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चीन और कश्मीर समस्याओ के लिए नेहरूजी ज़िम्मेदार

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
शायद बहुत कम लोगो को कश्मीर और चाइना के बारे में मालूम हो की दोनों सम्स्याये नेहरूजी की अदूरदर्शिता की वजह से हुयी.जब आजादी का समाया आया अंग्रेजो ने कूटनीति का सहारा ले कर पहले पकिस्तान बनवा दिया फिर देश की ५५० से ज्यादा देशी रियासतों को ये फरमान जारी कर दिया की वे छाए तो भारत या पाकिस्तान में विलय करे या फिर स्वंतंत्र रह कर कार्य करे.!अंग्रेजो की नीति थी की इस महादीप में वे अशांति का वातावरण पैदा कर दे जिससे उनका प्रभाव यहाँ बना रहे.कश्मीर में वे अपने अड्डे बनाना चाहते थे इसलिए उन्होंने कश्मीर के महाराजा को आज़ाद रहने के लिए भड़काना शुरू किया और बहुत हद तक सफल भी रहे,उदार पटेल जी ने सभी रियासतों को भारत में विलय करने के लिए अपनी कूटिनीति का इस्तेमाल करते राजी कर लिया हैदराबाद में सेना भेज कर विलय करवाया और जुनागड़ को धमकी तथा जनता को आंदोलित कर के. नेहरूजी कश्मीर के मुस्लिम नेता शेख अब्दुल्लाह को पसंद करते थे .जब पाकिस्तान ने काबालियो के भेष में अपनी सेना को जम्मू कश्मीर को कब्ज़े के लिए भेजा और वे श्रीनगर के पास आ गए उसवक्त महाराजा जम्मू आ गए थे और उन्होंने अपने प्रधान मंत्री को दिल्ली सरदार पटेल के पास मदद के लिए भेज.पटेलजी ने कहा की भारत आपकी क्यों मदद करे आपने विलय तो नहीं किया.जब तक आप विलय के दस्तावेजों में दस्खत नहीं करेंगे हम सेना नहीं भेज सकते जबकि ये सही है की हमारी सेना पाकिस्तानी सेना को गाजर मूली की तरह काट देगी,अंत में महाराजा ने सितम्बर १९४७ में विलय पेपर्स में हस्ताक्षर कर दिए.उसीदीन पटेलजी ने सेना को हवाई जहाज़ से भेजना शुरू किया और वायुसेना को भी आदेश दे दिए और हमारी बहादुरी सेना ने पाकिस्तानी सेना को खडेंरना शुरू कर दिया तब अँगरेज़ लोग नेहरूजी से युद्ध विराम के लिए दवाब बनाने के लिए कहना शुरू कर दिया.सेना के जवान २ दिन का वक़्त चाहते थे जिससे वे लाहौर और कराची तक कब्ज़ा कर ले.!नेहरूजी चाहते थे की शेख अब्दुल्लाह को राज्य की बग्दूर दी जाए.इसके बाद बिना बताये नेहरूजी दिल्ली के आल इंडिया रेडियो स्टेशन गए और वाहन युद्ध विराम की घोषणा कर दी और कहा की हम इस को संयुक्त राष्ट्र संघ ले जा रहे वे जनमत के आधार पर कश्मीर का भविष्य तय करेंगे.इस तरह जब विलय हो गया तो संयुक्त राष्ट्र ले जा कर अंतर राष्ट्रीय समस्या क्यों बना दिया गया.नेहरूजी की इस गलती के परिणाम स्वरुप ये देश आज तक परिणाम भुक्त रहा और अनाब सनब धन के अलावा हजारो सैनिको का वलिदान देना पड़ा और अभी भी राष्ट्र द्रोही लोगो का केंद्र बना है.नेहरु जी ने रेडियो से घोषणा करने के पहले किसी को नहीं बताया.काएदे से युद्ध विराम का फैसला मंत्रिमंडल को करना था परन्तु नेहरु अपने आगे किसी को नहीं मानते ये उनका तानाशाही रवैया दर्शाता है.उन्होंने शेख अब्दुल्लाह को प्रधान मंत्री बना दिया क्योंकि उस वक़्त वहां के मुख्या मंत्री को प्रधान मंत्री कहा जाता था .सबसे बड़ी गलती नेहरूजी ने की की शेख अब्दुल्लाह के साथ धरा ३७० रख दी जिसने कश्मीर का अलग सविधान हो गया, अलग झंडा और यान तक की भारत के अन्य लोगो को कश्मीर के लिए प्रवेश पत्र लेना पढता था .श्यामा प्रशाद मुकर्जी और बीजेपी के आन्दोलन की वजह से प्रवेश पत्र ख़तम कर दिया गया और प्रदेश के प्रधान मंत्री को मुख्यमंत्री.कहना शुरू हो गया और सदरे रियासत की जगह राज्यपाल कहा जाने लगा परन्तु कश्मीर में शेष भारत के लोग ज़मीन नहीं खरीद सकते !देश के कोई कानून जम्मू कश्मीर में नहीं लागू हो सकते न ही देश की सर्वोच्य न्यायालय का आदेश वहां मान्य है इस तरह नेहरूजी के घमंड और तानाशाही रवैये ने देश को ऐसी समस्या दे दी जिसका समाधान अभी तक नहीं हो पाया.श्यामा प्रशादजी की मृत्यु रहस्यमई तरीके से हुई जिसका अभी तक पता नहीं चल पाया.उनका नारा था एक देश में दो निशाँ दो विधान नहीं चल सकते.आज कश्मीर में बहुत सी सेना है और आये दिन पाकिस्तानी और आई एस द्वाज लहराहे जाते और देश विरोधी नारे लगाये जाते है.आज हालत है को राष्ट्र द्रोह में बंद मसंद आलम के ऊपर से कश्मीर के हाई कोर्ट ने रासुका हटा कतर इसप्राध में छोड़ दिया और इसके खिलाफ कोई अपील नहीं हो सकती क्योंकि सर्वोच्चन्यायालय का कश्मीर के ऊपर अधिकार नहीं.
