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जन्माष्टमी पर एक कविता

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम ·
श्री कृष्ण भगवान् पर जन्माष्टमी पर कविता – कान्हा
द्वापर में भादों के महीने में
काली अंधेरी रात में
जन्म लिया कान्हा ने
मथुरा में कारागार के कक्ष में |
था दिवस चमत्कारी
सारे बंधन टूट गए
द्वार के ताले स्वतः खुले
जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ |
बेटे को बचाने के लिए
गोकुल जाने के लिए
वासुदेव ने जैसे ही
जल में पैर धरा
जमुना की श्रद्धा ऐसी जागी
बाढ आ गई नदिया में |
बाहर पैर आते ही
कान्हा के पैरों को पखारा
जैसें ही छू पाया उन्हें
अद्भुद शान्ति छाई जल में |
सारा गोकुल धन्य हो गया
कान्हा को पा बाहों में
गोपिया खो गईं
मुरली की मधुर धुन में |
बंधीं प्रेम पाश में उसके
रम कर रह गईं उसी में
ज्ञान उद्धव का धरा रह गया
उन को समझाने में |
वे नहीं जानती थीं उद्देश्य
कृष्ण के जाने का
कंस के अत्याचारों से
सब को बचाने का |
अंत कंस का हुआ
सुखी समृद्ध राज्य हुआ
कौरव पांडव विवाद मैं
मध्यस्थ बने सहायता की |
सच्चाई का साथ दिया
युद्ध से विचलित अर्जुन को
गीता का उपदेश दिया
आज भी है महत्त्व जिसका |
जन्म दिन कान्हा का
हर साल मनाते हैं
श्रद्धा से भर उठाते हैं
जन्माष्टमी मनाते हैं |
सौजन्य:- हमारी लिखी नहीं कही मिल गयी लिख दी
रमेश अग्रवाल,कानपुर

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