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देश की समरसता के लिए पूर्वजो की देंन है कुम्भ मेले

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम
देश में संपन्न होने वाले विश्व में संख्या के हिसाब से एक जगह इकठ्ठा होने वाले में कुम्भ मेले सर्व प्रथम है जिसका विश्व में कोई जोड़ नहीं.इसकी पलिकल्पना हमारे पूर्वजो ऋषी मुनिओ की दें है.हम लोगो को बदनाम किया जाता की हम भेदभाव करते पर क्या कुम्भ और अन्य त्योहारों में किसी तरह का भेद पाया जाता.यहाँ विभिन्न प्रदेशो के लोग इकठ्ठा हो कर पवित्र नदियो में स्नान के लिए आते और पुण्य कमाँ कर खुशी खुशी अपने घरो को लौट जाते.इन में बहुत से विदेशी भी आते है और इतनी बड़ी भीड़ देख कर उंगली दबाने लगते है.आज कल नासिक/त्रिन्क्वेश्वर में कुम्भ मेला लगा है जो २५ सितम्बर तक चलेगा.इन कुम्भ मेले के पीछे एक पौराणिक कथा है की एक बार दुर्वाषा ऋषी के श्राप से देवता शक्तिहीन हो गए और राक्षसों ने हमला कर उनपर विजय प्राप्त की..तब देवता भगवन विष्णु के पास गए और अपनी व्यथा बताई भगवन ने कहा की आप राक्षसों के साथ क्षीरसागर का मंथन करे जिससे अमृत की प्राप्त होगी.दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया और धन्वंतरिजी अमृतकलश ले कर निकले जिसे देख कर इंद्र के इशारे से इंद्रपुत्र जयंत उसे ले कर भगा तब राक्षस भी भागे और एक साल तक युद्ध चला और बाद में भगवन विष्णुजी ने मोहनी रूप धारण कर अमृतकलश ले कर देवताओ को पिला दिया !.इस बीच प्रथ्वी में ४ जगह अमृत की बूंदे गिरी जो थे हरिद्धवार,इलाहाबाद (प्रयाग),नासिक और उज्जैन.चूंकि देवताओ का १ साल प्रथ्वी के १२ साल के बराबर होता इसलिए हर १२ साल बाद इन चारो जगह कुम्भ मेलो का आयोजन होता है हरिद्वार और इलाहाबाद में हर ६ साल बाद अर्ध कुम्भ मेले भी होते है. और १४४ साल बाद महाकुम्भ होता है..असर में १२ जगह अमृत की बूंदे गिरी थी परतु ४ जगह स्वर्ग में और ४ पाताल लोक में थी.!इस तरह हर तीसरे वर्ष देश में कहीं न कही कुम्भ के मेले होते है चूंकि ये मेले विशेष राशी में होते इसलिए समय बदलता रहता है.जैसे अगले साल २०१६ में ही उज्जैन का कुम्भ मेला होगा.इन राशियो का हर स्थान के हिसाब से होता है.जो नीचे दिया गया है.
इलाहाबाद :-जब सूर्य और चाँद मकर राशी में और ब्रहस्पति मेष राशी में होता है जो मकर संक्रांति से शुरू होता और जनवरी फरबरी महीने में होता है.८९,२००१ और २०१३ में हो चुके है.जबकि अर्ध कुम्भ ८३,९५,और २००७ `में हो चुके है
हरिद्वार ‘-सूर्य मेष राशी में और ब्रहस्पति कुम्भ राशी में होते है.यहा ८६,९८ और २०१० में हो चुके है जबकि अर्ध कुम्भ ९२,२००४ में हो चुके और मार्च अप्रैल में होते है
नासिक:-सूर्य और ब्रहस्पति सिंह राशी में या सूर्य,चन्द्र और ब्रहस्पति कर्क राशी में.ये सावन की अमावस्वा से शुरू होता और अगस्त /सितम्बर महीने में होता है.८०,९२,२००३ और२०१५ यहाँ दो जगह होता है नासिक और त्रेंग्वेश्वर (नासिक से २० किलोमीटर यहाँ ज्योत्रिलिंग है यहाँ शैव लोग नहाते है
उज्जैन :-सूर्य मेष में और ब्रहस्पति सिंह में या सूर्य,चंद्रमा और ब्रहस्पति तुला राशी में बैशाख की अमावस्या से शुरू होता और अप्रैल मई में होता है.८०,९२,२००४ में हो चुके २०१६ में होगा.शिप्रा नदी के किनारे.
(नासिक और उज्जैन के कुम्भ मेले सिंघस्थ कहलाते है.
