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जय श्री राम
एक लघुकथा जो धन के दुर्प्रोयोग और श्रम के निरादर के ऊपर एक सन्देश देती हुयी है शायद पसंद आये.
“एक क्षेत्र के लोग बहुत लगन से खेती करते थे जिससे उनके गोदाम एना से भरे रहते थे और सब लोग खुशी और आनंदपूर्वक रहते थे.एक दिन लक्ष्मीजी प्रथ्वी पर आई और क्षेत्र के लोगो को बुलाया और कहा की मई लक्ष्मी हूँ तुम लोगो को मनवांछित वर देने आयी हूँ !उन्होंने एक दिन बता दिया जिसदिन वे आकर वरदान देंगे.जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग आये..प्रथ्वी ने भी अपने लोगो को बुलाया और कहा की तुम लोग मेहनत करके अपना कार्य करो मुफ्त की दौलत का कोई फायदा नहीं होगा तुमे कोई मुसीबत नहीं होगी.इस परमरश को किसेए ने नहेए मन और मुफ़त के धन के लिये आस लगाये रहे.नियत दिन माँ लक्ष्मीजी आयी और जिसने जो माँगा वे दे दिया.धन पा कर खुम मंगन हो गए सबने खेती बंद कर मुफ्ते में मिले धन से मौज मस्ती करते रहे और गलत आदते में लिप्त हो गए.बैल बेच दिए मेहनत करना बंद कर दिया.धीरे धीरे अन्न के संचित भण्डार ख़तम होने लगे अन्न के आभाव में महंगाई बढ़ती गयी धन खर्च करने पर भी अन्न नहीं मिलता.भूके मरने की नौबत आ गयी आकाल की स्थित आ गयी नोट भरे थे परन्तु आनाज नहीं धीरे धीरे रोगों ने घेरना शुरू कर दिया बहुत से लोग मर गए बहुत से दूसरी जगह चले गए.इलाका खाली हो गया जानवर भी मर गए.चोर धन लूट ले गए.प्रथ्वी ने अपने क्षेत्र को देखा तो शमशान हो गया था धरती लक्ष्मी को कोसने लगी उसने आकर मुफ्त की दौलत पाने की लालसा जगाई और मेरे पुत्र परिश्रम भरे कृषी कार्य को छोड़ मुफ्त के फेरे में पड़ गए.उसी का प्रतिफल है की पूरा समुदाय और क्षेत्र बर्बाद हो गया.
यही लघु कथा क्या आज की परिस्थित में यथारूप लागू नहीं होती?लक्ष्मी की लालसा में व्यक्ति को उपभोगवादी बना दिया.जमीन को मुह्मांगे दामो में बिल्डर्स को बेच कर कृषी योग ज़मीन ख़तम होती जा रही और धीरे धीरे प्रथ्वी माता की उपेक्षा कर रहे है जिससे आनाज सब्सियो और फलो के दाम आसमान छूते जा रहे यदि हम नहीं चेते तो हो सकता उपरी वाली स्थित न आ जाये.
रमेश अग्रवाल कानपूर
सौजन्य:- “युग निर्माण योजना”माय २०१५ के सौजन्य से.
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