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इच्छाशक्ति और संकल्प से बदल दिया क्षेत्र का नज़ारा

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
गुरुवाणी में “पवन गुरु ,पानी पिता ,माता धरत महत्त “का बहुत महत्व है और इसी को याद कर एक सिख संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने पर्यावरण की दिश में अनुठा कार्य करते क्षेत्र की काया ही पलट कर बहुत ही उपयोगी कार्य कर प्रदेश पंजाब का गौरव बढया.धनोवा गाँव से निकलती एक नदी काली बेई थी जिसके किनारे रह कर गुरु नानकजी ने १४ साल,९ महीने और १३ दिन व्यतीत किये थे और एक बार तीन दिन बाद जब नदी से निकले तो उन्हें दिव्यज्ञान प्राप्त हो गया था.और उनके मुख से “एक ओंकार सतनाम “का मधुर उच्चारण हो रहा था इसीलिये इस नदी को सिख धर्म का पहला तीर्थ माना जाता है.इस नदी को प्रदुषण की वजह से इसकी स्थिति खराब कर दी थी.असल में पंजाब में आधुनिकता और विकास की आंधी बही कल कारखाने लगने शुरू हुए आर्थिक तरक्की ने पंजाब की पाच नदियो के प्रदेश की जीवनदायिनी नदियो को प्रदुषण से गन्दा कर बेकार बना दिया.काली बेई भी बच नहीं सकी.फैक्ट्रियो का केमिकल वेस्ट ,४३ गांवों,और ७ शहरो का सीवेज का पानी .कूड़ा कचरा सभी इसी नदी में फेंका जाने लगा जिससे जल-चर,दम तोड़ने लगे तल सिल्ट और कचरे से भर गए !कूड़े ,पोलीथीन ने पानी के बहाव को अवरुद्ध कर दिया और रुके पानी में “हायसिंथ”के पौधे उगने लगे.! किसानो ने अपने खेत बढ़ा कर नदी की चौडाई कम करते गए.धीरे धीरे नदी का जल स्तर घटता गया.और मलवा बढ़ता गया और नदी एक नाले में बदल गयी.एक दिन संतजी नदी के किनारे से पानी ले कर नदी में बहाव लाया गया.खड़े थे उसी वक़्त उन्हें कुछ ग्रामीण किस्सान आते दिखे.किसानो से खेती के बारे में पूछने पर पता चला की नदी के घटते जल स्तर के कारन लोग ज़मीन के नीचे का पानी इस्तेमाल करने लगे है जिससे जल स्तर २४ से २५ सेंटीमीटर प्रति वर्ष घटने लगा और आस पास के ५०००० एकड़ जमीन पर सूखे की हालत है.पानी इतना प्रदूषित है की इंसान क्या जानवर भी पी कर बीमार हो जाये.
ये सुनकर उन्होंने संकल्प किया की इस दश को सुधरने की और उन्होंने पदयात्रा शुरू कर लोगो को नदी का धार्मिक ऐतिहासिक समझाते जागरूक किया और अपने अभियान में सामिल होने का निमंत्रण दिया.देखते देखते अभियान शुरू हुआ.और हजारो बच्चे,मर्द,औरते,शामिल हुए.सबसे पहले हायसिंथ के पौधों को उखाड़ने का काम किया जिसमे ट्रेक्टर से नदी के तल से कचरे और गारे को हटाने का काम शुरू हुआ पास के हैडल चैनेल से नदी में पानी छोड़ा गया.सीवेज के पानी को एक बड़े तालाब में इकट्टा किया गया परन्तु इससे पहले पाने तीन अलग अलग गहराई के गड्डो से गूजरा जाता जिसमे लगे अवरोधों से फ़िल्टर का काम होता.८ दिन की इस प्रतिक्रिया के बाद इसे खेतो में सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा जिससे ओर्गानिक खेती होने लगी और फसले लह्लहाने लगी .देश में उनका नाम हुआ जब उसवक्त के राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने ११ मई २००४ को तकनीकी दिवस पर उनका नाम लिया और बाद में खुद उनकी सुल्तानपुर लोधी स्थित बाबा की निर्मल कुटीया में गए और गरीब बच्चो की शिक्षा के लिए ननकरना.साहिब शिक्षा केंद्र का उद्घाटन किया.संत बलवीर सिंघजी ने ये मंत्र अपने गुरु संत अवतार सिंघजी से मिला और उन्होंने अनेक गाँव में सडको ,कुओ,स्कूलों,तालाबो का निर्माण करवाया और अपनी कुटिया में आने वाले हर एक को एक पौधा प्रसाद के रूप में देकर ९०००० पौधे दे चुके है जिससे क्षेत्र में हरयाली हो गयी और नदी के किनारे बसे कई गाँव खुशियाली से भरे है.बड़े छाए दार पेड़ो से वातावरण पवित्र हो गया और नदियो के किनारे बने घटो में लोग स्नान करते है..यदि लोग
सेवागे के पानी को रिचार्ज करके खेती में सिचाई के लिए काम में लाये तो ओर्गानिक खेती से स्वस्थ आनाज ,सब्जियां और फल उगेगे जिससे अरबो रुपया खाद का बचेगा और साथ में पानी ज़मीन के अन्दर का बाख सकेगा.संत को इस पुनीत कार्य के लिए पंजाब रत्न,विश्वशंतिदूत ,ग्लोबल पंजाबी अवार्ड आदि सम्मान मिल चुके है और अमेरिका की टाइम पत्रिका ने उन्हें वैश्विक पर्यावरण नायको की सूची में स्थान दिया.है.इस तरह एक संत ने इच्छशक्ति और दृढ़ निचय से मानवता और देश की सेवा करते सबको एक सन्देश दिया की प्रवचन के साथ मानव व माँ प्रकर्ति की सेवा भी ज़रूरी है.
रमेश अग्रवाल ,कानपूर
“अखंड ज्योति पत्रिका मई अंक के आधार पर “

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