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वीर सावरकर -एक महान क्रांतकारी

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
हमारी आजादी में होने वाले स्वन्तार्ता संग्राम में बहुत लोगो ने योगदान कर हमारे देश को गौरान्वित किया जिनने बारे में हम बहुत से लोगो को मालूम भी नहीं.”विनायक दामोदर सावरकर” भी एक ऐसी महँ हस्ती थी परन्तु स्वन्तार्ता के बाद सेकुलरिज्म के नाम पर स्वतंत्रता संग्रमियो पर भी विवाद कर दिया सावरकर भी एक उनलोगों में शामिल है चुनकी वे हिन्दू महा सभा में थे इसलिए वाम डालो और कांग्रेस उनको स्वंतंत्रता सेनानी मानते ही नहीं थे इसलिए उनकी मूर्ती को संसद में लगाने का विरोध करते रहे परन्तु अटलजी के समय उनकी मूर्ती को संसद में राष्ट्र भक्त के रूप में लगाया.असल में २ तरह के देश्वशिओन ने इस आन्दोलन में अपनी भूमिका निभाई एक जो अहिंसा के रास्ते पर चले जिन्न्मे गांधीजी और उनकी सेना थी दुसरी तरफ नेताजी सुभाष बोसेजी भगत सिंह आदि लोग थे जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ हथियारो,बम के द्वारा युद्ध किया.स्वतंत्रता मिलने में दोनों का योगदान था.
सावरकरजी का जन्मा २८ मई १८८३ को नासिक में हुआ था.उनके माँ बाप दोनों की मृत्यु हैजे की महामारी से हुए.और उनका पालन भाई ने किया था.उनकी शिक्षा उनके स्वसुर ने कराई थी.सावरकर एक हिन्दू राष्ट्रवादी विचार धरा को नयी ज़मीन देने वाले नेता थे.एक महँ क्रांतिकारी के साथ वे अच्छे लेखक ,कवि और ओजस्वी वक्ता भी थे.स्वतंत्रता प्राप्ति के मुद्दों पर गांधीजी .और सावरकरजी की सोच और नज़रिया में फर्क था,वे ताउम्र अखंड भारत के पक्ष पर थे !१९४७ में आज़ादी के बाद भी विभाजन का विरोध करते रहे .१५ अगस्त १९४७ को सावरकर ने तिरंगे झंडे के साथ भगवा ध्वज का भी रोहण करते हुए वहां पत्रकारों के सामने अपनी व्यथा प्रगट करते हुए स्वराज प्राप्त की खुशी जताई साथ ही दुःख भी व्यक्त किया कि हमें आधा नाहे पूर्ण स्वराज का स्वप्न देखा था.जब वे हाई स्कूल में थे उस वक़्त उनके युवा जोश ने इस्थानीय नवयुवको के साथ मिलकर एक मित्र मंडली बना डाली और उनके भीतर राष्ट्रप्रेम की भावना जगाने के लिए प्रेरित किया जो बहुत जल्दी पुरे नासिक में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति की ज्वाला के रूप में प्रज्जवलित हो उठी १९०४ में उन्होंने “अभिनव्भारत”नाम का एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की.१९०५ में भारत विभाजन के बाद उन्होंने इस संगठन के साथ मिलकर पुणे में विदेशी वस्त्रो की होली जलाई.इंडियन सोशियोलोजिस्ट और तलवार नमक पत्रिकाओ में आज़ादी से सबंधित लेख छपवाए .१० मई १९०७ उन्होंने इंडिया हाउस लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई .!१९०८मे उन्होंने ” द इंडियन वर ऑफ़ इंडिपेंडेंस १८५७” किताब पुरी की.ब्रिटिश सरकार ने इस पुस्तक के प्रकाशन को रोकने की हर कोशिश की परन्तु उन्होंने गुपचुप तरीके से हॉलैंड से प्रकशित करवा ली.`! ये पुस्तक १८५७ के स्वंतंत्र संग्राम के पर थी जिसे ब्रिटिश सिपाई विद्रोह का नाम देते थे.१९०९ में लन्दन से बार एट लॉ की परीक्षा पास कर ली परन्तु उनकी ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ गतिविधिओ के कारन उन्हें वकालत करने की अनुमति नहीं मिली.देश लौटने के बाद नासिक से उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लडाई चालू रक्खी .७ अप्रैल १९११ख़ नासिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा के लिए सेलुलर जेल भेज दिया जिसकी कोठरी ओटनी संकरी थी कि वहां खड़े होने या सोने तक की पुरी जगह नहीं होती थी .कैदियो को नारियल की रस्सी बटने से लेकर नारियल से तेल निकलने के लिए कोल्हू के बैल की तरह जुटना पड़ता था.जरा सी ढिलाई दिखने पर कोड़े बरसाए जाते थे.इतना काम के बाद भी पेट भर खाना नहीं मिलता था.लेकिन इस दमनात्मक रविये के बाद भी उनकी सोच और इच्छाशक्ति पर कोई फर्क नहीं पड़ता था.!१० साल बाद २१ मई १९२१ को जेल से छुट्टी मिली थी.वहां पर भी हिंदुत्व पर शोध ग्रन्थ लिखा था.
१९२५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डाक्टर हेडगेवार से हुई.१९३१ में हिन्दू समाज के लिए पतित पवन मंदिर की स्थापना की.१९३७ में अहमदाबाद में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए और ७ सालतक रहे.२२जुने १९४१ को नेताजी सुभाष चन्द्र बोसे से मुलाकात की .बंटवारे के खिलाफ उनके बयानों को देखते हुए ४ अप्रैल १९५० को पकिस्तानीप्रधान्मंत्री लियाक़त अली खान के दिल्ली आगमन पर उन्हें कड़ी सुरक्षा में बेलगाम जेल में रोक कर रक्खा गया था ८ अक्टूबर १९५९ में पुणे विश्वविधालय ने उन्हें डी.लिट्.की उपाधि दी थी.२६ फरबरी १९६६ को आज़ादी के इस वीर सिपाही ने मुंबई में अंतिम सांस ली.
सौजन्य :- संस्कार पत्रिका फरबरी २०१५.

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