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ईस्वरीय चमत्कार

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
यदि एक बालक जो २ महीने की उम्र में बीमारी की वजह से दोनों आखो की रोशनी खो देता परन्तु रामायण,गीता ,वेद पुरानो को मुहजवानी सुन कर याद कर लेता और पी एच्.दी (संस्कृत व्याकरण) में करके देश विदेशो में रामायण श्रीमद भगवत की कथा करते और २२ से ज्यादा भाषए जाने के अलावा ८० से ज्यादा किताबे और गीता, रामायण में टिकाये लिखी हो तो क्या ये ईस्वरीय चमत्कार नहीं तो और क्या कहा जा सकता है!.ये बालक आज जगतगुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी के नाम से जाने जाते है और चित्रकूट में देश और विदेश का पहला विकलांग विश्विध्य्लाया चला रहा है जिसमे विकलांग बच्चो को रहने,भोजन की मुफ्त शिक्षा दी जाती है.इसमें साइंस को छोड़ सभी विषयो में स्नातक,परस्नातक की पढ़ाई के साथ कुछ विषयो में रिसर्च की भी व्यवस्था है.यहा कंप्यूटर,IT के साथ बी.एड और ऍम एड की भी पढ़ाई होने के साथ विभिन्न हुनर की शिक्षा दे कर उनको रोज़गार और नौकरी का इंतजाम भी करा जाता है. इसको उत्तर प्रदेश सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता मिली है.२०११ में ३८८ विद्यार्थियो ने योगिता अर्जित की.
जौनपुर में राजदेव मिश्र जी के यहा १४ जनवरी १९५० को एक बच्चे का जन्म होता है जिसका नाम गिरधर मिश्र रक्खा गया .२ माह की उम्र में एक बीमारी के चलते दोनों आँखे की ज्योति चली गयी सब जगह इलाज करवाया परतु कोई फायेदा नहीं हुआ.और प्रज्ञाचक्ष है और बिना किसी की मदद के काम करते है.अपने बाबा से रामायण,गीता,श्रीमद्भागवत सुखसागर सुनते थे.३ वर्ष की आयु में अवधी में एक कविता रक कर पितामाह को सुनायी.पड़ोसी मुरलीधर जी की सहायता से ५ वर्ष की अल्प आयु में जेवल १५ दिनों में पुरी गीता श्लोक संख्या सहित याद कर१९५५ में जन्माष्टमी के दिन सुना दी.७ साल की उम्र में ६० दिनों के अन्दर पूरा राम चरित मानस १९५७ में राम नवमी के दिन कंठस्थ कर सुना दिया.इसके बाद संस्कृत व्याकरण ,भगवत, ,उपनिषद ,और तुल्सीदास्स्जी के सब ग्रन्थ कंठस्थ कर लिए..उनको गुरु इस्वरदास महाराज ने गायत्री मंत्र और रामनाम की दीक्षा दी. गाँव में २ बार राम कथा सूनी और तीसरी बार खुद कथा करना शुरू कर दी.१९६७ में जौनपुर में गौरी शंकर संस्कृत महाविद्यालय में विद्या अर्जन के लिए दाखिला लिया जिसमे संस्कृत,हिंदी,इतिहास,गणित ,भूगोल,व्याकरण आदि के साथ ४ वर्ष में प्रथम से मध्यमा की डिग्री सबसे ज्यादा अंक ले कर पास कर ली.१९७१ में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय बनारस में संस्कृत व्याकरण में शास्त्री ( स्नातक उपाधि ) के लिए प्रवेश लिया और १९७४ में सबसे ज्यादा अंक अर्जित करते पास किया.फिर आचार्य(परास्नातक )के लिए प्रवेश लिया.इसी बीच दिल्ली में एक संस्कृत सम्मलेन में भाग लेने पहुंचे और व्याकरण,सांख्य,न्याय वेदांत और अंताक्षरी में ५ स्वर्ण पदक जीते जिसे उस वक़्त की प्रधान मंत्री श्री माटी इंदिरा गांधी ने ५ स्वर्ण पदक प्रदान करने के साथ उत्तर प्रदेश का चलवैजन्ती पुरस्कार प्रदान किया और आँखों के इलाज़ के लिए अमेरिका भेजने का प्रस्ताव किया जिसे उन्होंने मन कर दिया.१९७६ में ७ स्वर्णपदको और कुलपति स्वर्णपदक के साथ आचार्य परीक्षा पास की इसके बाद पी.एच दी के लिए दाखिला लिया जिसके लिए यू सी जी से छात्रवृति मिली और १९८१ में उन्हें डिग्री के साथ उन्हें उसी विश्वविधालय में संस्कृत विभाग में अध्यक्ष पद में नियुक्ति हो गयी जिसे उन्होंने धर्म और समाज और विकलांगो के सेवा के लिए अस्वीकार कर दिया. १९९७ में उन्हें उनके शोध कार्य के लिए दी.लिट.की उपाधि इसी विश्वविधालय ने दी.
