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दीपावली का महत्व

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
प्रकाश पर्व दीपावली हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है और पुरे देश और विदेशों में जहां भारतीय समुदाय के लोग रहते है बहुत ही धूम धाम और भव्यता से मनाया जाता है यदपि विभिन्न प्रदेशो में मनाने की विधी में थोडा अंतर दिखाई देता है.यह ५ दिन का त्यौहार होता है जो धन तेरस से शुरू हो कर भाई द्वीज तक मनाया जाता है.इसमें अँधेरे को दूर कर प्रकाश करा जाता है हमें इसी तरह अपने अन्दर के बुराईयों के अन्धकार को धो कर अपने अन्दर अनुशासन सत्य और सदाचार रुप प्रकाश करना चाइये.इस त्यौहार के पहले हर घर में सफाई और पुताई की जाती है क्योंकि ऐसी मान्यता है की माता लक्ष्मीजी जिनकी इस दिनों पूजा की जाती है गंदगी में नहीं रहती.इसके अलावा बरसात के बाद गंदगी को दूर करने के लिए भी सफाई की जाते है.इस त्यौहार मनाने के विभिन्न मानयाताये है.इस त्यौहार में दीयों से प्रकाश किया जाता है जो बहुत प्राचीन परंपरा है मोहनजोदड़ो और सिन्धु घटी में खुदाई में भी दीपक मिले थे यदपि उनकी आकर में विभिन्नता है.अभी तक उपलब्ध दिया कम से कम ५००० वर्ष पुराना है.हमारे यहाँ हर शुभ कार्य में दिया जलाने की परंपरा है.ऋग्वेद में दीपक की उत्पति सूर्य से मानी गयी है.ये व्यापारिओं के लिए बहुत शुभ मन जाता क्योंकि वे लोग इसदिन नयी बही खाता की शरुहात करते हैं.दीपावली का अर्थ होता है दियो की लाइन क्योंकि इन दिनों दिए पंक्ति में लगा कर जलाये जाते है.
देश में त्योहारों की अध्यात्मिक महत्व के साथ सामाजिक महत्व भी है लेकिन आज कल हम लोग इसकी परंपरा को भूलते आधुनिकता के रंग में रंग कर इसकी महत्वता ख़तम करते जा रहे.हम अपनी संस्कृत से दूर हो कर व्यापारीकरण के कारन मूल रूप से दूर हो कर राष्ट्र का नुक्सान करते जा रहे है.कुछ विदेशी कंपनियों के प्रभाव और विज्ञापनों के चकाचौंध ने हमको असली रास्ते से भटका दिया.और हम विदेशी वस्तुओं और परंपरा के बहाव में बहते जा रहे है.अधादूंध पैसा खर्च करना इसकी साथकता को नष्ट करता है.हम स्वदेशी दियो, और बिजली के झाडलो की जगह चाइना की चीजो का उपयोग कर रहे यहाँ तक लक्ष्मी माता और गणेशजी की मूर्तियाँ भी चाइना की खरीदते है जिससे देश का बहुत सा पैसा चाइना जाने के साथ अपने लोगो का रोज़गार भी मारा जाता है.हमें इसका ध्यान रखना चाइये.इस त्यौहार में हम लोग करोडो रु आतशबाजी में खर्च करके बेकार करते साथ में प्रदुषण की मात्रा बड़ा देकर नुक्सान करते.क्यों हम इस पैसे को गरीब लोगो की किसी तरह की मदद करने में लगा कर उनकी जिन्दगी बनाने में योगदान दे.इस त्यौहार में जुआ खेलने की कोई मान्यता नहीं है इस बुराई को दूर कर त्यौहार की गरिमा बढाये .स्वदेशी चीजो का उपयोग,प्रदुषण मुक्त वातावरण और जुए की प्रथा को ख़तम करने से ही माता लक्ष्मी और गणेशजी जल्दी प्रसन्न होगे
५ दिनों की त्योहारों का विवरण :-

