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जय श्री राम
लोकतंत्र कितना पुराना है और सबसे पहले कहाँ शुरू हुआ इस पर कोई पक्का सबूत नहीं है परन्तु देश में ६०० वर्ष पूर्व में शुरू हुए लोकतंत्र के बारे में जानकारी है.ये हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के “मलारना”गाँव है.इसे अनेक विशेषगो ने इसे प्रछें लोकतंत्र मानते हुए लोकतान्त्रिक व्यवस्था को धरोहर के रूप में स्वीकार किया है.दुर्गम शेत्र में बसे इस गाँव में प्रत्येक तीन साल के बाद जयेष्ठांग(उच्च सदन) और कनिस्तांग (निम्न सदन)के चुनाव होते हैं.यहाँ राईट तो रिकॉल यानी वापस बुलाने का अधिकार लागू है.टीक से कार्य न करने पर निर्वाचित सदस्य को समय से पहले हटाया जा सकता है.यह व्यवस्था अकबर के समय से शुरू हुयी और अंग्रेजो के समय भी संसदीय लोकतंत्र का सौंदर्य बिखेरकर सभी को आच्चर्यचकित कर रहा था.उच्चा सदन और निम्न सदन है और दोनों के चुनाव ३ सालो के बाद होते हैं.
गाँव वालो की मान्यता के अनुसार ये चुनाव गाँव के देवता जमदग्नि ऋषि के आदेशानुसार कराये जाते हैं.इस प्राचीन लोकतान्त्रिक परंपरा के उपरी सदन में ११ सदस्य होते हैं जिसमे ८ का चुनाव होता है और ३ मनोनीत किये जाते हैं.मनोनीत सदस्य कनिष्ट ,पुजारी और गुरु होते हैं.यह तेनो स्थाई होते हैं गेन की परंपरा के अनुसार इनका चुनाव देवता स्वयं करते हैं.जिन ८ सदस्यों का चुनाव होता वे आम सहमति से होता है.जिन सदस्यों का चुनाव होता है उन्हें भी स्वयं इसकी जानकारी नहीं रहतीकी उन्हें चुना जा रहा है.निचले सदस्यों के चुनाव की अलग व्यवस्था है.इस सदन के सदस्यों की संख्या ८ होती है जिनमे से गाँव में सदिओं.से रहने वाले खानदानो में से दो दो सदस्य लिए जाते हैं.गाँव में मूलत डरानी,पल्चानी ,नागवानी और धम्यानी खानदान रहते हैं.इन प्रत्येक परिवारों से २-२ सदस्य लिए जाते हैं..उच्चसदन के सदस्यों का चयन ३ साल की लिए किया जाता परन्तु काम अच्छा न होने पर २ साल के बाद हटाया जा सकता है..इस गाँव में अपने कानून चलते है .गाँव के लोग “जमलू”देवता को को ही अपना शासक मानते हैं.और ११ उच्चा सदन के सदस्य अपने को देवता का प्रतिनिधि मानते हैं.गाँव में किसी तरह के विवाद या अन्य किसी महत्पूर्ण मामले पर विचार के लिए परिषद् की बैठक बुलाई जाती है जो गाँव के बीच में बने पत्थरो के चबूतरे पर होती है.और इसके फैसले सबको मान्य होते हैं.निर्णय बहुमत से होते हैं.
इस गाँव के बारे में इतिहासकारों में काफी खोज के बाद भी मतभिन्नता है.कुछ लोग इन गाँव वालो को यूनानियो का वंसज मानते है उनके अनुसार ये गो हिमालय का एथेंस है.इनके अनुसार सिकंदर की हार के बाद कुछ सैनिक हिमालय की ख़ूबसूरती और दिव्यता ने आकर्षित किया और वे यहीं बस गए.
कुछ इतिहासकार इन गाँव वालो को इंडो आर्यन मानते हैं.कुछ इसको अकबर से जोड़ते है.एक बार बादशाह अकबर बहुत बीमार हो गए और सब दवाएं बेकार सवित हुयी तब तोड़रमल ने पूछने पर हिमालय की औषधयो का वर्णन किया और रहीम और तोड़रमल के साथ हिमालय आये और इसी गाँव में हिमालय की औषडधियो से ओलाज़ हुआ और पूर्ण स्वस्थ हो गए.
स्वस्थ होने के बाद अकबर ने इस गाँव को अपने शासन से मुक्त कर दिया और आजाद कर दिया.और अपने ढंग से शासन चलने की आजादी दे दी.और तनसे इस गाँव में अपने कानून चल रहे हैं इस गाँव के बारे में और भी बहुत सी कथाएं प्रचिलित है परन्तु कौन सी सही इसका पता लगाना मुस्किल है परन्तु ये सच है की इस गाँव में बहुत पुराना लोकतंत्र संसदीय परंपरा के अनुसार चल रहा है.कहते हैं की देश के पहले प्रधान मंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरु भी यहाँ के लोकतंत्र से प्रेरित थे उन्होंने देश की संसदीय प्रणाली के निर्माण में ब्रिटेन और अमेरिका के साथ मलार्ण गाँव से भी प्रेरणा प्राप्त की थी.विश्व की इस सफल लोकतंत्र का चुनाव अभी पिचली जून में संपन्न हुआ था.
श्रोत्र :- “अखंड ज्योति “पत्रिका अक्टूबर २०१४
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