१९८३ में कार्तिक पूर्णिमा के दिन रामानंद सम्प्रदाय के रामचरण दास महाराज से विरक्त की दीक्षा ली.और रामभद्र नाम से जाने लगे.
१९८७ में चित्रकूट में तुल्सीपीठ नमक सामाजिक और धार्मिक कार्यो के लिए की और उन्हें “चित्रकूट तुलसी पीठधीश्वर”की उपाधी दी.इस पीठ में एक सीतारामजी का मंदिर निर्माण करवाया जिसे कांच मंदिर से जाना जाता है.जगतगुरु सनातनधर्म में उनलोगों को उपाधी दी जाती जिन्होंने कुछ विशिस्थ योगिता हासिल कल ली २४ जून १९८८ को बनारस के विद्वानों ने उन्हें जगतगुरु रामनन्दाचार्य की उपाधी दी जिसका बाद में प्रयाग कुम्भ मेले और बाद में अयोध्या के साधुओ ने अपनी सहमती दे दी और अब उनका नाम जगत गुरु राम नन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य हो गया इसके बाद संस्कृत में कई किताबे और टिकाये लिखी.२८-३१ अगस्त २००२ तक संयुक्त राष्ट सभा के सह्सब्दी शांति सम्मलेन में समबोधन किया और संतान धर्म ठाठ भारत के अध्यात्म पर लोगो को समझाया.फिर विकसित और विकासशील देशो से गरीबी उनमूलं,आतंकवाद के खात्मे और निराश्तिकरण पर एक जुट हो कर कार्य करने का अनुरोध किया अंत में शांति पाठ किया.
जुलाई २००३ में इलाहाबाद हाई कोर्ट में अयोध्या मामले में गवाह के रूप में हाज़िर हो कर विभिन्न ग्रंथो से अयोध्या में राम मंदिर होने के साक्ष प्रस्तुत किये जिन्हें सुधीर अगरवालजी ने अपने फैसले में विस्तृत रूप से उद्धत किये.
नवम्बर 2009में तुलसीदासजी की रामायण की टीकाओं से अयोध्या के साधुसंतो से थोडा विवाद हो गया था जो बाद में शांत हो गया आपसी समझदारी से.
उन्होंने ८० से ज्यादा उच्च कोटि के ग्रन्थ और टिकाये लिखी.देश विदेश में कथा कह कर और लोगो से आर्थिक सहायता ले कर विश्वविधालय का कार्य चलते है.उनको इस साल भारत सरकार से पद्मा विभूषण मिला इसके अलावा अटलजी,डॉ कलाम,प्रतिभाजी और सोमनाथजी से प्रशस्ति पत्रों ले साथ मिलने वाले पुरुस्कारों की बहुत लम्बी लिस्ट है.ऐसे महापुरुष मानवता की सेवा करने का अवसर भगवान् का आशीर्वाद है जो किसी चमत्कार से कम नहीं है.

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