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जय श्री राम
हमारे देश में अध्यापको(गुरुओ) और डाक्टरों को भगवान् के सामान मन जाता है.!मन जाता है की माँ बाप बच्चो को गुरु के सुपर्द करके ये उम्मीद करते है की वे बच्चे का संपूर्ण विकास करने में अपना योगदान देंगे जिससे वे राष्ट्र की सेवा में अपनी भूमिका निभा सके !इसी तरह मरीज के पास जैसे ही डाक्टर आते है मरीज को पूरा विश्वास हो जाता है की अब उसका इलाज़ ठीक से हो सकेगा.जब डाक्टर्स को डिग्री दी जाती है उन्हें एक सपथ दीनी पड़ती है की वे इलाज़ पुरी ज़िम्मेदारी से करेंगे.परन्तु आजकल दोनों लोगो ने शिक्षा और इलाज़ को व्यप्पर में बदल दिया और केवल एक ध्येय है ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाया जाया.लेकिन इसके मायने ये नहीं की कुछ अच्छे लोग नहीं हैं परन्तु ऐसे लोगो की संख्या बहुत कम है और भाग्यवश ऐसा होता है.डाक्टर्स लोग दवाई वालो से और जांच करने वालो से कमीशन लेते है जिससे ज्यादा से ज्यादा टेस्ट जांच के लिए लिख देते हैं..फीस भी रोज़ बढ़ाते जाते है.सरकारी हस्पतालो के डाक्टर सभी तरह की अनिमिताये कर के टीक से देखते नहीं, बहुत जगह तो अपनी निजी क्लिनिक में बुला लेते .बड़े बड़े हस्पतालो में मरीज़ के मरने के बाद में आई .से.यू में पैसे वसूलने के बाद एक दो दिन रख लेते.एक बार हस्पताल में जाने के बाद किसी न किसी बहाने से मरीज़ के घर वालो की जितनी ज्यादा से ज्यादा जेब खाली करवा सको कर लो.गरीबो और मध्य वर्गी लोगो का बुरा हाल है इलाज़ इतना महंगा हो गया.बहुत से हस्पतालो में पैसे खूब वसूले जाते परन्तु सुविधाए पुरी नहीं होती और अच्छे डाक्टर भी नहीं होते.और वे इतने ज्यादा व्यस्त होते की टीक से मरीज़ का इलाज़ नहीं करते.!इसीलिए बहुत से केसेस सुने और पाए गए जिसमे लापरवाही की वजह से मरीजों की या तो जान चली गयी या अपांग हो गए या दूसरी समस्या हो गयी.इसको देखते हुए देश की अदालतों ने डाक्टर्स को उपभोक्ताकी श्रेणी में रखते हुए उनके खिलाफ उपभोक्ता संघ या अदालतों में सुनवाई हो सकती है.पहले अपराधिक मामले भी दर्ज हो सकते थे जिसमे जेल की सजा भी हो सकती थी परन्तु बाद में डाक्टरों और भारतीय चिकित्सा संघ (MEDICAL COUNCIL OF INDIA )के दलीलों को सुकर अपराधिक मामले से छूट देते जुर्माने की सजा को रक्खा है.
लापरवाही को सिद्ध करना एक बड़ी समस्या है क्योंकि कोई डाक्टर को ही लापरवाही हुयी लिख कर देना पड़ेगा जो बहुत कटीं है क्योंकि कोई डाक्टर किसी दुसरे के खिलाफ लापरवाही की रिपोर्ट नहीं देते है.इसलिए बहुत कम मामले में उनके खिलाफ कार्यवाही होती है.!यादे किसी को लगता है की उसके मरीज़ के साथ लापरवाही की वजह से मरीज़ की मौत हो गयी या अपांग हो गया या गलत इलाज़ की वजह से और कोई और ज्यादा खतरनाक दूसरी समस्या हो गयी जैसे शरीर में लकवा हो जाये तो इसकी रिपोर्ट लिए निम्न तरीके है.
१.पुलिस में रिपोर्ट लिखवाओ और पुलिस जांच करके यदि सही पायेगी तो अदालत में केस दर्ज करेगी
२.जिला ,,प्रदेश या राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में मुहावजे के अनुसार मामला ले जाया जा सकता है.२० लाख तक का मामला जिले में, २० लाख से ज्यादा और एक करोड़ से कम प्रदेश और १ करोड़ से ज्यादा राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में फ़रियाद की जा सकती है.ये शिकायत मामले के २ साल के अन्दर दर्ज की जा सकती है.इन आयोग में कोई चाहे तो अपनी पैरवी खुद कर सकता या वकील को कर सकता है.इन आयोगो से उम्मीद की जाती की मामले में न्याय जल्दी मिले परन्तु दक्रारो के खिलाफ लापरवाही सिद्ध करना टेडी खीर है.!नियमानुसार योग खुद डाक्टर नियुक्त करता है परन्तु तब भी मुस्किल है.
