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जय श्री राम
हमको इतिहास में पढाया गया था की वास्को दी गामा पुर्तगाल और कोलंबस स्पेन के नागरिक थे जो बहुत बड़े समुद्री के यात्री थे जिन्होंने ने भारत और अमेरिका की खोज खी.परन्तु वे अपने समय के बहुत बड़े डकैत , लूटेरे और अपराधी थे जो वाह से गुजरने वाले जहाजों को लूट लेते थे,परन्तु जिनको महान आदमिओं की तरह हमें बताया गया.उस वक़्त यूरोप के ज्यादातर देश बहुत गरीब थे कोई व्यापार ,उद्योग ,खेती नहीं होती थी जलवायु बहुत खराब थी और प्राकर्तिक खनिज पदार्थ नहीं पाए जाते थे.ये लोग कोलकत्ता या और दुसरे देश से आने वालो को लूट लेते और उससे काम चलते थे फिर दोनों आपस में एक दुसरे को लूट के लिए लड़ते थे.तब धार्मिक गुरु पोप ने यह फैसला किया की वास्कोडिगामा पूर्वी देशो और कोलंबस पच्छिमी देशो को लुटे इस तरह वास्को डिगामा भारत में कोचीन पर आया.क्या एक धार्मिक गुरु के लिए लूटने की शिक्षा देना नातिक्ता थी.उस वक़्त भारत बहुत समृद्ध था और वास्कोडिगामा लूटने के लिए आया था.पहले कोचीन के राजा से व्यापार की इज़ाज़त ले कर ज़मीन ली फिर कुछ सालो बाद उसकी हत्या करवा कर राज्य करना शुरू कर दिया फिर जहाजो से टैक्स वसूल करना शुरू किया और न देने वाले के ज़हाज़ डूबा दिए जाते थे.वास्को डिगामा पहली बार ७ जहाज़ भर कर सोना, धन और दुसरे सामन ले गया.दुसरी बार १०-११ और तीसरी बार २०-२१ जहाज़ भर कर ले गया और यहीं से हमारी गुलामी की शरूहात हुई. इस तरह पुर्तगाल राज्य की फिर फ्रांस, डच और बाद में इंग्लिश राज्य की स्थापना शुरू हो गये.इन सबके एकी चाल थी पहले व्यापार करने के अनुमति फिर ज़मीन और फिर कूटनीतिक तरीके से राज्य के नीव रखना उधर कोलोम्बुस ने अमेरिका जा कर लूटना शुरू किया वहां माया सभ्यता के लोग जिन्हें रेड इंडियन के नाम से जाना जाता था रहते थे वे बहुत विकशित थे.कोलंबस ने अपनी सेना के साथ जा कर वहां के १० करोड़ लोगो को मारा डाला और वाह की संपती लूट ली.अब वहां केवल ६५000 के करीब रेड इन्दिंस रह गए है.ये इतिहास सभ्य और मानवाधिकार की आवाज़ उठाने वालो की असली हकीकत है.यही काम अंग्रेजो ने भारत में किया जिनकी यहाँ के राजाओ ने बहुत मदद की थी जिसमे सिंधिया राज्य सबसे ज्यादा आगे था परन्तु आजादी के बाद उनको धिक्कारने की जगह उनको उच्च पद से सुशोभित किया.