पटेलजी नेहरूजी को चीन से सावधान रहने के लिए कई बार चेतावनी दे चुके परन्तु नेहरूजी नहीं माने.पहले तिब्बत को चीन को दे दिया और १९५४ में पंचशील पर हस्ताक्षर किये.वे छीन से दोस्ती करते रहे और चीन भारत के विरुद्ध साजिस उसका एक कारण देश के रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन थे जो जीप घोटाले में इंग्लैंड में देश के राजदूत होते हुए फंसे और जिसको नेहरूजी ने रक्षामंत्री बना दिया.वे देश में कम और विदेशो इ ज्यादा रहते थे.वे व्यान देते की पकिस्तान से हमारे अच्छे सम्बन्ध है इसलिए सेना का खर्च कम कर दे और सेना में कटौती .ऐसा ही भाषण एक बार उन्होंने संसद में दे दिया और देश के रक्षा बनाने प्रतिष्ठानों में गैर सैनिक सामान बन्ने लगे.चीन ये सब समझ रहा था और वह भारत में हमले करने की नीति बनाने लगा.नेफा में?(अरुणाचल) में सेना नहीं थी.१९६१ में नेहरूजी चीन गए और समझे की चीन हमारा दोस्त है हिन्दी चीनी भाई भाई के खूब नारे लगे.१९५९ में दलाई लामा तिब्बत छोड़ कर भारत में आये जिसे शरण दे दी गयी इससे चीन नाराज़ था,२० अक्टूबर 1962 को चीन ने अक्षाई चाइना नेफा में झोरो से हमला किया वाहन तैनात लोगो ने हमले का मुकाबला किया और हमले में हमारे ५००० से ज्यादा सेना आरी गयी और बहुत से गायब हो गए.हमारी ७२००० वर्ग मील ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया था.नेहरूजी ने अमेरिका को युद्ध बंद करने के लिए लिखा और चीन ली हुई ज़मीन वापस न करने की शर्त पर राजी हो गया.अमेरिका ने भी मदद की थी परन्तु चीन से हमारी सेना बहुत कम्ज़िर साबित हुई.आज भी चीन हमारी ज़मीन कब्ज़ा किये और अरुणाचल को अपने प्रदेश मानता है.संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया गया और नेहरूजी से जब पुछा गया की ज़मीन कब मिलेगी तो उन्होंने कहा व बंज़र ज़मीन है जहां घास भी नहीं उगती तो ऐसी ज़मीन ले कर क्या फैयेदा और हमें भूल जाना चाइये.तब महावी त्यागीजी ने नेहरूजी से कहा की आपकी चाँद गंजी है और बाल नहीं उगते तो चीन को क्यों नहीं देते.अंत में प्रस्ताव पास हुआ की चीन से ज़मीन वापस ली जायेगी लेकिन सब जानते है की ये अब संभव नहीं है.इस धोखे से नेहरूजी को सदमा पहुंचा और २७ मई १९६४ को उनकी मृत्यु बात रूम में गिर जाने से हुयी परन्तु बहुत से लोगोका कहना है की उनकी म्रत्यु योन बीमारी स हुयी जो भी हुआ नेहरूजी के पद के लालच, अंग्रेजो के प्रेम,एडविन से सम्बन्ध, तानाशाही रवैये के कारन देश को कश्मीर और चीन समस्या से झूझना पद रहा है जिसका कोई अंत नज़र नहीं आता.
(राजीव दीक्षित जी के भाषणों के आधार पर )
रमेश अग्रवाल ,कानपुर

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