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रक्षा बंधन का महत्व और आधुनिकता का प्रभाव

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
इसमें कोई संदेह नहीं की रिश्तो से ऊपर उठ कर रक्षाबंधन की भावना ने हर समय जरूरत पर अपना रूप बदला ,जब जैसी जरूरत हुयी वैसा अस्तित्व उसने अपना बनाया.जरूरत पड़ने पर हिन्दू बहनों ने मुसलमानों भाइयो को राखी बंधी कही मुस्लिम महिला ने भी हिन्दू भाई को.सीमा पर भारतीय नारीओ और बहनों ने सैनिको को देश की रक्षा करने के लिए राखी बांधी राखी देश की रक्षा,पर्यावरण हितो की रक्षा आदि के लिए बांधी जाने लगी इस तरह ये एक राष्ट्रीय त्यौहार भी बन गया!चूंकि ये श्रवन की पूर्णमासी को होता है इसे श्रावणी के नाम से उत्तर भारत में जानते है,इस दिन ब्राह्ण लोग नदियो के किनारे जा कर तर्पण कर जनेऊ बदलते उसके बाद अपने यजमानो की कलाई में एक धागा बांध कर समृधि और रक्षा का आशीर्वाद देते इसलिए धीरे से इसका नाम रक्षा बंधन हो गया.बाद में यजमान भी ब्राह्मणों को बाँधने लगे.!इस दिन गुरुकुलो में सत्र ख़तम के बाद विद्यार्थी अपने घरो को जाते थे तो गुरु शिष्यों को रक्षा सूत्र इसलिए बांधते की वे उनके दिए ज्ञान को भावी जीवन में समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि गुरु के मान सम्मान की रक्षा हो सके जबकि शिष्य ज्ञान देने के लिए और गुरूजी की लम्बी उम्र की कामना के लिए बांधते है.अब तो पेड़ो को भी उनके उपयोग और पर्यावरण की रक्षा के लिए बंधते है.छोटी कन्याये बड़ो को बंधती हो.अब तो बच्चे प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति और अन्य प्रतिष्टिठ लोगो को राखी बांधते है.ब्राह्ण राखी बंधते वक़्त एक स्लोक पढ़ते है जिसका मतलब है “जिस रक्षा सूत्र में महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा वलि को बाँधा गया था उसी सूत्र से तुम्हे बाँध रहा हूँ.तुम अपने संकल्प से कभी विचलित नहीं होना.उत्तरी भारत में इसे श्रावणी कहते जबकि महाराष्ट्र में नारीयल पूरिनमा कहते है और इसदिन सब लोग समुद्र के किनारे इकट्टा हो कर समुन्द्र में नारियल चढाते की समुन्द्र उनके ऊपर आपदा नहीं लायेगे.तमिलनाडु, केरल महारास्ट्र,ओडिशा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इसे “अवनि अवित्तम “के नाम से पुकारते है.राजस्थान में राम राखी लूम्बा बंधने का प्रचलन है.राम राखी में लाल डोरे पर एक पीली चोटी वाला फुदना लगा होता जिसे केवल भगवान को बांधते है.कुछ प्रान्तों में भाई के कानो के ऊपर भुजरिया लगाने की प्रथा है.नेपाल के पहाडी इलाके के ब्राहण और क्षेत्रीय समुदाय गुरु और भागिनेह से जबकि दक्षंणीसीमा में बहन से राखी बंधवाते है.अब तो रक्षाबंधन पुराणों,साहित्य,धर्म,इतिहास और फिल्मो में जगह बना चुकी और बहुत सी अच्छी फिल्मे बनी.
इस पर्व की महत्व आदि काल से है हमारे पुराणों और धर्म ग्रंथो में इसका कही जगह उल्लेख है.जब दानवीर राजा वालि १००वा राजस्यु यज्ञ कर रहे थे तो देवतओ की रक्षा करने के लिए भगवान वामन रूप में आये और उन्होंने वलि राजा से ३ पग ज़मीन ले कर तीनो लोक ले कर उसको भी बाँध दिया और पाताल लोक में जा कर रक्खा तब राजा बलि की प्राथना पर भगवन उसले पहरेदार के रूप में रहने लगे जब माता लक्ष्मी को नारदजी से पता हुआ तो उन्होंने राजा वलि को राखी बाँध कर भगवान् को मुक्त करवाया.दुसरी कथा है की एक बार देवराज इंद्र गुरु ब्रहस्पति के पास जा कर राक्षसों से युद्ध को जीतने की बात कर रहे तो इन्द्रानी ने अपने पति की विजय के लिए एक रक्षा सूत्र पहनाया और इंद्र विजय हो कर लौटे.एक बार युधिष्ठिर जी ने भगवान् कृष्णा से जीतने का उपाय पूंछा तो उन्होंने खुद और सेना को रक्षा सूत्र बाँधने के लिए कहा इसी तरह जब भगवान् कृष्णा से शिशुपाल को सुदर्शन चक्र से मारा तो एक कांटे से उनके खून निकले लगा तब द्रौपदीजी ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़ कर भगवन कृष्णा के बाँधा जिसका फ़र्ज़ भगवान ने द्रौपदी के वस्त्र अवतार से पूरा किया.एक जगह आया की इसदिन भगवन ने हयग्रीव अवतार कर वेदों की रक्षा कर ब्रह्मा जी को दिए थे.उपर्युक्त सब घटनाये श्रावणी के दिन हुयी थी.
