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कुछ खास जगहों की विशेष होली –

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
भारतीय संस्कृत का मिजाज़ हमेश उत्सवप्रिय रहा है.नववर्ष के आगमन से शुरू होने वाला त्योहारों का यह सिलसिला पुरे साल चलता रहता है,जिनकी उमंग लोगो के जीवन को खुशी से भर देती है !उत्सव का सम्बन्ध की जाति,धर्म ,क्षेत्र या भाषा से न हो कर आपसी समभाव और खुशिओं से होता है.रंग,हंसी खुसी का ये त्यौहार देश के विभिन्न प्रदेशो में विभिन्न तरीके से मनाया जाता परन्तु मौज मस्ती में कोई कमी नहीं.विदेशो में भी जहाँ भारतीय अच्छी संख्या में है होली मनाई जाती है कुछ प्रदेशो और विदेशो के बारे में कुछ दिलचस्प बाते का वरण दिया है.
भोजपुरी होली:- फाल्गुन शुरू होते ही `१इन क्षेत्रो का मिजाज़ बदल जाता और गाँव के बूढ़े बच्चे ढोलक झाल लेकर होली के गीत गाते पुरी जगह घुमते नज़र आते.वसंत पंचमी से शुरू हुआ होली तक चलता है.ये उत्तर प्रदेश के पूर्वी भागो और बिहार फगुआ की स्वर लहरियो से गूंजायमान रहता है.किशोरों के छोटे छोटे दल लोगो के घर जा जा कर होली के लिए लकड़ी, उपले ये गीत गाते हुए मांगते है “ए यज्मानिन तोहरा सोने के केवाड़ी ..पांच गो गोइठा द”इन दिनो हर शाम संगीत संध्या बन जाती है.ये होली रोज़ जगह बदलती रहती है.दहन के अगले दिन युवको की टोली होलिका दहन वाले स्थल जा कर राख की पूजा करते फिर उसी रख से होली खेलते फिर रंग से खेलते.शहरो में होलिका दहन के दिन अपनी बुरी आदतों को होलिका के साथ ही दहन का संकल्प करते है.
राजस्थान :- इन दिनों बहनों गोबर से कन्डो के माला से अपने भैहो की नज़र उतारतीहै और फिर उस माला को होलोका के साथ जला दिया जाता .मान्यता है की होलिका दहन के साथ ही भाईओ प् आने वाली बुरी बलाये भी जलकर राख हो जाती.जयपुर में भगवन गोविन्दजी के मंदिर में भक्त लोग भगवन से रंग और फूलो की होली खेलते .ये प्रथा २५० सालो से चली आ रही.मंदिर खूब सजाये जाते और ३ दिन ताल सभी तरह के कलाकार अपनी अपनी कलाओ का प्रदर्शन करते.जिससे वातावरण नृत्य और संगीतमय रहता है.बाडमेर में पत्थर मार होली होती है.जबकि अजमेर में कजद जाति के लोग कोड़ा होली खेलते हैं.
मणिपुर :-यहाँ ६ दिन चलती है जिसे योसांग कहते है.इन दिनों लोग कृष्णाजी के मंदिर में पीले और सफ़ेद रंग के पारंपरिक परिधान पहन कर जाते हैं और संगीत और नृत्य करते है और थाबल चोंगा वाध बहाया जाता .
महाराष्ट्र और कोकर्ण:- मचुहारो की बस्ती में खूब नाच गाना और उमंग होता है.ये मौसम शादी तय करने के लिए उपयुक्त मन जाता है.सब मछुहारे एक दुसरे के घरो में मिलने जाते है.महाराष्ट्र में पूरनपोली मीठा स्वादिष्ट पकवान बनाया जाता है .गोवा में इस अवसर पर विभिन्न तरह की मिठाइयाँ बनाई जाती है.
बंगाल :- यहाँ एक दिन पहले मनाई जाती है इसे “दोल उत्सव “कहते है.इस दिन महिलाये लाल पट्टियों वाली सफ़ेद सारी पहन कर राधा कृष्णा की पूजा करती है.और प्रभात फेरी का आयोजन करती है.इस दिन कही तरह के पारंपरिक पकवान मिठाइयाँ -सन्देश,रसगुल्ले आदि बनते है.कई जगह मुसलमान और ईसाई भी साथ साथ मानते है.