कुछ मामले जिपर डाक्टरों के खिलाफ मामला सिद्ध हुआ और उनको जुरमाना देना पड़ा बहुत कम हैं.इतिहास का सबसे बड़ा जुर्माना कोलकत्ता के MRI हस्पताल पर और उनके ३ डाक्टर्स प् लगा हर हो २०-२० लाख रुपये जबकि हस्पताल को ६ करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया जिपर १५ साल का ६% की दर से ब्याज भी लगाया गया इस तरह ये राशी १२ करोड़ हो जाती है.इस केस में भारतीय मूल के अमेरिकन डाक्टर कुमार साहा को उसकी पत्नी की १९९८ में मृत्यु के सिलसिले में दिया गया था चूँकि कुमार खुद डाक्टर था उसके लिए लापरवाही सिद्ध करने में ज्यादा समस्या नहीं आयी तबभी इस केस को निबटने में १५ साल लग गए.!मई २००९ में हैदराबाद के एक इंजीनियर के मामले में १ करोड़ का जुरमाना लगाया गया क्योंकि इलाज में गलती से लकवा ग्रस्थ (PARALYSIS ) हो गया था.फरबरी १९९५ नेशनल टेबल टेनिस खिलाड़ी चन्द्र शेखर चीनी को १९ लाख का हर्जाना मिला.इन मामलो में हर्जाने मिलने का औसत १% भी नहीं है क्योंकि लापरवाही सिद्ध करना डाक्टरों के खिलाफ बहुत मुस्किल होता है इसी का फ़ायदा उठाते हैं.
मै स्वयं भुक्तभोगी हूँ और अपने केस को सर्वोच्च न्यालय तक लड़ चुके परन्तु कोई हर्जाना नहीं मिल पाया क्योंकि डाक्टरों के खिलाफ लापरवाही नहीं सिद्ध हो पाई हमरे पक्ष में कोई डाक्टर तैयार नहीं हुआ और एक डाक्टर ने रिपोर्ट दे दी की की कोई लापरवाही नहीं हुयी और इस तरह हम और परिवार आर्थिक और मानसिक व्यथाएँ पिछले १९ से सहा रहा और हम बिस्तर पर हैं कमर के नीचे का भाग बेकार खड़े तक नहीं हो सकते और हर महीने ४००० रुपये दवाई और एक्सरसाइज (physiotheraphy )में खर्च करना पडता है.हमारे हार का कारन था की हमको २ डाक्टरों और एक बड़े नामी हस्पताल के खिलाफ केस लड़ना पड़ा और हमारी तरफ से एक वकील को कर दिया गया जिसने कोई दिलजस्पी नहीं दिखाई और १३ साल तक केस चले.केवल हमारे खिलाफ कोई आर्थिक दण्ड नहीं किया गया.असल में माय १९९५ में हमको बुखार खांसी और पीठ में दर्द की शिकायत हुयी परन्तु डाक्टर टीक से पता नहीं लगा पाए और की यह बॉन टी बी (रीड की हड्डी की टी.बी.)थी कानपूर के बड़े हस्पताल को २५ नवम्बर १९९५ को ऑपरेशन हुआ १० दिन बाद छुट्टी और कहा सफल ऑपरेशन हो गया.जब २ रोज़ बाद तबियत खराब हुयी तो फिर दिखया mri से पता चला की ऑपरेशन गलत हुआ फिर १२ दिसम्बर को दूसरा ऑपरेशन दुसरे डाक्टर से कराया उसने भी गलत कर दिया फिर १७ जनवरी १९९६ को तीसरा ऑपरेशन दिल्ली में करवाया सो सफल तो हो गया परन्तु पहले २ गलत होने की वजह से कमल के नीचे का हिस्सा बेकार हो गया और खड़े होने और चलने में असमर्थ.पिछले १९ साल से बीएड में बड़े रहते है. परन्तु २ महीने में रीड की हड्डी के ३ ऑपरेशन होते हुए भी जिन्दा रहे ये ईस्वरीय चमत्कार से कम नहीं और ये हमारे हनुमानजी की कृपा थी.जुलाई १९९६ में राष्ट्रीय उपभोक्ता संघ में २ डाक्टर और हस्पताल के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया ६ साल बाद मुकदमा हमारे खिलाफ हुआ एक डाक्टर की रिपोर्ट की वजह से..फिर सर्वोच्चा न्यायालय में अपील की ७ साल बाद केस वापस उपभोक्ता संघ को भेजा वहां से फिर कोई रहत नहीं मिली इस तरह जहां हम और हमारा परिवार आर्थिक, मानसिक कष्ट झेल रहा डाक्टर मौज कर रहे.शायद हमारे केस को देखकर फोरम ने हारने के बाद कोई आर्थिक दंड नहीं लगाया.
हमने कई बार कोशिश की की हमारा केस टीवी चैनल्स वाले दिखाए परन्तु दिखने की तो बात दूर किसी ने जवाब तक नहीं दिया.देश में हर काम सिफारिश से चलता है.इस देश में न कितने लोग हमारी ही तरह अन्याय के शिकार होते होंगे क्योंक बड़े लोगो से लड़ने के लिए अच्छे वकील के साथ उनके पीछे लगने की भी ज़रुरत होती है.सो हमारे पास इतनी सुविधा नहीं थी हां आर्थिक तगी से आधा मकान बेचना पड़ा परन्तु तब भी भगवन को धन्यवाद् देते खुशी से जी रह रहे हैं जिसके लिए भगवानजी के आभारी है जिन्होंने हमारी धर्मपत्नी और बच्चो को हिम्मत दे रक्खी है.
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