१३९८ मे तैमुरलंग दिल्ली ध्वन्स्त लार रहा था तब हरिद्वार में कुम्भ मेला चल रहा था उसने आक्रमण कर दिया और बहुत से लोग मारे गए.
सनातन धर्म में भगवन एक माने जाते परन्तु विभिन्न नामो से पूजित होते और एक दुसरे के प्रति कोई लडाई नहीं होनी चाइये लेकिन कुछ धर्म के ठेकेदार अपनी दूकान चलने के लिए नफरत और बैर पैदा कर देते ऐसे में भागवान विष्णु के मानने वाले वैषर्णव् और भगवान् शिव को मानने वाले शैवो ने एक दुसरे के बीच इस तरह की नफरत पैदा कर दी की दोने के बीच हिंसात्मक घटनाए हुई और १६९० नासिक में होने वाले कुम्भ में ६०००० लोग मारे गए.और हरिद्वार में १७६० में १८०० मरे.तुलसीदास रामायण में भगवन राम ने कहा “शिव द्रोही मम भगति कह्वाहे सो नर सपने मोहि न भाहे ” नासिक में नासिक में वैशनव नासिक में जबकि सिव लोग त्रेवेंकेश्वर में नहाते है.
कुम्भ के बारे में कोइ सटीक जानकारी नहीं की कबसे शुरू हुए परन्तु समुद्र मंथन त्रेता युग में हुआ था अथर्वेद,शिव पुराण और श्रीमद भागवत में इसके उल्लेख है.चीनी यात्री HIEUEN TSANG ने अपने यात्रा लेख में लिखा था की रजा शिलादित्य हर ५ वर्ष में नदियो के किनारे अपना धन गरीबो को दान कर देता था लेकिन ये किसी बौध मेले का वर्णन है क्योंकि कुम्भ १२ साल में होते है.१८७० के ब्रिटिश रिकॉर्ड में इलाहबाद कुम्भ मेले का ज़िक्र है.कुम्भ मेलो में विभिन्न अखाड़े के लोग पहले स्नान करते बाद में जनता कर सकती है.कुछ प्रसिद्ध अखाड़े है जुना,निरंजनी और महानिर्वानी .इन मेलो में विभिन्न साधू संत अपने शिविर लगा कर विभिन्न तरह की कथाये करके अपने भक्तो से सव्वाद करते परन्तु सबसे बढ़िया कार्य भविष्य में सनातन धर्म के प्रचार और प्रसार के बारे में विचार मंथन हो कर नीतियाँ निर्धारित की जाती जिससे विभिन्न समुदाय के साधू संत देश विदेश में इसको प्रचारित कर सके यान युवको भी दीक्षा दे कर शिक्षित किया जाता इसलिए सनातन धर्म में इतना हमले होने के बाद भी इसका अस्तित्व बना हुआ और दिनों दिन फल फूल रहा.दुनिया के लोग ताजुब करते की एक जगह इतनी भीड़ कैसे इकठ्ठा होती और आस्था के नाम पर लोगो को कितना उत्साह है.मन जाता की इन मेलो में नहाने से पुण्य के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है.मेलो में आने वाले लोगो के बारे में कुछ आंकड़े दिए है.
१९५४ प्रयाग कुम्भ मेले में ४० लाख लोगो ने (देश की १ % )स्नान किया.१९८९ में प्रयाग में ६ फरबरी को १.५ करोड़ लोगो ने स्नान किया जो उस वक़्त तक्क गिनेस बुक रिकॉर्ड में अंकित है.१९९५ में प्रयाग अर्ध कुम्भ मेले में २ करोड़ लोग जनवरी में आये थे.!१९९८ के हरिद्वार मेले में ४ महीने में ५ करोड़ लोगो ने पवित्र गंगा में दुबकी लगाई थी.२००१ में प्रयाग में ६ हफ्तों में ७ करोड़ जिसमे २४ जनवरी को ३ करोड़ लोगो ने दुबकी लगा कर पुण्य कमाया.
ये मेले देश,भारतीय संस्कृति, एकता, समरसता और सनातन धर्म को बढ़ने में बहुत योगदान देते हुए देश का पुरे विश्व में झंडा ऊंचा करते है और दुसरे प्रांत के लोगो को विभिन्न जगह की संस्कृत और लोगो से मिलन हो जाता है.!इन मेलो की लिए प्रदेश की सरकारे सालो पहले से इंतजाम करने में लगी रहती है जिससे यात्रिओ को तकलीफ न हो और वे सकुशल नहा कर वापस लौटे.इन दिनों के लिए स्पेशल ट्रेनों के अलावा और बहुत से इंतजाम होते है.
कुम्भ मेले की सब लोगो को शुभकामनाएं!
रमेश अग्रवाल,कानपुर

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