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जय श्री राम
हवाई जहाज़ का सही इतिहास
विश्व में राइट बंधुओं को हवाई जहाज़ के अविष्कारक के रूप में जाना जाता है यदपि रामायण में पुष्पक विमान और दुसरे धार्मिक ग्रंथों में विभिन्न तरह के विमानों की चर्चा है.!राइट बंधुओं ने १७ दिसम्बर १९०३ को एक जहाज़ उडाया था जो केवल १२० फीट उड़ा था परन्तु १८९५ में मुंबई में एक वैज्ञानिक “शिवकर बापूजी तलवाते” ने समुन्द्र के किनारे १000 फीट तक अपना बनाया हुआ हवाई जहाज़ उड़ाया था जिसको देखने के लिए महादेव गोविन्द रानडे ,महाराजा गायकवाड ,और हजारो लोग मौजूद थे यह जहाज़ बिना पायलट के उड़ा कर उतरा भी गया था.भारत आकर रैली बंधुओं ने इसकी डिजाईन और टेक्निक हासिल कर ली थी.
हवाई जहाज़ पर महर्षि भारद्वाजजी की एक विमान शास्त्र पर पुस्तक लिखी थी जिसमे ८ अध्यायों और १०० खंडो में बिस्तार से वर्णन किया था.इसमें ३००० श्लोक और ५०० सिधांत थे जिससे ५०० तरह के विमान ३२ तरह से बनाये जाने की विधि थी.कुछ तकनीकी अंग्रेंजों ने चालाकी से ले कर राइट बंधुओं को दे दी थी जिनके नाम से यह अविष्कार रजिस्टर्ड है.अंग्रेजों ने भारत से बहुत सी कलाए सीख कर अपने नाम से रजिस्टर्ड करवा ली थी क्योंकि हम लोग एक तो उनके द्वारा शासित हो गए और विश्व के लोगो ने भारत के अविष्कारों को विश्व के
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देशों को न बता कर अपने नाम कर लिया.!
हमारे संस्कृत के ग्रंथों से जर्मनी ने विमान बनाने के कला सीख कई तरह के विमान बनाहे. जर्मन की विमान लुफ्तहांसा के नाम से है जो शुद्ध संस्कृत से है.
_-क्या_ आप जानते हैं ?
१.विश्व की सुबसे पुरानी लिपि “ब्रहामिनी है जो १अरब ९६ करोड़ वर्ष पुराणी है.
२. जर्मनी के एक संस्कृत विश्वविध्यालय चरक्जी के नाम से एक विभाग “चारकोलोजी” के नाम से खोला गया है, जो भारत के एक महान आयुर्वेद वैद्य थे.
३. कंप्यूटर के लिए संस्कृत सबसे ज्यादा उपयोगी भाषा है क्योंकि इसमें शब्दों का सुबसे बड़ा भण्डार है.!इसकी ग्रामर बहुत अच्छी है विश्व की ५६ भाषाएँ संस्कृत की तरह हैं.
४. हमारे ऋषि मुनियों ने सुबह उठ कर पानी पीने का फायेदा बताया था जिसको जपनीयो ने ४० साल प्रयोग करके हजारों डोलर खर्च के सही पाया.खाना धीमे आग में पकाया उहा अच्छा होता है जय तेज़ आग से बहुत से पौष्टिक अंशु नास्ता हो जाते हैं.
५.हमारे गुरुकुलों में वर्ग,वर्गमूल,घन,घनमूल और ,पाइथागोरस थ्योरम पढाई जाती थी.
६.महर्षि ब्रह्मगुप्त ने अन्क्गरित,जोड़ना,घटाना,गुर्ण भाग करना बताया था.
महर्षि आर्यभट ने सबसे पहले बताया था की सूर्य नहीं घूमता परन्तु प्रथ्वी उसके चारो तरफ चक्कर लगती है उन्होंने ही दिन के नाम रखे थे.उन्होंने बताया था की सरे ग्रह सूर्य से प्रकाशित होते हैं. उन्होंने ही ब्रह्मसहिता लिखी थी.उन्होंने शनि के ७ उपग्रह बताये थे और दूरबीन बनाई थी.सूर्य के काले धब्बे बताये थे जिसे ब्लैक होल सिधांत के नाम से जाना जाता है. उन्होंने BINOMIAL THEORM और त्रिग्नोमेट्री (त्रिकोंमिति) बताई थी जो निर्मार्ण कार्य में बहुत मदद आती है.
संकलनकर्ता
रमेश अग्रवाल ,कानपुर
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