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माध्यमिक स्कूलों पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का ऐहातसिक फैसला

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
एक वक़्त में उत्तर प्रदेश में सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूल बहुत अच्छी शिक्षा देते थे शिक्षक बहुत अच्छा पढ़ाते थे और सब लोग पढ़ी और स्तर से बहुत खुश थे.हम तो ऐसे ही स्कूल में पढ़े,वही कुछ साल पढाया और १० साल कानपूर के प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल में भी १० साल तक पढाया भी.!जैसी ही माध्यमिक स्कूलों में अध्यापको ने अपनी यूनियन बनाई धीरे धीरे उनमे अनुशाशन हीनता आने लगी.दर के मारे प्रधानाचार्य कुछ बोलते नहीं थे और अध्यापक लोग जब मन छाए कक्षाओ में जाते और जरा जरा सी माग के लिए इंस्पेक्टर ऑफ़ स्चूल्स के ऑफिस में जा कर धरना प्रदर्शन करते जबकि बच्चे कक्षाओ में अध्यपको का इंतज़ार करते.उस वक़्त हमारे शहर कानपूर में २-३ मिशनरीज स्चूल्स थे और माध्यमिक स्चूल्स एक्से निगाहों और आदर पूर्वक देखे जाते थे.जब इन स्कूलों में पढाई का स्तर अध्यापको की गैरजिम्मेदारी वजह से गिरने लगा तो फिर प्राइवेट मैनेजमेंट ने इस स्थित का फाएदा उठाठे पुब्लिक स्कूल खोलना शुरू कर दिया जिसमे लोगो और अभिवायको का मन इन नए स्कूलों की तरफ आकर्षित हुआ.यदपि इन स्कूलों में फीस बहुत ज्यादा थी और उसके अलावा बहुत से खर्चे थे लेकिन एक अच्छाई थी की इन पुब्लिक स्कूलों में अध्यापक समय से स्कूल पहुँच कर क्लासेज को जाते कोई हड़ताल नहीं होती और सब काम कैयेदे से होता.चूंकि बहुत से प्राइवेट कम्पनीज खुल गयी जहां अच्छे वेतन मिलते थे और सरकारी लोगो की तन्खवाह में वृद्धि होने से लोग इन महगे स्कूलों में बच्चे भेजने लगे.माध्यमिक स्कूलों में जहां बच्चो की संझ्या कम होने लगी और मध्य और गरीब वर्ग के बच्चे आने लगे जिससे कोई आवाज़ नहीं उठता था इसके अलावा सरकार वोट बैंक की वजह से कोई कठोर कदम उठाने से डरती जबकि सरकार इन स्कूलों में जनता का बहुत धन खर्च करती सो इन स्कूलों के अध्यापक ऊंची ऊंची तनख्वाह लेते टयूसन करते या और कोई काम करते बहुत सी जगह जुगाड़ कर के हाजिरी लगा देते.प्रैक्टिकल में नंबर के नाम पर खूब धान्द्ली होती. थी.बहुत से अध्यापक किताबे लिखने या दुसरे गलत काम करने में संलंग थे.जिन अध्यापको की बहुत इज्ज़त होती थी वह धीरे धीरे ख़तम हो गयी !एक समय अध्यापको को राष्ट्र और बच्चो का संरक्षक समझा जाता था वह मान्यता बिलकुल समाप्त हो गयी.और आज अध्यापको का समाज में व रुतवा और आदर नहीं जो होता था.प्राइवेट स्कूलों का हाल बहुत ख़राब है वे धन कमाने की फैक्ट्री बन गयी.ऊंची फीस के अलावा स्कूलों से किताबे और कापी किताबे के अलावा यूनिफार्म में बहुत धांधली होती.इन स्कूलों के अध्यापक खूब प्राइवेट ट्यूशन करते और ऐसे बच्चो को प्रयोगात्मक और घरेलु परीक्षा में खूब नम्बर दिए जाते है.बहुत से लोग जो अपने बच्चो को इन स्कूलों में पढ़ते वे बच्चो के फीस और खर्चे के नाम पर गलत तरीके से पैसे कमाने में लगे रहते है जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता हो.!आज कल हमारे देश में सीबीएसई और इसके बोर्ड के अलावा प्रदेश में माध्यमिक बोर्ड है.जाहन पब्लिक स्कूलों में परीक्षा में बहुत ऊंचे अंक मिलते थे माध्यमिक बोर्ड में बहुत कम अंक मिलते थे.जिससे यान के बच्चे आगे के स्तर में नहीं आ पाते थे इसलिए यान भी ऐसी प्रणाली बनाई गयी जहाँ बिना पढ़े ज्यादा अंक मिलने लगे जिससे शिक्षा का स्तर और प्रतिष्ठा और गिर गयी.अभी हॉल में दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में प्रवेश के लिए ९०% से ९८% तक अंक की मांग की गयी थी.!इन सब के देखते हमारे देश के कोई भी विश्वविद्यालय विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्विधालायो में जगह नहीं प् सकता.भारत ऐसे देश खास कर उत्तर प्रदेश और बिहार ऐसे गरीब प्रदेशो में देश हित में माध्यमिक विधालयो को पुनःश्रेष्ठ स्थान और स्तारीय शिक्षा देने के लिए राजनैतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है जिससे शिक्षा का व्यापार रूक सके.इसके लिए निम्न कदम उठाने पढेगे.
