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कर्मयोगी भगवान कृष्ण (जन्माष्टमी पर विशेष )

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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कई हजार साल पहले अंधेरी रात को जब बिजली चमक रही जोरों से पानी बरस रहा था। भादव कृष्णा अष्टमी के दिन मथुरा की जेल में बंद माता देवकी के गर्व में एक तेज पुंज अवतरित हुआ, जिसको संसार ने भगवान् कृष्णा के रूप से जाना और इस दिन को जन्माष्टमी के नाम से पुकारा जाता है।

इस साल इसका जन्‍माष्‍टमी का विशेष महत्व है क्योंकि इस वर्ष रोहणी नक्षत्र पूरे दिन होगा और अन्य समानता वैसी होगी जैसा भगवान कृष्ण के जन्म में थी जो बहुत शुभ माना जाता है। त्यौहार का मुख्य आकर्षण मथुरा, वृन्दावन और ब्रिज क्षेत्र है, जहां लाखों लोग जाते हैं. इस दिन लोग व्रत रखते हैं और विभिन्न पकवान बनाकर भगवान् के विग्रह को पंचामृत से नहलाते. घर और मंदिरों में विभिन्न तरह की झांकिया सझाई जाती है.

महाराष्ट्र में दही हांडी प्रतियोगिता बाल गोविन्दो द्वारा खेली जाती है जिसका टीवी से प्रसारण भी होता है. भगवन कृष्णा की छवि एक साधारण दीखते मनुष्य जो पीताम्बर पहने सर में मोर की पंखी लगाये हाथ में बासुरी चेहरे पर तेज छवि और मुस्कराहत के साथ सबको मोहित करते है. कृष्णाजी यानी बुधिमत्ता चातुर्य, युध्नीति, आकर्षण, प्रेमभाव गुरुत्व सुख दुःख में सामान। उनका पूरा जीवन मुसीबतों से भरा था.

भगवान कृष्णा २८ चतुर्येगी (चारो युग ) में द्वापर युग के अंत में पैदा हुए थे और १० मुख्य अवतारों में ८वें और २४ अवतारों में २२वें अवतार थे। अवतारों का कारण रामायण और गीता में दिया है. जब जब प्रथ्वी पर अधर्म और अन्याय बढ़ जाता तब भगवान दुष्टों को मार धर्म का राज्य स्थापित करने के लिए किसी न किसी रूप में अवतरित होते है. तुलसी दासजी ने रामचरित मानस में लिखा है “जब जब होए धर्म की हानी बाढ़े असुर अधम अभिमानी, करई अनीति जाहि न वरनी सीजही विप्र धेनु सुर धरनी, तब तब प्रभु धरि विविधि शरीरा हरही बहुविधि सज्जन पीरा “.

द्वापर में मामा कंस के अत्याचार से धरती कांप रही थी और जब भविष्य वाणी से पता चला की उसकी बहन देवकी और वासुदेव की ८वी संतान उसकी मृत्यु का कारण होगी तो उनको जेल में कड़े पहरे में डाल दिया! भगवान असुरों को बिना अवतरित भी मार सकते हैं, लेकिन वे अवतरित हो कर अपने भक्तों पर कृपा करके कोई आदर्श प्रस्तुत करते, जिससे हम लोग सीख कर उनके पद चिन्हों पर चल सके. चूंकि भगवान् कृष्णा ने बहुत ऐसी लीलाए की जो मनुष्य के बस की नहीं हमें वह करना चाइये जो भगवानजी ने गीता के द्वारा और अपनी विभिन्न लीलाओ द्वारा हमको पहुँचाया.

यमुना में कालिया नाग को जीत कर वहां से भागने में पर्यावरण का सन्देश देते नदियों की सफाई पर जोड़ है नदियाँ मनुष्यों के लिए बहुत उपयोगी इसलिए उसे साफ़ रखना भी हमारी ज़िम्मेदारी है.गोवर्धन पूजा करके ये सन्देश दिया की जो हमारे लिए उपयोगी है जैसे गोवर्धन पर्वत इसलिए सबसे उसकी पूजा करवाई मक्खन की चोरी करके ये सन्देश दिया की समाज में सब लोग मिलजुल कर रहे।

श्रीकृष्‍ण दिन पैदा हुए पहरेदार सो गए और उनके पिता उनको गोकुल छोड़ आए। इसीलिये गोकुल में नवमी को उत्सव मनाया जाता जिसे नन्द उत्सव कहते है. अभिमान मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है इसलिए वे किसी का भी अभिमान नहीं देख सकते थे। फिर चाहे वे गोपियां हों राधे जी, सत्यभामाजी या उद्धवजी उन्होंने सबको यही सन्देश दिया. जब भामसुर/नरकासुर राक्षस को मार के १६००० लडकियों को क़ैद से मुक्त किया तो उन्होंने कृष्णाजी से कहा की घर जाने में मांं बाप और समाज स्वीकार नहीं करेगा। इसलिए वे क्या करेंगी तब उन लडकियों की रक्षा करने और समाज को अनैतिकता से बचाने के लिए उन सबसे शादी कर ली.

वैसे उनकी ८ मुख्य पटरानीयां थीं, जिनके नाम रुकमनी, जामवंती, सत्याभामां, कालिंदी, मित्रवृन्दा, सत्य, भद्रा और लक्ष्मण थी. मथुरा में पैदा होने के बाद ९ वर्ष तक कंस को मारने के बाद रहे, जिसमे उन्होंने १७ बार जरासंध की सेना को हराया। बाद में ब्राह्मणों की रक्षा के लिए द्वारका गए जिसे विश्वकर्मा ने बनाया था। सभी राक्षसों और कंस को मारने के बाद मथुरा का खुद राजा न बन कर उग्रसेन जी को ही राज्य दिया. उज्जैन जाकर संदीपनी गुरूजी से शिक्षा प्राप्त कर गुरु दक्षिणा में गुरूजी के मरे लड़के को ला कर दिया।

सबसे महत्व पूर्ण अर्जुन को गीता ज्ञान दिया, जो उन्होंने उस वक़्त दिया जब अर्जुन मोह में आकर युद्ध करने से डर रहा था। उनके द्वारा दिए उपदेश पुरे विश्व में बहुत आदर से पड़े जाते हैं। कृष्णाजी बहुत अच्छे गुरु है इसीलिये कहा जाता है “बन्दह कृष्णम जगत गुरु “उनके उपदेश आज भी और हर जगह प्रासंगित है.! भगवन के संदेशों और उपदेशों को पुरे विश्व में पहुचने के लिए अन्तराष्ट्रीय कृष्णा संसथान इस्कान (ISKCON) का बहुत बड़ा हाथ है, जिनके संस्थापन एक भारतीय संत प्रभुपादजी थे। आज जिसकी शाखायें विश्व के ज्यादातर देशों में है. जिससे भृत्य संस्कृति का भी खूब प्रचार हुआ.

आप सबको जन्माष्टमी के बहुत शुभकामनाएं.
रमेश अग्रवाल, कानपुर.

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