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हनुमानजी के कुछ रोचक गाथाये

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
हनुमानजी को भगवन रामजी के परम भक्त के रूप में जानते है जोकि त्रेता युग में उनसे रिश्मुक्य पर्वत में मुलाक़ात हुयी थी वैसे वे चारो युग के देवता माने जाते हैं.और ७ अमर लोगो में है ऐसा कहा जाता है की जहाँ भी भगवन रामजी की कथा होती है वे सुनने भेष बदल कर आते हैं.द्वापर युग में भगवन कृष्णाजी के साथ भी उनकी गाथाये है और कलयुग में भी भक्तो को दर्शन देते और कृतज्ञ करते है जिसका वर्णन तुलसीदासजी ने भी किया है उन्होंने उनकी कई बार कैसे उनकी मदद की थी. कीहनुमानजी के बारे में कहा जाता की भगवन रामजी ने खुद कहा था की “सुन सुत तोही उऋण मै नाहीं देखो बिन बिचार मन माही” हनुमानजी में कोई अभिमान नहीं था इसीलिए भगवन ने अपने भक्तो का अभिमान को नष्ट करने की लीला उनके द्वारा की.रामायण में उन्होंने रामजी .लक्ष्मणजी .सीताजी ,सुग्रीव्जी,विभीषण जी भरतजी की प्राणों की रक्षा की थी.हनुमानजी से सम्बंधित प्रसंगो का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है.
१.भगवन रामजी से युद्ध :-इसकी रूपरेखा नारदजी ने भगवन राम के नाम की महिमा को प्रदर्शित करने के लिए किया था.एक बार हनुमानजी रामजी की आज्ञ पा कर माँ अंजनाजी मिलने जा रहे थे.रास्ते में काशी नरेश नारद जी को मिले जो भगवान् राम के दर्शन करने अयोध्या जा रहे थे.नारदजी ने नरेश से कहा की वे वहां विश्वामित्रजी प्रणाम न करे.ऐसा करने पर विश्वामित्रजी कुपित हो गए जिससे रामजी ने काशीनरेश को सूर्य अस्त होने से पहले वार्ण से मरने का प्रण किया.नरेश वहां से भागे तो नारदजी ने उनसे माँ अंजलि के पास जाने को कहा और माँ ने उन्हें बिना सुने रक्षा का वचन दे दिया,हनुमानजी की आने पर माता ने कसम ले कर आज्ञ पालन का वचन लिया और जब रामजी की प्रतिज्ञा के मरे में पता चला तो रामजी के पास जाकर वचन लिया की राम नाम जपने वाले को कोई अस्त्र न मार सके.हनुमानजी ने काशीनरेश को सरयू नदी में खड़ा करके राम नाम जपने को कहा और खुद भी गदा लेकर खड़े हो कर राम नाम जपने लगे.रामजी ने २ वार्ण चलाये जो नर्ष और हनुमानजी ली परिक्रमा करके वापस लौट गए.वहां पर वशिस्ठ और विश्वामित्र जी भी मौजूद थे.हनुमानजी ने रामजी से कहा की यदि आप अपने नाम की महिमा मिटने चाहते है तो हमें आगया दे..कशी नरेशजी ने विश्वामित्र के पैर छु लिए और विश्वामित्र ने माफ़ कर दिया.और रामजी को वार्ण वापस लेने का अनुरोध किया और इस तरह राम नाम की महिमा का ज्ञान हुआ .
२.महर्षि वाल्मीकि पर कृपा:-रामराज्य में सीताजी के वनगमन के बाद हनुमानजी सेतु बंध के पास आकर भगवन राम की गाथा अपने नाखुनो से पहाड़ों की शिलाओ लिखते थे और कार्य दिन भर चलते इस काव्य की बहुत प्रसंशा हुई तब वाल्मीकिजी ने आकर इसको देखा परतु खुश नहीं दिखाई दिए पूंछने पर उन्होंने बताया की इस काव्य से उनकी लिखी रामायण कोई नहीं पड़ेगा और उनका मान और यश कामना ख़तम हो जायेगी.ये सुनते हनुमानजी ने सब शिलाएं समुन्द्र में नीचे फेक दी क्योंकि हनुमानजी को मान मर्यादा की कोई फ़िक्र नहीं थी.वाल्मीकिजी की प्रतिष्ठा इसी रामायण से हुई थी और वे आदिकवि कहलाये.वाल्मीकिजी बहुत खुश हुयी और हनुमानजी को लगातार यश वृद्धि का आशीर्वाद दिया. “हनुमन्नाटक” नमक ग्रन्थ को को उन्ही शिलाओं को रजा भोज द्वारा समुन्द्र से निकला कर उसके आधार पर लिखा मन जाता है,.
