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जय श्री राम
ऋगवेड में सरस्वती नदी के बारे में बहुत कुछ लिखा लिखा है ” सरस्वती नदी अपनी शक्तिशाली और तीब्र लहरों से पर्वत की चोटियों को ध्वस्त करती है टीक उसी तरह जिस तरह कमल के तने को उखाड़फेका जाता है.दूर और पास की चीजो पर प्रहार करने वाली उस नदी का प्रार्थना से आवाहन करना चाइये” .वैदिक संस्कृत इसकी किनारे विकसित हुयी थी.ये १५०० किलोमीटर लम्बी,३ से १५ किलोमीटर चौड़ी और औसतन ५ मीटर गहरी थी और जो पहाड़ से निकल कर सागर में मिलती थी. ५००० साल पहले अचानक लुप्त हो गयी थी.और मौजूदा राज्यों हिमाचल प्रदेश,पंजाब हरयाणा राजस्थान हो कर अरब सागर में मिलती थी.ज्यातर लोग इसको एक नदी के रूप में ही मानते जबकि बहुत कम इसे मिथिक के रूप में मानते है.हम लोग कहते है की प्रयागराज में गंगा यमुना के अलावा सरस्वती गुप्त रूप से मिलती है जिसका कोई प्रूफ नहीं इसके दुसरे कारन है.बहुत दिनों से इसकी खोज हो रही है जिसमे बहुत लोग कार्य कर रहे थे २००२ में वाजपेयी जी ने एक आयोग इसके लिए बनाया गया था परन्तु यू.पी.ऐ.ने इसको बंद कर दिया परन्तु विभिन्न स्त्रोतों से काम चलता रहा.२ दिन पहले हरयाणा के यमुनानगर में मुगलवाली में खुदाई के दौर में जल की धारा फूटने से सरस्वती नदी के अस्तित्व का सच सामने आ गया क्योंकि जांचने से ये पानी इसी नदी से मिलता जुलता है.वैज्ञानिको ने बताया की इस जगह इस नदी के चैनल निकलते थे जो आगे चल कर जैसरमैर में मिलते थे.जिसकी पुष्टि अमेरिका के नासा ने किया और सटेलाइट से चित्र भेजे देश के इसरो और ओ.एन.जी सी ने भी इसकी पुष्टि कर दी.विभिन्न देश की एजेंसीज और राजश्थान,हरयाणा प्रदेश इसपर बहुत खोज करने में लगे है और जैसरमेल में जमीन के नीचे पानी का बहुत बड़ा भण्डार का पता चल है हो अलावली .पर्वतो के पच्छिम में है.सबसे पहले लीबेया में जब तेल के लिए खुदाई हो रही थी ज़मीन के नीचे २००० मीटर पर पीने का साफ़ पानी मिला और तब से ये माना जाने लगा की फिर तो सरसवती नदी का पानी भी ज़मीन के अन्दर मिल सकता है.१९८७ में उज्जैन विश्वविधालय के एक प्रोफेसर वाकर्णकर ने आदिबदरी (हरयाणा की जगह जहाँ से नदी पहाड़ो से उतर कर मैदान में आती है) से गुजरात कच्छ तक पैदल यात्रा की और बहुत से तथ्यो का पता लगाया.कार्बन डेटिंग से पता चला को करीब ५००० साल पहले तक सिन्धु और हड्डपा संस्कृति इसके किनारे बसी थी जिसको सरस्वती संस्कृत,सरस्वती सभ्यता और सिन्धु सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है. और नदी के लुप्त होने के बाद गंगा जमुना की तरफ इस सभ्यता के लोग पलायन कर गए.इसी लिए सरस्वती नदी का विचार ये लोग ले कर आये और यही प्रयाग में गुप्त नदी के नाम से मान्यता बन गयी.ऋग्वेद का पहला हिस्सा इसके किनारे लिखा गया था.जिसमे कहा गया की पूर्व में यमुना और पच्छिम में सतलज के बीच सरसवती नदी बहती थी.एक भूकंप के आने से यमुना और सतलज इससे अलग हो गयी और दोनों ने अपने मार्ग बदल दिए और सरस्वती नदी धीरे धीरे लुप्त हो गयी.केंद्र में मोदीजी के और खट्टर के हरयाणा के मुख्या मंत्री बनने के बाद इस दिश में तेजी से कार्य हुआ और कुछ सालो में पूरा सच सामने आ जायेगा और हो सका तो इसको पुनरजीवत किया जा सकता है आजकल हरयाणा का मुगलवारी जगह मेले में बदल गया जहाँ हजारी लोग आकर जल को देख कर पूजा कर रहे,पुजारी भी आ गए और देश के कोने कोने से वैज्ञानिक भी आकर पुरे तथ्यों का सच सामने की कोशिश में है.
रमेश अग्रवाल -कानपूर
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