१.सरारी अफसरों,राजनेताओ,पुलिस वालो और न्यायपालिका के कार्यरत लोगो को अपने बच्चे माध्यमिक स्कूलों में ही भेजने पड़ेगे ऐसा न करने वालो पर कार्यवाही हो.
२,अध्यापको को स्कूलों में आने और जाते वक़्त हस्ताक्षर करने पड़ेगे और बीच में बाहर जाने की अनुमति प्रधानाचार्य से लेनी पड़ेगी.
३.स्कूलों में छूटियो पर लगाम लगानी पड़ेगी इनको वोट बैंक के आधार पर नहीं करना चैये.
४.अध्यापको की क्लास में उपस्थित को सुनाचित करने के लिए प्रधानाचार्य को अधिकार हो और न करने पर अध्यापक का ध्यान आकर्षित करे.प्रधानाचार्य से अध्यापक लडाई या बहस नहीं करेंगे यदि कहना है तो सद्भाव पूर्वक करे.
५.बच्चो की उपस्थित सुनाचित करने के लिए हाजरी का प्राविधान हो.10वी और १२ वी क्लास के बच्चे कोचिंग की वजह से क्लास में नहीं आते और टीचर्स उनको हाजिरी दे देते जो गलत और अपराध है.
६.जी बच्चे अनुपस्थिति हो उनको घर से अभिवाहक से अर्जी लानी पड़ेगी और न आने पर उनसे पूंछा जाये.
७.वर्ष में तीन टर्म हो और हर एक विषय में मासिक टेस्ट हो जिसका रिकॉर्ड रक्खा जाये एक अर्धवार्षिक परीक्षा हो तथा वार्षिक रिजल्ट बनाया जाये उसमे ५०% वार्षिक, २०% अर्ध वार्षिक और ३०% तीन टर्म्स के औसत अंक शामिल हो.
८.बच्चो से कोई भेदभाव न हो.
९.बच्चो की कापियां टीक से जचे इसपर खास ध्यान रक्खा जाये.
१० बोर्ड परीक्षा में मार्क्स टीक से दिए जाए और दुसरे बोर्ड की नक़ल न की जाए लेकिन देश से अपेक्षित है की देखा जाये की सभी बोर्ड अंक देने में उदारता न बरते.
११.इन स्कूलों को सुचरित चलने के लिए उनलोगों से सलाह ली जाये जो इस क्षेत्र में एक्सपर्ट हो.और हो सके तो बाहर के लोग हो.
१२.साल में २ बार अध्यापको और अभिवाह्को की मीटिंग हो जिसमे बच्चो के बारे में विचार विमर्श हो.
१३ प्रोयाग्त्मक परीक्षा के लिए आने वाले परीक्षको को उनका आदर सत्कार पर पैसा न खर्च करे और न गिफ्ट दे और न खास बच्चो को मार्क्स दिए जाए. बल्कि बच्चो के काम के आधार पर
१४.टयूसन पूरी तरह प्रतिबंधित हो और न मानने पर कठोर कार्यवाही हो.
इसी तरह प्राइवेट पब्लिक स्कूलों में ड्रेस,किताबे स्कूलों में न बिके और और अभिवाहक कही से खरीद सके.वाहन पर भी सब तरह की टयूसन बंद हो और फीस निर्धारित होने के साथ डोनेशन से प्रवेश बंद हो.
जबतक राजनैतिक इच्छा सकती नहीं होगी कोई सुधर नहीं हो सकता.जिस नागरिक ने इस मामले में अदालत में पिल दाखिल की थी प्रदेश सरकार ने उसे नौकरी से सुस्पेंद कर दिया.ऐसे में उम्मीद कम है की कोई सुधर हो सकेगा कोई कितने भी आर्डर पास कर दे.हमने ऐसा सुझाव एक ब्लॉग में दिया था और प्रधान मंत्रीजी के पास भी भेजा था.
रमेश अग्रवाल, कानपुर

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