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मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
सबसे पहले भगवन राम के प्राकट्य पर्व राम नवमी के पवन पर्व पर सबलोगो को हार्दिक शुभकामनाये और प्राथना है की भगवन रामजी हमारे राष्ट्र को आशीर्वाद दे कर बुराईयों का अंत कर राष्ट्र के दुश्मनों को ख़तम करे.
रामायण के प्रमुख पात्र श्रीराम की मुख्य विशिष्टता उनके मर्यादा पुरुषोतम वाले स्वरुप से है.जीवन के हर क्षेत्र में वे अपनी मर्यादाओ से बंधे हुए है.कही भी कभी भी उनका निजी हित या स्वार्थ उन पर हावी नहीं हुआ.वे पूर्णता अपने समाज और देश के प्रति समर्पित है.वे रघुकुल भूषण कई और समाज के लिए आदर्श और अनुकर्णीय है.तथा जन-जन के ह्रदय में भगवन के रूप में प्रतिशिस्त है .उनका सम्पूर्ण जीवन उनके आदर्श स्वाभाव तथा मर्यादा पुरषोत्तम स्वरुप का प्रतीक है.!रजा जनक के दरवार में वे शिवधनुष को उठाने और तोड़ने में कोई उत्सुकता या व्यग्रता नहीं दिखाते !जब राजा प्रथ्वी को वीर विहीन बतलाने लगते और गुरु विश्वामित्रजी के आदेश से धनुष को तोड़ कर अपना कर्त्तव्य पूरा करते है.परन्तु उनके मन में तनिक भी अहंकार नहीं होता है !महर्षि परशुराम के कुद्द्र स्वभाव को देखकर भी आवेश में नहीं आते और अंत में अपने वाकचातुर्य और विनम्रता के आधार पर परशुरामजी का स्नेह प्रपात कर लेते है.रामायण उनके आदर्श स्वाभाव से भरी पडी है.जब उनके राज्याभिषेक के निर्णय के बाद माता केकई के वरदान के कारन उन्हें वन जाना पड़ा जहां पुरी अयोध्या शोक मग्न थी उन्हें कोई दुःख नहीं था और राज्य छोड़ कर माता सीता और भाई लक्ष्मणजी के साथ वन को चल दिए.रामराज्य की शुरुहात तब हुई जब उन्होंने निषादराज को गले मिलकर अपने दोस्त बनाया.इसके बाद भाई भरत के अयोध्या आने पर सब समाचार जान कर भगवन राम को मनाने चित्रकूट पहुँच कर अनुनय विनय करते और फिर रामजी के समझाने पर उनकी खडाऊ ले कर लौ आते है परन्तु सिंघासन पर न बैठ कर कुतिया में रह कर राज्य करते है.बनवास समाप्त करके रवां को मार कर अयोध्या राज्य के लालच के लिए परन्तु भरतजी की जीवन के लिए लौट आते है.केवट प्रेम की कहानी उत्कृत उधाहरण है उनके प्रेम और सौजन्यता का सुग्रीव से मित्रता और उसको वाली को मार कर राज्य दिलवाना और हनुमानजी के द्वारा सीतामाता की खोज, समुद्र में पुल बंधना और रावण से युद्ध कर राक्षशो को मार कर विभीषण को राज देकर उनकी उदारता का परिचय है की राक्षस वंस के विभीषण को भी भाई की तुल्य व्यवहार करते है.राम रावणयुद्ध दो विचारधाराओ के बीच का संघर्ष है एक आध्यात्मिकता और दूसरा भौतिकता.एक तरफ मानव और दुसरी तरफ राक्षसी संस्कृति थी रवां को इसलिए मारा क्योंकि ऋषि मुनियों को आश्रम में जा कर आक्रमण कर उनके धार्मिक अनुश्तानो को नाश्ता करता था और उनकी धर्मपत्नी माता सीता को उठ लाया था.उन्होंने समझाने का प्रयास किया कोई फैयदा नहीं परन्तु उसकी विद्वता का सम्मान करते थे इसीलिये मृत्यु के पहले लक्ष्मणजी को उपदेश नेने के लिए भेजा था.उन्होंने समाज के सभी लोगो को एक माना और कोई भेद भाव नहीं किया.शबरी के झूठे बेर कहाए बाद में राज्य धर्म का पालन करते माता सीता को दुबारा वन भी भेज दिया.समानता का ये आदर्श भारत में विशेष रूप से अनुकरणीय है.उन्होंने हनुमानजी,सुग्रीव जम्वंत्जी और वानर भालुओ को भी पूरा सम्मान दिया कभी कोई घमंड नहीं हर एक सफलता का श्रेह गुरुओ और साथिओं को देते थे. उन्होंने हमको सिखाया की एक भाई के साथ भाई का, एक सच्चे पुत्र,अच्छे पति, अछे दोस्त , अच्छे राजा,एक शिष्य गुरु के प्रति कैसे आच्चारण करना चाइये.उन्होंने प्रजा को भी उनकी गलती बताने की छूट दे रक्खी थे.न्याय और राजधर्म के पालन में कोई रिश्ता कभी बाधित नहीं होता था,
भगवन राम के आदर्शो को जगह जहग होने वाली राम लीलाव द्वारा प्रदशित किया जाता और थाई लैंड, कम्बोडिया,विएतनाम, इंडोनेशिया में बहुत प्रभाव है व मंदिरों भी है और रामायण के पत्रों के नाम से जगह के स्थान है रामलीला से मिलता जुलता कार्यक्रम भी होता है.
जहाँ देश विदेशो में करोडो लोग भगवन राम के अनुयाही है मनमोहन सरकार ने सर्वोच्च न्यालय में शपथ पत्र दे कर कहा की भगवन राम और राम सेतु का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है ज्जिस्से हमारी भावना को अनादर किया.केंद्रीय सरकार के १४ अनियार्य अवकाशों में राम नवमी और जन्मास्थ्मी नहीं है जबकि मोहम्मद और क्राइस्ट की है.भगवन रामजी का कार्य काल करीब १० लाख पूर्ण है परन्तु टीवी में कुछ लोग आ कर ७००० साल बता देते है.हन्मारे देश में सेकुलरिस्म के नाम पर हिन्दुओ की भावनाओ को ठेस पहुचना एक आम बात है उम्मीद हो नहीं सरकार ऐसा नहीं करेगी.

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