३.हनुमानजी के शरीर लाल होने का कारण:”लाल देह लाली लसे अरु धरि लाल लंगूर “रोज़ प्रात हनुमानजी को माता सीता अयोध्या में बेसन का लड्डू देती थी.एक दिन मंगल के दिन हनुमानजी लादू के इंतज़ार में कमरे के बहार इंतज़ार कर रहे थे उस वक़्त माता सीताजी मांग में सिदूर लगा कर बहार आयी.जब हनुमान जी ने सिन्दूर लगाने का कारण पुछा तो माताजी ने कहा कि इससे स्वामी कि आयु में वृद्धि होती है तब हनुमानजी ने पुरे बदन पर सिन्दूर लगा लिया और राजदरबार में पहुँच गए पूंछने पर बताया कि जब माँ के जरा से सिन्दूर लगाने से उम्र बढ़ जाती है तब हम इसी वेश में रहेंगे जिससे मेरे स्वामी कि लम्बी आयु हो.भगवान्र रामजी ने आशीर्वाद दिया कि मंगल को जो कोई भी हनुमानजी को सिंदूरी चोला चढ़ाकर बेसन के लड्डू का भोग लगाएगा उसकी समस्त कामनाओ कि पूर्ती वे स्वयं करेंगे
४.सुनहु मातु मोहि अत्सय भूखा :- एक बार माता सीता ने हनुमानजी को अपने हाथ से खाना खिलने का निर्णय लिया और खुद बना कर खुद परोस कर खिलाना शुरू किया परन्तु माता सीता जी कि रसोई खाली हो गयी परन्तु हनुमानजी कि तृप्ति न हो सकी.तब जानकीजी ने भगवन राम को याद किया और उन्होंने तुलसीदल के पत्तीपर राम नाम लिखने कि सलह दी जिसके करने से हनुमानजी कि तुरंत तृप्ति हो गयी.हनुमानजी भगवन राम के नाम का उच्चारण करते माता सीता के पाँव छु कर बाहर आ गए.
५.हनुमानजी के ह्रदय में “सीताराम “की झांकी :- अयोध्या के राज दरबार में भगवान् राम ने सब मित्रो को उपहार दे कर विदा किया परन्तु हनुमानजी को कुछ नहीं दिया क्योंकि रामजी को मालूम था कि हनुमानजी को सिवाय भक्ति के कुछ नहीं सुहाता.सीतामाता को अच्छा नहीं लगा इसलिए अपना बहुमूल्य हार उठा कर हनुमानजी को दे दिया.हनुमानजी उसके एक एक डेन को तोड़ कर फेंकते रहे.जब विभीषण जी ने कहा कि यह बहुत कीमती है तुम ऐसा कईं कर रहे हो.हनुमानजी ने उत्तर दिया कि जिस चीज में भगवन का नाम न हो उसको रखने का क्या फ़ायदा .फिर विभीषण जी ने कहा कि इतनी बड़ी काया में भगवन का नाम नहीं तो इसको क्यों रख रहे हो.भगवन राम मुस्करा रहे थे.हनुमानजी ने फ़ौरन नाखून से अपने वक्षस्थल चीरा और सभी लो ताज्जुब में रह गए जब उन्होंने हृदय के अन्दर माता सीता और भगवन रामजी कि झाकी देखी.साथ ही प्रत्येक रोयें से राम राम गूंजायमान हो रहा था.सब लोग हनुमानजी कि भक्ति से ताज्जुब में हो गए और भगवान् राम ने सिंघासन से उत्तर का हनुमानजी को गले से लगाया.
६.हनुमानजी कि चुटकी सेवा :- हनुमानजी भगवन राम के समर्पित सेवक होने के नाते सुबह से रात तक का सब कार्य खुद करते थे.इसलिए माँ सीता, लक्ष्मणजी और भरतजी को कोई कार्य नहीं मिलता इसलिए एक दिन उन सबने सब कार्यो को बाँट कर सूची बना कर राज्यग्या प्राप्त कर ली.हनुमान जी तो “राम काज करिवे को आतुर”ज्ञान ,बुधि,कौशल ,विवेक में निपुण हनुमानजी को प्रभु के निकट रहने और सेवा से कौन रोक सकता था .बस उन्होंने नितांत सहज सेवा माग ली. वह थी प्रभु को जमुहाही आने पर चुटकी बजाने की सेवाअब जमुहाई कभी भी आ सकती थी सो निरंतर प्रभू के पास उनके मुहँ को निहारने का सौभाग्य भी पा गए.रत्रि में छत में बैटकर राम नाम जपते चुटकी बजाते रहते क्योंकि उनको मालूम नहीं कि कब जम्हाई आ जाये..रामजी ने तन माया रची और मुह खुला होते जमुहाई आने के बाद बंद नहीं हुआ वैद लोग भी कुछ समझ नहीं पाए तब वशिस्ठ जी ने हनुमानजी को देखकर बुला कर रामजी के पास ले गए जैसे चुटकी बंद वैसे रामजी का मुह बंद हो गया तब से फिर हनुमानजी को प्रभु के सभी कार्य दे दिए गए.
