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एक सही विज्ञापन पर इतना विवाद क्यों?

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
गणतंत्र दिवस पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने १९५० में लिखे सविधान के प्रस्तावना को दिखाया गया था जिसमे “सोशलिज्म “और “सेकुलरिज्म” नहीं दिखाए गए थे क्योंकि उस वक़्त यह शब्द नहीं जोड़े गए थे.अबेडकरजी , नेहरूजी,पटेलजी ,राजेंद्र बाबु और अन्य नेताओ ने बहस करने के बाद तय किया की इन शब्दों की कोई जरूरत नहीं है.”सोशलिज्म “कम्युनिस्ट देशो की दें है जो वां की सरकारे अपनी अर्थ व्यवस्था को करने के लिए इस्तेमाल करती हैं और इन नेताओ का मानना था की देश की अर्थ व्यवस्था को एक दिशा में बांधना टीक नहीं होगा इसपर देश की सरकारों को अर्थ व्यवस्था को सुधरने के लिए स्वतंत्रता देनी चाइये.वही “सेक्युलर” पर ये तय हुआ की चूंकि भारत शुरू से सेक्युलर देश है ,ये यहाँ के देशवाशियो के खून में है और इस देश ने न तो कभी किसी देश पर हमला करके वहां की सम्पदा को लूटा न ही किसी दुसरे धर्म को लालच या जबरदस्ती कर के धर्मपरिवर्तन किया.दुसरो का आदर करना और मिलजुल कर रहना हमारी संस्कृत का अभिन्न अंग था और है. इसीलिए हमारे पूर्वजो ने विश्व बंधुत्व को वैदिक संस्कृति का अभिन्न अंग माना.और अल्पसंख्यको को सब अधिकार आस्था के अनुसार पूजा करने का विभिन्न प्रावधानों द्वारा दिए गए ओर इसलिए सेक्युलर शब्द की जरूरत नहीं है..! असल में ये २ शब्द स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी ने १९७६ में सविधान में आपदकाल में उसको सही सवित करने के लिए एक तानाशाह के रूप में जोड़ा था जो गलत था.इन शब्दों से वे गरीबो और मुसलमानों के बीच अपने को मसीहा साबित करना चाहती थी.सबको मालूम है की इलाहबाद अदालत के फैसले के बाद उन्होंने ये कदम सत्ता में बने रहने के लिए उठाया था.कायेदे से इस कदम के लिए उनकी निंदा करनी चाइये परन्तु सही विज्ञापन को दिखकर सरकार ने कोई गलती नहीं की परन्तु सेक्युलर ब्रिगेड, न्यूज़ ट्रेडर्स जिसमे कुछ मीडिया के लोग, कुछ हिन्दू विरोधी और मुस्लिम तुस्तोकरण वाले लेखक और नेता बौखला गए और सरकार की मनसा पर सवाल उठा कर विरोध करना शुरु किया की ये सरकार सेकुलरिज्म को ख़तम करके हिन्दू राष्ट्र की तरफ पड़ रही है जिसका कोई तुक नहीं था और उनको आईडिया ऑफ़ इंडिया के लिए खतरनाक माना गया.क्योंकि १९५० की प्रस्तावना को ही दिखया गया था.सेक्युलर को तो इसाईओ और मुसलमानों को सीखना चाइये जिन्होंने लालच और हिंसा के बल पर धर्मान्तर करना शुरू किया और हमारे पूजा स्थलों को तोडा भी जिसकी झलक आज भी दिखई पद रही है.ये लोग जो सेक्युलर शब्द न होने में पागल हो गए ममता और शीला दीक्षित के मस्जिद के इमामो को सरकारी मदद ,हज पर सरकारी छूट ,ओवैसी भाईओ ,आज़म खान के देश विरोधी बयानों और मुस्लिम आरक्षण, कश्मीर से पंडितो के निष्क्रासन ,जिलानी का आतंकवादियो को शहीद कहने पर चुप्पी सादे रहते है तब इन्हें सेक्युलर शब्द याद नहीं आता.सेक्युलर शब्द इस्लाम में है ही नहीं इस लिए किसी मुस्लिम देश में ये प्रयोग में नहीं आता. इतिहास केवल लिखा भी नहीं जाना चहिये लेकिन इसे अनवरत बताना भी चाइये! वर्तमान में इस बात को फिर से आईडिया ऑफ़ इंडिया का प्रशंसक एक बुद्धिजीवी तबका और उदासीन मीडिया हवा देने का कसं कर रहा है !इससे शायद ही किसी को आश्चर्य हो की यह तकते एक सुर में नए सिरे से याद दिला रही है की सविधान की वर्तमान प्रस्तावना वही नहीं है जिसे १९५० में सविधान सभा ने अंगीकृत किया था.!१९४७ और १९७६ के बीच कई बार दंगे हुए परन्तु सेकुलरिज्म की किसी को जरूरत नहीं हुई.!असल में सेक्युलर के नाम पर हिन्दुओ के साथ अन्याय हो रहा हिन्दू कोड बिल हिन्दुओ के लिए परन्तु अन्य समुदाय के लिए नहीं इसी तरह मंदिरों का सरकारी हस्तपक्षेप हो सकता है परन्तु चर्च और मस्जिदों में नहीं.देश में एक सामान नागरिक सहिंता क्यों नहीं?इस विरोध के पीछे वही लोग है जो हिन्दू विरोध के लिए बहाने खोजते रहते है और गुजरात दंगो पर १३ साल तक मोदी को घेरते रहे !लगता है इस विरोध के लिए चर्च और इस्लामिक देशो का पैसा आता है.देश की जनता समझदार है और इन लोगो की मानसिकता से परचित है.सेकुलरिज्म पर नए सिरे से बहस की जरूरत है !

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