धनतेरस :- चूँकि ये तेरस को होता है और मान्यता है की आज के दिन नया सामान खरदीने से लक्ष्मी जी प्रसन होगी इसलिए इस दिन नए बर्तन,गहने खरिदने की प्रथा है .ऐसा माना जाता है की इस दिन सामान खरीदने से १३ गुनी वृद्धि होती है.इस दिन भगवान धन्वन्तरी जी समुन्द्र मंथन से अमृत कलश और
औषिधियाँ ले कर प्रगट हुए थे जिनको आयुर्वेद का प्रवर्तक माना जाता है और इसीलिये इस दिन वैध लोग और आयुर्वेद पर विशवास रखने वाले धन्वन्तरीजी की पूजा करते हैं.इसदिन यम के नाम का एक दिया जलाया जाता है.बहुत लोग घर के अन्दर और बाहर विभिन्न तरह की आकर्षित रंगोली से सजाते हैं!
छोटी दीवाली नरक चौदस :- मान्यता है की भगवन कृष्णाजी ने इस दिन नरकासुर राक्षस का वध करके उसके चंगुल से १६००० राज कन्याओं को छुड़ाया था जिन्होंने वापस अपने घर जाने से मना करने पर भगवन कृष्णाजी ने शादी कर ली थी,इसको रूप चौदस भी कहते है और सब लोग उबटन या अन्य तरीकों से सुन्दर बनने का उपाय करते है.इसदिन सौदर्य के प्रतीत भगवन कृष्णजी की पूजा करते है जिससे सुन्दरता प्राप्त होती है.गोवा में इसी दिन दीवाली मनाई जाती है और नरकासुर के जगह जगह पुतले फूंके जाते है.इसदिन हनुमानजी की जयंती भी मनाई जाते है और अयोध्या में हनुमानगढ़ी मंदिर में बहुत भव्य आयोजन होता है.
दीपावली : यह मुख्य त्यौहार होता है .मान्यता के अनुसार भगवान रामजी के १४ वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने पर पुरे शहर में खूब खुशी हुयी और लोगो ने घरो दूकानों को रोशनी से सजाया था.इस दिन सम्राट विक्रमादित्जी का राज्याभिषेक हुआ था और विक्रम सवंत की शुरुहात हुयी थी.इसदिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मीजी की शादी हुई थी और भगवन महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था.इसदिन लोग खूब रौशनी और दिए सजाते है घर में धन की स्वामिनी लक्ष्मीजी और बुधि के देवता गणेशजी की पूजा के साथ कुबेरजी की भी पूजा करते हैं.व्यापारी लोग दुकानों में नए बही खातो की पूजा करके नए साल की शुरुआत करते हैं.इसदिन बिल्ली को देख कर भी नहीं भगाया जाता ऐसा की इससे लक्ष्मी जी प्रसन्न हो जाती है.पुराणों के अनुसार लक्ष्मी जी के लिए लिखा है “हे देवी जिस पर आपकी कृपा हो वही मनुष्य समाज में प्रसंशनीय ,गुर्णी,कुलीन बुद्धिमान ,वीर और पराक्रमी होता है..इसदिन लोगो एक दुसरे से मिलकर भेंट देते है परन्तु कोशिश होनी चाइये की स्वदेशी वस्तुओं के साथ ज्यादा धन का प्रदर्शन न करे..आतशबाजी से बच कर प्रदूषण से बचाए और इसका पैसा गरीबो को मदद में लगाये.इससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होगी और जुआ से बचे त्यौहार अच्छाई के प्रतीक होते हैं और भगवन रामजी को सादगी पसंद थी इसलिए इसको ऐसा ही मानना चाइये,इस त्यौहार को सरकारी अफसरों ने भेट के नाम पर घूस का साधन बना रक्खा है जो गलत है.
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा:- इस दिन भगवान कृष्णाजी ने गोवर्धन पूजा करके .इन्द्रजी का मान भंग किया था इसलिए घर में गोबर के गोवर्धन बना कर पूजा करते है और मंदिरों में ५६ प्रकार के भोजन बनाये जाते है घर में भी विभिन्न तरह के भोजन और पकवानों की व्यवस्था की जाती है..इस दिन गुजराती अपना नया वर्ष मनाते हैं.इसदिन गायो की भी पूजा की जाती है.
भैया दूज या यम दुतिया :- यमुनाजी और यमराजजी भगवान सूर्य की संताने है और भाई बहन होते है.एक दिन इस दिन बहुत सालो के बाद यमराज जी बहन यमुना जी के यहाँ गए तब बहन बहुत प्रसन्न हुयी और तिलक कर खूब आदर सत्कार किया जाते समय उनने बहन से कुछ मांगने को कहा जिसपर यमुनाजी ने कहा की उन्हें कुछ नहीं चाइये परन्तु आज के दिन जो भाई अपने बहन के घर जाए उसको आप लम्बी उम्र प्रदान करे इसलिए इसदिन भाई बहन के घर जाते है जहाँ बहन तिलक कर भाई का स्वागत करती और लम्बी उम्र की कामना करती है और भाई भी बहन को भेट स्वरुप कुछ देते हैं.इस दिन भाई बहन हाथ पकड़ कर यमुनाजी में स्नान करते है और मान्यता है की इससे यमजी उनको लम्बी उम्र प्रदान करते हैं इस दिन चित्र गुप्त की कलम दवात के साथ पूजा की जाती है.कायस्थों लो इसदिन खास पूजा करते हैं.चित्रगुप्त के उत्पति की एक कथा प्रचलित है ब्रह्माजी ने यमराज को मनुष्यो के पाप पुण्य रखने का ज़िम्मा दिया परन्तु जब श्रष्टि बहुत तेजी से बढने लगी तब यमराजजी के लिए काम कटीं हुआ और उन्होंने अपनी पीड़ा सुनाही.ब्रहमाजी समाधी में चले गए और जब समाधी के बाद आँख खुली तो सामने एक दिव्य पुरुष को कलम,दवात,तलवार और पुस्तक के साथ देखा.पूछने पर उन्होंने बताया की वे गुप्ता रूप से आपके चित्त में बसते है तब ब्रहमाजी ने चित्रगुप्त जी को मनुष्यों के पाप पुण्य रखने की ज़िम्मेदारी सौंप दी. इस तरह ये ५ दिन का त्यौहार संपन्न होता है.

सौजन्य :-संस्कार पत्रिका अक्टूबर .. …

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