७.भगवन शंकरजी से युद्ध :- जब भास्ग्वान राम ने अश्वमेध याग किया था तब उसकी रक्षा में शत्रुघ्न जी के साथ हनुमानजी भी सेना के साथ याग के घोड़े कि रक्षार्थ चल रहे थे.देवपुर के राजा वीरमणि के राज्य में पहुँचा जिसको उनके लड़के रुक्मांगद ने रोक लिया वीरमणि भगवन शंकर के भक्त थे और वे स्वयम उसके पक्ष में लड़ने का वचन दे चुके थे.भयानक युद्ध में शत्रुघंजी ,भरतजी के पुत्र पुस्कल मूर्छित हो गए तब हनुमानजी और शंकरजी का भयानक युद्ध हुआ. .यदपि हनुमानजी को मालू था कि शंकरजी .वीरमणि कि रक्षा करेंगे परन्तु राम्कार्य के लिए हनुमानजी कुछ भी कर सकते है.११ दिन तक युद्ध करके शत्रुहन जी मुर्छित हो गए उत्कल मरे गए थे तब राम नाम ले कर हनुमानजी और शंकरजी का भयानक युद्ध हुआ जी ने शिवजी का रथ और त्रिशूल तोड़ दिया.देवता लोग भयभीत थे .हनुमानजी कि निष्ठा,पराक्रम और कर्तव्य पालन से प्रसन्न हो कर भोले बाबा ने वरदान मांगने को कहा और हनुमानजी ने उनसे माँगा कि जबतक वे लौट कर न आये उनकी सेना कि रक्षा करे.हनुमानजी द्रोणागिरी पर्वता से संजीवनी लेकर आये और शत्रुहंन जी और पुष्कल को टीक किया..
.८.भीमजी का मान मर्दन :-पांडव के अज्ञात वास में हिम सरोवर में पैदा होने वाला अतयंत सुगन्धित सहस्त्रदल ब्रह्मकमल का पुष्प माँ द्रौपदी के पास गिरे उन्होंने भीमजी से वैसे और पुष्पा लाने के लिए किया.हिमगिर में यक्ष लोग रहते थे जो शंतिप्रोया थे और किसी का हस्तपक्षेपनहीं चाहते.थे.इधर गंधमादन पर्वत के पास कदलीवन में हनुमानजी रहते थे जब उन्होंने देखा कि उनका अनुज भीम जो बहुत क्रोधी स्वाभाव के थे को यक्षो के पास जाने से रोकने के लिए हनुमानजी सकरी गली में पूँछ को फैलाकर लेट गए.भीमजी इतने बड़े वानर को देखकर अचंभित हुये लेकिन अहंकार और बल के गर्व में हनुमानजी को अपशब्द कह दिए और तुरंत मार्ग छोड़ने को कहा..हनुमानजी ने भीमजी को वापस जाने को कहा और परिचय भी पूछ लिया.जिसपर उन्होंने गर्व से परिचय दिया.हनुमानजी ने आगे जाने को पुनः मना किया परन्तु न माँने तो पूँछ लाँघ कर जाने को कहा जिसपर इसको शाष्त्र विरुद्ध बताते अपने को हनुमानजी का अग्रज बताया.तब हनुमानजी ने वृद्ध होने के कारण पूँछ हटा कर जाने को कहा परन्तु हटाना तो दूर हिला तक नहीं सके और पसीने से लत थक कर चूर चूर हो गए तब उनका अभिमान टूटा और उन्होंने उनका परिचय पुछा .हनुमानजी ने अपना परिचय दिया परन्तु वहा जाने से मन किया.भीमजी ने पैर छु कर उनसे समुन्द्र लंघन के समय वाला रूप दिखने के लिए कहा जिसको उन्होंने दिखाया .भीमजी ने हनुमानजी के चरणों में गिर उनके कर स्पर्श किये जिससे उनका स्वयं का बल कही गुना बढ़ गया.