प्लासी युद्ध की सच्चाई :-हमें इतिहास में पढाया गया था की कोलकत्ता के नवाब को अंग्रेजों के सेनापति लार्ड क्लाइव ने हरा कर राज्य किया परन्तु सच था की युद्ध हुआ ही नहीं न ही बताया गया की दोनों के सैनिको की संख्या क्या थी? कोलकत्ता सबसे समृधि राज्य था जहां से जहाज़ अमेरिका, यूरोप और दक्षिण अमेरिका के देशों को जाते थे.कोलकत्ता का नवाब सिराजुदौला था जिसका सेनापतीमीर काशिम था.उसके पास १८००० सैनिक थे क्लाइव के पास केवल ३०० सनिक थे और अँगरेज़ मानते थे की एक भारतीय ५ अंग्रीजी सैनिको के बराबर था.क्लाइव को मालूम था की युद्ध में वो नहीं जीत सकता इसलिए उसने मीर कासिम को गद्दी का लालच देकर मिला लिया और अपनी सेना को अंग्रेजो के सामने हार स्वीकार करवा ली. सिराजुदौला को क़ैद कर मार डाला और मीर कासिम को गद्दी पर बिताया और धीरे से उसको भी मरवा कर राज्य छीन लिया इस तरह मीर कासिम की गद्दारी और लालच ने देश को १७५७-१९४७ तक और गुलाम बनने की नीव रख दी यदि कोलकत्ता में क्लाइव हार गया होता और मेरे कासिम ने गद्दारी न की होती तो ब्रिटिश राज १७५७ में ही ख़तम हो जाता लार्ड क्लाइव ने अपने लेखो में लिखा की कोलकत्ता की सडको में हमारी फौंजो का खूब स्वागत हुआ परन्तु यदि किसी ने एक पत्थर मार दिया होता और लोगो ने साथ दिया होता तो हम सब वाह ही मरे गए होते.४ साल बाद यही देश से ९०० पानी के जहाजों में लाद कर सोना चांदी,हीरे और अन्य सम्पदा ले गया जिससे ब्रिटिश की संम्पन्नता शुरू हुयी.जयचद के नाम से तो हमलोग परचित हैं. .इतिहास गवाह है की हम लोग अपने लोगो की गद्दारी की वज़ह से हमेश गुलाम बने या हार का सामना किया.यह सब इतिहास इंडियन हाउस लन्दन के पुस्तकालय में मौजूद हैं.
कांग्रेस की स्थापना :- १८८५ में एक अँगरेज़ `एलन हूम जो ब्रिटिश सरकार में वरिस्ट अधिकारी थे ने ब्रिटिश सरकार से सलाह कर इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देशय सरकार और देश के पढ़े लिखे लोगो के बीच संबाद स्थापित हो सके. .अंग्रेजो को विस्वास था की अंग्रेज़ी पड़े भारतीय ब्रिटिश सरकार क्र विरुद्ध कभी नहीं बोलेंग.कांग्रेस की स्थापना एक मनोरजन क्लब के रूप में हुयी थी और इसको कोई महत्व और प्रसिद्धी न मिलती यदि गांधीजी दक्षिणी अफ्रीका से लौट का न आते.उन्होंने इसको जन आन्दोलन के रूप में स्तेमाल किया और यह आजादी के लिए एक हथियार साबित हुआ.जब यह तय हो गया की भारत को आजादी देनी जरूरत है तो ब्रिटिश संसद ने लार्ड माउंट बेटन को यह कहा कर भेजा की यह आदमी सबसे उपयुक्त है क्योंकि इसके बीबी एडविना भारत के कही नेताओ को सम्माल सकती थी जो देश के लिए शर्म की बात थी.अंग्रेजो ने देश के ज्योतिषियों से पूँछ कर १५ अगस्त १९४७ रात को १२ बजे का समय रक्खा था क्यों की इस मुहूर्त में देश के टुकड़े हो जायेंगे.लोगो इस तारीख को बदलना चाहते थे लेकिन देश के प्रमुख नेताओं के आगे किसी की न चली.माउंटबेटन ने नेहरूजी से मिलकर जो मसौदा तय किया वो स्वंतन्त्रता नहीं थी बल्कि अंग्रेजो द्वारा भारत को सत्ता का हस्तांतरण था जिसमे ज्यादातर कानून उनके ही रखे गए और लिखा गया की भारत और पाकिस्तान दो अदिवेश (DOMINONS) होंगे असल में माउंट बेटन ने जिन्ना को भड़का कर पाकिस्तान बनाने के लिए राजी किया.जिन्ना सच्चा मुसलमान नहीं था न वो नमाज़ पढता ,सूअर का मांस खाता शराब पीता और ब्याज पर पैसे उठा कर कमाई करता था जो इस्लाम के खिलाफ था और उसको कोई मुसलमान अपना नेता नहीं मानते थे..