को छोड़ संख्याबल पर ज्यादा जोड़ दे रहे हैं,रास्त्र की समृधि के लिए शिक्षा में अमूलचूर परिवर्तन की जरूरत है.

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