९.सुदर्शन चक्र, गरुण जी और माँ सत्यभामा जी का मान मर्दन:- गरुण जी को तीब्र गति और बल का, सुदर्शन चक्र को परम बलवान और तेजश्वी होने का गर्व था वही सत्याभामाजी सुन्दरता का .एक दिन भगवन कृष्णाजी रामजी के वेष में बैठे गरुण जी को मलयगिरी पर्वत जा कर हनुमानजी को आने के कहने का सन्देश भिजवाया साथ ही सुदर्शन चक्र को द्वारपाल कि जगह रहकर किसी को न आने को कहा और सत्याभामाजी को माता सीताजी के वेष में तैयार रहकर बैठने को कहा.गरुण जी सन्देश दे कर चले आये कि आप आ जाइएगा यह सोच कर कि ये वानर हमसे तेज तो नहीं चल सकेगा.हनुमानजी जब द्वार पर आये तो चक्र ने रोका तो उन्होंने पहेले तो समझाया परन्तु न मानने पर खांक में दबा कर मूंह में रख अन्दर आये और सत्याभामाजी को देख कर कहा कि माँ सीताजी कहाँ है और आपने किस दासी को बैठा लिया.इसको सुन कर सत्याभामाजी पानी पानी हो गयी और उनको सुन्दरता का अभिमान ख़तम हो गया,रामजी ने हनुमानजी से पूँछ कि द्वार पर कोई दिक्कत तो नहीं हुई तो उन्होंने चक्र को मूंह से निकाल कर कहा कि ये नहीं आने दे रहे थे.इस वक़्त गरुंजी आये और पूंछने पर जब पता चला कि हनुमानजी तो बहुत पहले आ चुके तो उनको शर्म आयी और गति का अभिमान दूर हो सका.इस तरह भगवन ने हनुमानजी को तीनो का घमंड के लिए सबक TEEसिखया और तोडा.क्योंकि हनुमानजी में तो घमंड नाम कि कोई चीज है हो नहीं.
१०.अर्जुनजी का अभिमान मर्दन :-जब अर्जुन जी को अपने धनुर्विध्या का अभिमान हो गया तो इसका भी मान मर्दन भगवानजी ने हनुमानजी के द्वारा करवाया.रामेश्वर् जी के .धनुष्कोठी तीर्थ में अर्जुन घूम रहे थे तब हनुमानजी वहा आये और परिचय में बताया कि वे श्र्स्ठी केसर्व श्रेष्ठ “शर चाप धर “भगवन राम के सेवक है जिन्होंने समुद्र पार्क १०० योजन लम्बा शिला पुल का निर्मार्ण किया था.अर्जुनजी लो ये प्रशंसा अच्छी नहीं लगी और बोले कि यदि सर्व श्रेस्त्र थे तो वाणों का पुल क्यों नहीं निर्वाण करवाया.जिसपर हनुमानजी बोले कि भगवन राम के पुल से सैकड़ो बानर पार कर गए थे जब्को बाणों के पुल तो टूट जाता..अर्जुनजी ने कहाकि वे पुल बनादेंगे और हनुमानजी पार कर जायेगे,दोनों में शर्त हुयी कि यदि पुल टूट गया तो अर्जुन आत्मदाह कर लेंगे यदि पार कर लिया तो हनुमान जी अर्जुन के रथ कि ध्वजा पर बैठ कर रक्षा करेंगे.पुल निर्मार्ण होने पर जैसे हनुमानजी चढ़े पुल टूटने लगा उससे वक़्त भगवन कृष्णाजी आये और दोनों के सामने बुला कर समझाया और उसी वक़्त सुदर्शन चक्र जिसको भगवन ने पुल के नीचे साधने के लिए लगाया था आये और उनके आते शरसेतु समुद्र में गिर कर समां गया इस तरह अर्जुन का मान मर्दन हुआ और हनुमानजी अर्हुंजी के रथ कि ध्वजा में बैठ गए.
हरी अनंत हरी कथा अनंता के हिसाब से हनुमानजी कि भी असंख्य गाथाये है जिन में १० का विवरण दिया है
हनुमानजी से सम्बंधित पुताके इस पते पर प्राप्त है कुछ प्रसाद रूप में मुफ्त में मिलती है कुछ बहुत सस्ते राशि में.
जी.बी.चैरिटेबल ट्रस्ट, (पंजीकृत)”बजरंग निकुंज:”१४/११९२ इंदिरा नगर लखनऊ २२६०१६.दूरभाष :-०५२२-२७१११७२, ९४१५०११८१७
सौजन्य:- “हनुमत-लीला प्रसंग ”
भगवन हनुमानजी सबका कल्याण करे.

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