यह तय हुआ था की नेहरु प्रधान मंत्री और जिन्ना उप प्रधान मंत्री होंगे परन्तु नेहरु के एक भाषण ने जिसमे उन्होंने कह दिया की जिन्ना को तो हम अपनी कैबिनेट में चपरासी का पद भी नहीं देंगे जिन्ना को भड़कने के लिए काफी था अन्यथा उसको मुसलमान भी नहीं चाहते थे.ब्रिटिश सरकार ने एक ऑफिसर रेड क्लिफ को दोनों देशों के बीच विभाजन के लिए भेजा जिसने अपने मन से सिंध, बलूचिस्तान पंजाब और फ्रंटियर की सीमा विभाजित कर पाकिस्तान का नक्शा तैयार कर दिया और आज तक इसको रेड क्लिफ लाइन कहते हैं.इस विभाजन ने १८ महीनो तक विश्व का सबसे बड़ा कत्लेआम देख जिसमे लाखो मारे गए, लाखो विस्तापित हुए .यह अंग्रेजो की चाल थी जिसपर गाँधी, नेहरु और कांग्रेस धोखा. खा गये!..गांधीजी इसतरह की आजादी के खिलाफ थे और वे कांग्रेस को भंग करने के लिए कह रहे थे क्योंकी वो समझ गए थे की सत्ता के लालची ये नेता अंग्रेजों के बाद देश को उनसे भी ज्यादा लूटेंगे और उनकी भविष्य वाणी सही हई इसीलिए १५ अगस्त को वे दिल्ली भी नहीं आये थे और नोआखाली में रहे.इस आज़ादी से ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक हो गई थी.
नेहरूजी द्वारा गांधीजी को ब्लैकमेल करना :- १९४६ में जब ये तय हो गया की भारत को आजादी मिलेगी तो उन्होंने कांग्रेस की एक सभा बुलाई और १५ प्रेस्देश के कांग्रेस के अध्यक्षों से कहा की आप कांग्रेस का एक अध्यक्ष चुन ले जो ही देश का प्रधान मंत्री होगा .१४लोगो ने पटेलजी के लिए और एक नेहरु के लिए आया इस तरह पटेलजी सर्वसम्मत से अध्यक्ष चुने गए जिनको यी प्रधान मंत्री होना था.ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नेहरूजी की आदतों और एडविन माउंट बेटन की वजह से कांग्रेस में उनको कोई पसंद नहीं करता था उनकी उसवक्त की ४ बहुत ही आपतिजनक फोटो ठीक जिसमे २ इंडिया टुडे ने १५ अगस्त १९९७ के अंक में प्रकाशित की थी. ..नेहरूजी गांधीजी के पास गए और कहा की यदि उनको प्रधान मंत्री नहीं बनाया गया तो वो फिर एक अलग कांग्रेस बना लेंगे और फिर अँगरेज़ किसी को आजादी नहीं देंगे.इसपर गांधीजी ने पटेलजी को मन कर इस्तीफा दिलवा दिया और देश के दुर्भाग्य के साथ नेहरूजी प्रधान मंत्री बने.जिससे देश को कश्मीर और चाइना के अलावा यह भ्रष्टाचार मिल गया.नेहरूजी ने अपनी जिद करके कश्मीर की समस्या उलझा दी जिसका खामियाझाना देश को आज तक भुक्ताना पड़ रहा है.कल्पना कीजिये यदि पटेलजी दूरदर्शिता से ५६१ राज्यों का देश में विलय न कटे तो क्या होता खास कर हैदराबाद और जुनागड़ का ?
नेहरूजी और पटेलजी में बहुत मनमुटाव रहता था नेहरूजी पटेल को साम्प्रादिक मानते थे और उनकी वजह से मुस्लिम तुस्टीकरण बड़ा.जिस तरह पटेलजी ने सोमनाथजी के मंदिर की पुनर्स्थापना करके देश का सम्मान करते गुलामी के कलंक को धोया उससे नेहरू बहुत नाराज़ थे और न खुद उनके अंतेष्टि में गए बल्कि सरकार के अफसरों को अपने खर्च से जाने का निर्देश देना नेहरूजी के चरित्र को उजागर करता है.अंग्रेजो के शोषार्ण करने वाले क़ानून अबतक है जिसको मोदीजी ख़तम करने जा रहे हैं.इसी तरह नेहरु राजेंद्र बाबु के अन्तेष्टि में भी नहीं गए और पुरषोत्तम टंडन जी भी नाराज रहते थे.इस तरह नेहरूजी सन रास्त्रवादी नेताओं से नाराज़ रहते थे.
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