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जय श्री राम
इकबाल जी का लिखा “सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा”हम लोग बहुत दिनों से सुनते और गाते आ रहे और १५ अगस्त और २६ जनवरी को सुनने को ज्यादा मिलता है.कश्मीर से कन्या कुमारी तक हजारो नदिया बहती है जिनकी असली उम्र नहीं पता लगा सकते पच्छिम घाट, हिमालय,सतपुड़ा और विन्ध्याचल के क्षेत्रो में कुछ नदिया तो करोड़ों साल पुरानी है जो लगातार करोडो लोगो की जीविका और अन्य तरह से उनके उपयोग में आती हैं .और जैव विविधिता के साथ पर्यावरण संतुलन के कार्य भी करती है.परन्तु पिछले ६० सालो में हमने विकास के नाम पर उनपर बाँध और नहरे निकल कर सुखा दिया और जिनको नहीं मार सकते थे उन्हें प्रदूषित कर दिया और यही नदिया बरसात में अपना रूद्र रूप दिखती है और हमें अपनी असलियत का अहसास करती जब इनमे बाढ़ आ जाती और प्रशाशन,समाज और सेना नहीं निपट पाती और प्राकतिक आपदा कह देते है.! .हम लोग नदियों को माँ और देवी देवताओ की तरह पवित्र मानते थे उनके जल को अमृत की तरह मानते गन्दा नहीं करते थे और जन्मा से लेकर मृत्यु तक अपना लगाव रक्खा और इनका प्रदूषित या लुप्त होना हमारे अस्तित्व पर चोट है.! .आज शहरो का कचरा ,पुरी गंदगी, मलमूत्र, उद्योगों का ज़हर और विकास के नाम पर ज़हरीली होती खेती का ज़हर भी नदियो में बहने लग जिससे पानी न तो नहाने के लिए न ही पीने के लिए काम में आ सका.आज सभी नदियो का यही हाल है.अब प्रदूषण दूर के नाम पर अलग मंत्रालय की स्थापना कर करोडो रुपया खर्च करने के बाद भी कुछ हासिल नहीं कर सके.२ प्रधान मंत्रियो और अनेक मुख्य मंत्रियो ने साफ़ करने की कसम खा चुके है परन्तु से गंगाजी को साफ़ करने के लिए बहुत परियोजनो का परिणाम शून्य रहा जिसका दुःख बहुत है. बहुत बड़ी धन राशी खर्च कर दी प्रढूषण तो नहीं ख़तम हुआ हां बहुत से लोग अमीर हो गए.बिजली के नाम पर कही बाँध और कही सैरगाह के रूप में राप्तिंग (RAFTING ) इसी से नदियो ने हमारा साथ छोड़ दिया.जहाँ नदिया लुप्त हो गयी वहां बहुमंजिले इमारते और उद्योग लगाये जाने लगे.परन्तु नदियो को जिन्दा रखने की योजनाये नहीं बनाई.और यदि यही हॉल रहा तो जीवन के लाले पड़ जायेगे न पीने को पानी होगा न खेती के लिए
हमारे पूर्वजो को नदियो के उपकार की अच्छी समझ थी इसीलिये देवी की तरह मानते और पूजते थे.जिस तरह एक स्वस्थ आदमी के शरीर में खून का अविरल प्रवाह होना चाइये उससे तरह देश की गुणवत्ता और टिकाऊ विकास के लिए नदियों के प्रवाह अविरुद्ध नहीं होना चाइये.हमारे शास्त्रों में नदियो के रख रखाव के लिए बहुत कुछ लिखा है जिसकी विल्लुप्ता प्राणी जगत को बर्बाद कर देगी.
जहाँ बहुत से नदियो को प्रदूषित कर रहे वही बहुत से भागीरथ लुप्त नदियो को पुनर्जीवित करने में लगे है.और ऐसे लोगो की मेहनत रंग लाई है और अन्य लोगो को प्रेरणा दे रही है.उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में विध्यानान्दजी ने “ससुर खादेरी`”नदी को सदानीरा बनाने का प्रयास किया और जल प्रवाह बढ़ गया. महाराष्ट्र में “.माण नदी पर काम चल रहा है.राजस्थान में अधाधुंध जंगले काटने से कुओं का और नदियों का पानी सीख गया और बहुत सी तो बरसाती नदी बन गयी.ये नदिया अरावली की पहाडियों से निकल कर बहती थी.एक सामाजिक संगठन “तरुण भारत संघ” ने इस दिशा में प्रयास किया गांवों वालो को जोड़ा और समूह में गाना गेट नदियों के किनारे जोहड़ बना कर नदी का प्रवाह किनारे से रोका.प्रदुषण और पानी बचने के लिए गाने तैयार किये और गेट हुए कार्य किया और गाँव के गाँव जुट गए और नदियाँ पुनर्जीवित हो गयी और कुओं में पानी भी आने लगा.जिन नदियो का पुनारुधर हुआ उनके नाम है.
“भगाणी”,”अरवरी””जहाज़ वाली नदी” “सरसा नदी”,रूपारेल नदी”! क्षिप्रा नदी मध्य प्रदेश की प्रसिद्ध नदी है जिसके किनारे उज्जैन है लेकिन ये बरसाती नदी में बदल गयी तब प्रदेश सरकार ने नर्मदा नदी दम की ऊंचाई ३५० मीटर कर दी गयी और पम्पिंग करके पानी क्षिप्रा के उद्गम जगह भेजा गया और अब ये पूरी तरह से पुरे साल बहने लगी इससे ३००० गावो और ७० कस्बो में पीने की दिक्कत दूर हुयी १७ लाख एकड़ जमीन में सिंचाई की सुविधा प्राप्त हुयी.
मोदी सरकार के अनुसार ७ साल में गंगाजी साफ़ हो जायेंगी देखना है और नदियाँ कितना समाया लगाएंगी.
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