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जय श्री राम
रामायण ग्रन्थ एक महासमुंद्र की तरह है जिसकी गहराही नापना मुस्किल है इसीतरह रामायण के बारे में पूरा ज्ञान किसी के बस का नहीं.नए नए तथ्य मालूम होते रहते है !तुलसीदासजी ने रामयण में लिखा कि”हरी अनंत हरि कथा अनंता ,कहई सुनही बहुविधि सब संता”!हमने फेसबुक में रामायण के एक महान विद्वान का एक आलेख सीता माता के दुसरी वनवास के बारे में पढ़ा जिसे आपके लिए प्रस्तुत है.उम्मीद है आपको पसंद आएगा.
हमारे पवित्र ग्रंथो में लिखा है की यदि मरने के समय भगवन का नाम ले तो मोक्ष प्राप्त होती है परन्तु महाराज दशरथ जी ने मरने के पहले ६ बार राम राम कहा फिर भी उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई .तुलसीदासजी ने लिखा है”राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम ,तनु परिहरि रघुवर विरह राऊ गयहु सुर धाम “इसमें लिखा है की दशरथजी स्वर्ग गए क्योंकि वे पुत्र के मोह में तन त्याग किया था..जब भगवन राम ने रावण को मारा था तो देवताओं के बाद महाराजा दशरथ भी रामजी से मिलने आये थे.तुलसीदासजी ने लिखा “तेहि अवसर दशरथ तहं आए तनय बिलोकि नयन जल छाए !रघुपति प्रथम प्रेम अनुमाना चितई पितहि दीनेहेऊ बहु ज्ञाना! ताते उमा मोच्छ नहीं पायो ,दशरथ भेद भागति मन लायो” !उस वक़्त दशरथजी ने रामजी से मोक्ष के लिए कहा तो रामजी ने कहा की आपके अभी १००० साल बाकी है जो आपने पहले जान दे दी जब महाराज दशरथजी बहुत कहा तो रामजी ने कहा की आप यदि अपने १००० साल हमें दान कर दे तो आपको मोक्ष प्राप्त हो जायेगी .उसी वक़्त दशरथजी ने संकल्प कर अपने १००० साल रामजी को दे दिए और मोक्ष को प्राप्त हो गए.!पहले के अनुसार भगवन रामजी को १०००० वर्ष के बाद लीला समाप्ति करनी थी परन्तु दशरथजी के १००० साल लेने के बाद उन्होंने ११००० साल बाद लीला समाप्ति की.१०००० साल के बाद रामजी ने खुद ही लक्ष्मणजी को माँ सीता को वाल्मीकि आश्रम भेजने को कहा था क्योंकि १००० साल पिताजी के थे और उस समय सीताजी के साथ रहना अनैतिक और धर्म विरुद्ध था.इसलिए उनका सीता माता से मिलन फिर कभी नहीं हुआ और उनको अलग अलग सांसारिक लीला समाप्ति करनी पडी.इस तरह रामजी ने पिता की इच्छा भी पुरी की और धर्म युक्ता आचरण भी किया.
रमेश अग्रवाल,कानपुर
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