जब राजपूत लोग युद्ध के लिए जाते तो उनकी पत्निया तिलक कर हाथ में रक्षा सूत्र बांधती जिससे युद्ध में रक्षा हो और वीरता से लडे.एक बार चितौरगड की विधवा रानी कर्मावती ने गुजरात के राजा बहादुरशाह से आक्रमण से रक्षा के लिए राखी भेजी और हुमायु ने रक्षा की.सिकंदर की पत्नी ने राजा पुरु को राखी भेज कर सिकंदर को न मारने का वचन लिया और पुरु ने अपना वचन निभाया.इसी तरह गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर ने बंग भंग के विरोध में जन जागरण किया और इसको एकता और भाईचारे का प्रतीक बनाया और स्वंत्रता के बाद भी इसे इस्तेमाल किया.सुभद्रा कुमारी चौहान ने इसपर एक कविता लिखी थी ‘मैंने पढ़ा शत्रुओ को भी जब जब राखी भिजवाई ,रक्षा करने दौड़ पड़े वे राखी बन शत्रु भाई”
एक बहुत प्रसिद्ध घटना चन्द्र शेखर आज़ाद जी से सम्बंधित है एक बार अंग्रेजो से बचते एक अंधेरी तूफानी रात वे एक घर में घुस गए जहां एक विधवा अपनी लडकी के साथ रहती थी पहले तो डाकू समझ उसने जगह देने से इनकार किया परन्तु परिचय देने पर बहुत खातिर की खाना खिलाया.अजादजी को पता चल गया की महिला पैसे की कमी से लडकी का विवाह नहीं कर पा रही तो उन्होंने कहा की तुम पुलिस में हमारे बारे में बता दो तुम्हे ५००० रुपये मिल जाएगे व महिला बहुत रोई और कहा की जी भी अपनी जान जोखिम कर आजादी के लिए लड़ रहा उसके खिलाफऐसा सोच भी नहीं सकते.उस औरत ने आजादजी के हाथ में धागा बाँध कर कसम खवाई की वे देश की आजादी के लिए ऐसे ही लड़ते रहेंगे जब सुबह वे गए तो औरत को तकिये के नीचे रु ५००० मिले जो आजादजी रख गए थे,आज कल इन्टरनेट के ज़माने में राखी कही भी पहुंचाई जा सकती और बहुत से बदलाव आ गए.पोस्ट ऑफिस भी इस अवसर में रु १० के लिफाफे में ४ राखी भेजता है और समय पर पहुचाने के लिए खास इन्तजाम करता है.बरसात से बचने के लिए वाटर प्रूफ लिफाफा बनाया जाता है. अब धीरे धीरे इस त्यौहार पर बाज़ार हावी होता जा रहा राखी बहुत महंगी आने के साथ विभिन्न तरह के बहुमूल्य कार्ड और गिफ्ट पैकेट आने लगे जिसने महत्व ख़तम कर दी.हमें देश हित में चीन की बनी राखी और चीजे नहीं खरीदनी चाइये.ये प्यार और विश्वास का त्यौहार है जिसे आधुनिकता ने इसकी महत्व को गिरा दिया.पहले बहन तिलक कर भाई के हाथ राखी बांधती चावल लगाती और उसके ऊपर छिड़कती पैसे निछावर कर थी और गरीबो को बाँट देती बदले में भी कुछ भेट दे कर एक तरह से प्यार और रक्षा का मौन वायेदा करता परन्तु धीरे धीरे भौतिक युग में ये दिखावा ज्यादा हो रहा.पहले इस अवसर पर घेवर शकरपारे,नमकपारे के साथ घुघनी (काले चनो को उबालकर चटपटा कर छौंका जाता है)इस बार प्रधान मंत्री के सुझाव के अनुसार बहनों को किसी योजना जैसे सुरक्षा बीमा रु ६०० जामा करके या ऐसी किसी अन्य योजनाओ में दे कर राष्ट्र हित में योगदान दे.कभी कभी बहनों द्वारा किये त्याग पर गर्व होता है जो रिश्ते की अह्महिता को दर्शाता है जबकि एक बहन ने भी के लिए ओना लीवर ट्रांसप्लांट करवाया. परन्तु अब बाज़ार की दिखावटी और मिलावटी मिठाइयो या गिफ्ट पैकेट ने ले ली. हम बाज़ार के प्रभाव में होने वाले त्योहारों की प्रासिनगता ख़तम खोते जा रहे है.आज जब देश में महिलाओ पर अत्याचार बढ़ गए हमारा कर्त्तव्य है की मूक दर्शक न रह कर बदमाशो के खिलाफ हिम्मत से खड़े रहे ये रक्षावाले बंधन का सही सन्देश होगा,!
रमेश अग्रवाल,कानपुर

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