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उर्मिला जी के कुछ मार्मिक प्रसंग

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
रामराज्य के बनवाने में जनकजी की ४ पुत्रियों का महान योगदान है जिनके बलिदान और सूझ भूझ की दुसरी मिशाल मिलनी है.महाराजा दशरथ की चारो पुत्रबधुओ ने जो त्याग ,दूरदर्शिता और साहस का परिचय दिया उसकी मिसाल मिलना बहुत मुस्किल है.भरतजी के धर्मपत्नी मान्ध्वी और शत्रुघंजी की श्रुतिकीर्ती के बारे में बहुत ज्यादा नहीं मिलता क्योंकि उर्मिल्लाजी के बारे में विभिन्न ग्रंथो में बहुत लिखा है क्योंकि यह अयोध्या में रहती थी जबकि उनके पति लक्ष्मणजी भगवन राम और माँ सीता के साथ बन में गए थे.लक्ष्मणजी वन जाने के पहले जब उर्मिल्लाजी से मिलने जा रहे थे तो उनके मन में २ शंकाये थी.पहली की उर्मिलाजी रोयेगी और दुसरी साथ जाने के लिए जिद्द करेगी लेकिन मिलने के बाद जब ऐसा कुछ नहीं हुआ औ उर्मिलाजी न रोई न हर्र चलने के लिए कहा तो लक्ष्मणजी बहुत खुश हुए और उर्मिलाजी के त्याग और सहस को देख खूब रोहे.उर्मिलाजी ने कहा की आप जब रामजी और सीताजी की सेवा में जा रहे तो आपके त्याग और सेवा को देख कर रोना नहीं परन्तु आप पर गर्व हो रहा है और अओके साथ चल कर हम आपको सेवक के धर्म में बाधा नहीं डालना चाहते !इसके अलावा उर्मिलाजी १४ साल तक अपने कमरे में एक दिया अखंड ज्योति जलती रही और पुरी तरह खुश होती सबकी सेवा करती रही.
जब हनुमानजी लक्ष्मणजी के शक्ति लगने पर संजीवन बूटी ले कर अयोध्या के ऊपर से जा रहे थे और भरतजी के वाण से गिर् गए और उर्मिलाजी को समाचार मिला तो वे वां पहुची और उनको देखकर हनुमानजी ने पूंछा की माँ आपके पति वहां मूर्छित पड़े है और यदि हम ये बूटी सूर्य हिने के पहले नहीं पहुंचा सके तो लक्ष्मणजी मर जायेंगे इसपर उर्मिलाजी ने हस्ते हुए पूंछा और कहा की जो दिया हमने जला रक्खा है वोह जल रहा इसलिए हम बेफिक्र है.फिर कहा की हमारे पति के रोंम रोंम में भगवन रामजी है !फिर पूंछा की कौन रो रहा है हनुमानजी ने कहा की भगवन राम रो रहे है और लक्स्मंजी उनकी गोदी में सो रहे है.माता उर्मिलाजी ने कहा की जो भगवन राम की गोदी में सो रहा वो कैसे मर सकता.बाण भगवन राम के लगा और लक्ष्मणजी केवल आराम कर रहे हैं.और आप फिकर न करो जब् तक आप नहीं पहुनचोगे सुरय भगवान को हम उदित नही होने देगे ..उर्मिलाजी की बात सुन कर हनुमानजी बहुत खुश हुए उनकी बहुत प्रशंसा की और बूटी लेकर वापस लंका को चलकर सूर्य उदय होने से पहले पहुँच गए और इस तरह लक्ष्मणजी फिर खड़े हो गए.जनकजी की ४ पुत्त्रियो के वलिदान की दुसरी मिशल मिलना है au

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