पंजाब का होला -मोहल्ला :-सीखो के पवित्र धर्मस्थान आनंदपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते है.तीन दिन तक चलने वाले मेले में सीखो की शौरयता का प्रदर्शन होता है साथ ही वीरता के कर्तव्य भी दिखाए जाते है.
मध्य प्रदेश:-होली के ५ दिन बाद बाद होने वाले इंदौर में हिने वाले पेव को रंग पंचमी कहते है जिसका मालवा में विशेष महत्व है.होलकर वंश में आज़ादी के पहले से इसे मनाया जाता था पहले लोग रज़वाड़े में जा कर होली खेलते थे और नाचते गाते थे.आज़ादी के बाद मल्हारगंज टोरी कार्नर से रंग्पंच्म्री पर इसे गेरे का नाम देकर निकला जाता है एक समय इसमें हाथी, ऊँट घोड़े आदि शामिल होते थे. प्रदेश में भील जनजाति द्वारा मनई जँव वाली होली को भगौरिया कहते है.जो स्वयाम्भर प्रथा का एक रूप है.भगौरिया मेले में युवक युवती सज धज कर अपना जीवनसाथी ढूढने जाते है.रजामंदी होने का तरीका बेहद दिलचस्प है.ओस दिन युवा लोग मांडल की थाप पर नाचते हैं और यदि कोई युवक किसी युवती के मुह पर गुलाल लगता है और बदले में युवती भी लगा देती है तो मन जाता है की दोनों विवाह के लिए सहमत है.यदि जवाब नहीं देती तो फिर दुसरे के तलाश में जाता है.
हरियाणा :- यहाँ होली धुलेडी के नाम से जानी जाती है.और सूखी होली गुलाल और अबीर से खेलते है और इस दिन भाभियों को पुरी छूट रहती है की वव देवरों को साल भर सताने का दंड दे .शाम को देवर भाभी के लिए उपहार लता है और पैर छूता है और भाभी आशीर्वाद देती है.
बनारस :- गाने की धुनों में नाचते विदेशी पर्यटक,घटो पर रंग और भंग की मस्ती में सरोबार लोग हर हर महादेव के नरो से गूंजता वातावरण यही यहाँ की पहचान है.मिठाइयाँ, मालपुये,जलेबी,नमकीन की खुशबू होली के उत्साह को दुगना कर देती.भंग और ठंडाई तो बनारसी होली की पहचान है जिसे शिवजी का प्रशाद मन जाता है.बाबा विश्वनाथजी के दरबार से शुरू होने वाली होली बुढवा मंगल तक चलती है.
नंदगाँव-बरसाने :- “कान्हा बरसाने में आई जइयो बुलाए गयी राधा “इस गीत के साथ ही ब्रज की होली की शुरुहात होती है नंदगाँव के लोग टोलिया बना कर राधाजी के गाँव बरसाने जाते है और मंदिरों में पूजा के बाद वहा की महिलाओ के साथ जमकर होली खेलते है और महिलाये लाठिया बरसाती है और नंदगाव के लोग रंग डालते है.इसे देखने बड़ी संख्या में देशी विदेशी लोग आते है.
वृन्दावन :- इसको खेलने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं.यहाँ रंगों के अलावा फूलो से भी होली खेली जाती है.होली की शुरुहात बनके बेहरीजी मंदिर से होती है. इसके बाद पूरा शाहे होलीमय हो जाता है.विधवा आश्रम में भी खेली जाती है जिससे विधवाओ को कुछ देर के लिए खुशी मिल जाती है.
कुमाऊ :-“रंग डारी दियो हो अलबेलिन में ….गए रामचंद्र रंग लेने को गए …रंग डारी दियो हो सीता देहि में “होली में गए ये पहाडी होली गीत मन मोह लेते है नैनीताल और अल्मोड़ा में होली से कई दिन पहले शुरू हो जाती है यहाँ की होली में अवध से लेकर मिथिला तक की चाप देखने को मिलती है.फूलो के रंगों और संगीत की तान का संगम देखने लायक होता है.शाम से होली की सुरीली महिफिले जमने लगती है फाग और गीतों का सिलसिला सुबह तक चलता अंत में ठुमरी गाई जाती है,
अमेरिका :-
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