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हमारे देश की होली के विभन्न रंग.

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
हमारे पूर्वजो ऋषि मुनिओ ने हमारे त्यौहार को सामाजिक सहरस्ता के लिए बनाये थे जिसका अध्यात्म के साथ प्रकर्ति से भी सम्बन्ध होता है.फाल्गुन की पूर्णिमा से शुरू होना होली का त्यौहार एक अन्नोथा है जिसमे आनंद ही आनंद के साथ भाई चारा पैदा करने वाला जाना जाता है.होली जलने,रंग खेलने और बाद में होली मिलन समाज में सभी तरह के भेदभाव भूल कर पास आंने का एक सुअवसर प्रदान करता है.होली जलने के पीछे पौराणिक मान्यता भक्त प्रहलाद और उसकी बुआ होलिका से जुडी है जिसको न जलने का वरदान था और जो अपने भाई हिरण्यकशयपु के कहने से प्रहलादजी को जलने के लिए गोद में ले कर बैठी परन्तु भगवन भक्त प्रहलादजी बाख गए और होलिका जल गयी जो हमें सन्देश देता है की बुराई पर अच्छाई की जीत.ये हिन्दू नव वर्ष की श्रुहात के आगाज़ के साथ सर्दी का अंत, गर्मी के साथ बसंत ऋतू की शुरुहात भी होती है.खेतो में पीली पीली सरसों के फूल लहलह्राते लगते है.पेड़ो पर पत्तो की हरी कोपले और पलाश के केसरिया फूल मन को आनंदित कर देते है.गाँव में जगह जगह फागुन के गीत बजते है और शहरो में पुराने और आधुनिक ढंग के गाने बजते है.हल्की हल्की सर्द हवाओ के बीच वृक्षों पर लगे रगीन फूल की भीनी भीनी सुगंध से मौसम का सौंदर्य बह्गुत बढ़ जाता है.होली मुग़ल शासन में भी खेली जाती थी जिसका वर्रण इतिहास में भी मिलता है.बहुत से जगहों में विभिन्न तरह के कवी सम्मलेन,हास्य कवी सम्मलेन ,मुर्ख सम्मलेन या मुशायरे के प्रोग्राम भी होते है.
विभिन्न प्रदेशो में होली विभिन्न तरीको से मनाई जाती है.दुसरे दिन रंग खेल कर शाम को होली मिलन होता है जिसमे सब लोग एक दुसरे से मिलते है.विभिन्न संस्थाए ओने कैंप भी लगते है.कानपूर में होलो जलने के ७ दिन बाद मिलन मेला होता है क्योंकि अंग्रेजो के समाया से अनुराधा नक्षत्र में मानाने की रिवाज़ चली आ रही है.इस त्यौहार ने अब बहुत सी बुराई आ गयी रासायनिक रंगों, प्रेस के गंदे रंग लगाने से चर्म रोग हो जाते आँखों में नुक्सान हो जाता या फिर रंग खेलने के नाम पर छेड़छाड़ की घटनाये हो जाती जो बहुत ही निंदनीय है.रंग ऐसे होने चाइये जो किसी को नुक्सान न करे और त्यौहार की गरिमा बनी रहे.जो लोग न छाए उनपर रंग न डाले और इसी बात को लेकर कई जगह सम्प्रदिक दंगे भी हो जाते है जिससे मज़ा बिगड जाता है पहले टेसू फूल की और गुलाल से होली खेली जाती थी.कुछ जगहों की होली बहुत प्रसिद्ध है और होली के कई दिन पहले से शुरू हो जाती है.कुछ जगहों की इस तरह है.होली में विभिन्न तरह के पकवान बनाये जाते हैं जिसमे गुजिया और कांजी का बडो का बनना विशेष होता है. होली और बसंत पर हिंदी साहित्य में बहुत कुछ लिखा गया जिस्सको पड़कर बहुत मज़ा आता है.इस होली की रौनक अलग ही है जो हम सो को आन्नद से विभोर कर देती है.

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