जय श्री राम नेहरूजी की मृत्यु के बाद ९ जून १९६५ को कांग्रेस दल ने लाल बहादुर शास्त्री जी को प्रधानमंत्री के [पद के लिए चुना और उन्होंने छोटे से सेवाकाल में देश का हमेशा ऊंचा रक्खा.!उत्तर प्रदेश के मुग़ल सराय में २अक्तूबर 190४ को शारदा प्रसाद श्रीवास्तव जी और श्री मती राम दुलारी के यहा जन्म लिया और छोटे होने की वजह से उन्हें नन्हे के नाम से पुकारा जाते थेउनकी शिक्षा शहर और बनारस में हुयी जहाँ उन्होंने काशी विद्धयापीठ से शास्त्री की डिग्री प्रथम श्रेणी में हासिल की और इसीलिये श्रीवास्तव की जगह शास्त्रीजी के नाम से जाने लगे. १६ मई १९२८ को उनकी शादी श्रीमती लालमणी से हुयी जो बाद में ललिता देवी के नाम से जानी गयी.उनके २ पुत्रिया और ४ लड़के थे जिनमे अनिल और सुनील अभी भी जिन्दा है.शिक्षा के बाद वे भारत सेवक संघ से जुड़े और देश भक्ति की कसम ली .गांधीजी के प्रभाव से स्वंतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और कई बार जेल भी गए.इलाहाबाद में भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने इनसे डरो नहीं मरो का नारा देकर देश में क्रांति की भावना का सन्देश दिया.आजादी के बाद १९४७ में उत्तर प्रदेश सरकार में पंतजी के मंत्रिमंडल में पहले संसदीय सचिव बने फिर परिवहनमंत्री बन्ने पर महिलाओ की कंडक्टर के पदों में नियुक्ति शुरू की और बाद में पुलिस मंत्री बन्ने पर लाठी चार्ज की जगह पानी की बौछारों की शुरुहात की.१९५१ में कांग्रेस के महासचिव चुने गए.नेहरूजी के मंत्रिमंडल में परिवहन,संचार,रेल,वाणिज्य ,उद्दोग गृह ऐसे महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों में बहुत कुशलता से ज़िम्मेदारी का निर्वाह किया.१९५६ में केरल में एक भीषण रेल दुर्घटना होने की वजह से नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा दे दिया.वे अद्वितीय देश भक्त ,कुशल प्रशासक,उत्क्रेष्ट नेता,ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे.!विनम्रता फूट फूट के भरी थी.!अपने पहले संबोधन में उन्होंने ३ मुख्य बात कही थी.
१ जब स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता खतरे में है तो पुरी शक्ति से उस चुनौती का मुकाबला करना एक मात्र कर्त्तव्य होता है !हमें एक साथ मिलकर किसी भी प्रकार के अपेक्षित बलिदान के लिए दृढ़तापूर्वक तत्पर रहना चाइये!
२.ये सत्य है की मै शतप्रतिशत आधुनिक नहीं हूँ मुझे गावो में ५० साल एक साधरण कार्यकर्ता के रूप में कार्य करना पड़ा ,इसीलिये स्वत मेरा ध्यान उन लोगो और उन क्षेत्रो की तरफ चला जाता है और हर रोज़ हर समय मै यही सोचता हूँ कि उन्हें किस प्रकार सहायता पहुचाई जाये.!
३ यदि भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार झगडे होते रहेगे और शत्रुता रहेगी तो हमारी जनता को भरी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा !परस्पर लड़ने की वजाय हमें गरीबी,बीमारी और अज्ञानता से लड़ना चाइये!दोनों देशो के आम जनता की सम्सयाये और आकाक्षाए एक सामान है.!
पकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने शास्त्री जी को कमज़ोर प्रधानमंत्री समझ २ सितम्बर १९६५ को आक्रमण कर दिया और शास्त्रीजी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने इतनी बहादुरी से और डट कर मुकाबला किया की वह भौचक्का रह गया और हमारी सेना लाहौर के पास पहुँच गयी थी.उसी वक़्त अमेरिका ने धनकी दी की यदि युद्ध बंद नहीं किया तो पी एल ४८० के तहत गेहू की सहायता बंद कर दी जायेगी.शास्त्रीजी ने कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन को बुलाया और पूँछ हफ्ते में कितने दिन व्रत करने से हमें अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.उत्तर मिला १ दिन.उन्होंने सबसे पहले अपने घर में सबको १ दिन का व्रत करवाया और फिर की वे रह सकते है और फिर देशवाशियो से अमेरिका की गीदड़ धमकी की चर्चा करते एक दिन के व्रत का अनुरोध किया जिसे ज्यातर देश्वशिओ ने स्वीकार कर लिया और कहा कि जबतक प्रधानमंत्री हूँ आपके और देश के स्वाभीमान से कोई समझौता नहीं करूँगा !उन्होंने ही जय किसान जय जवान का नारा दिया था.!लडाई शुरू होने के टीक पहले रात को ८.३० पर तीनो सेनाध्यक्ष उनसे बंगले पर मिले .जब घर वालो ने पूँछ तो कहा की हमने नए फ्रंट खोलने के साथ लाहौर तक आक्रमण कहने को कहा दिया है जब पूंचा की बिना कैबिनेट के निर्णय ले लिया तो कहा की यदि ऐसा नहीं करते तो जम्मू कश्मीर चला जाता और कहा “ग्रेट बैटल आर वन ओनली इफ यू हैव द विल तो फाइट “(great battle are won only if you have the will to fight).शास्त्र्रीजी सिधांत के बहुत पक्के थे एक बार उनके लड़के अनिल जब १५ साल के थे ने सचिव से कह कर ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लिया और पिताजी से कहदिया.शास्त्रीजी ने कहा की तुम्हारी उम्र तो १८ साल नहीं है तो उसने दुसरे दिन वापस कर दिया.जब जेल में थे तो घर खर्च के लिए हर परिवार को पीपुल सोसाइटी ५०र हर महीने देती थी जब उन्हें पता चला की ४०र में खर्च चल जाता तो उन्होंने ४०र ही लेने शुरू किये.लडाई के दौरान दिल्ली एक सेना हस्पताल में घायल सैनको को देखने के लिए गए और एक सैनिक को देखा जिसके पुरे शरीर पट्टी से बंधा था उसके अंकग में आंसू देख कर पूँछ क्यों रो रहे तो बोला कि देश का प्रधानमंत्री
सामने खड़े है और हम सैलूट नहीं दे प् रहे तो शास्त्रीजी ने उसको खुद सैलूट किया.
९ जनवरी को अन्तराष्ट्रीय दवाब के चलते पकिस्तान से स्बार्चीत और समझौते के लिए रूस के ताशकंद में गए और लंबी बात चीत के बाद उन्हें समझौते में हस्ताक्षर करने पड़े जिसमे उन्हें जीती ज़मीन वापिस करनी पडी थी जो वे नहीं चाहते थे.वे पकिस्तान से फिर आक्रमण करने की शर्त चाहते थे परन्तु ऐसा न हो सका.१० जनवरी को उन्होंने समझौता क्या और ११ को सुबह उनकी संदिंग्ध हालत में मृत्यु हो गयी कहा गया कि दिल के दौरे से हुई लेकिन बहुतो को संदेह है कि मौत ज़हर की वजह से हुई.इसके कही कारन है.रूस इंदिरा गांधी के बहुत नज़दीक था और शास्त्रीजी नेताजी सुभाष की मृत्यु की जांच फिर से करवाना चाहते थे जिसको कांग्रेस के नेता और इंदिराजी नहीं चाहती थी.इसलिए ये साजिश रची गयी.
ताशकंद में उन्हें शहर से २० किलोमीटर दूर एक विला में तहराया गया जहाँ कमरे में इण्टरकॉम की सुविधा भी नहीं थी जिससे वे किसी से भी बात कर सके क्या दुसरे देश के प्रधान मंत्री के साथ ऐसा किया जाता है.हस्ताक्षर के बाद एक सार्वजनिक भोज में शिरकत की रात ८ बजे विला आये रूस के राजदूत टी एन कॉल के रसोइया जान मोहम्मद के बनाये खाने से हल्का भोजन किया और रात ११.३० बजे दूध लिया.उनके निजी डाक्टर थे आर .एन.चुग और उनके कार्यक्रम और खाने पर वहां का ख़ुफ़िया बुयेरो नज़र लगता था.डॉ चुग के हिसाब से शास्त्रीजी बिलकुल स्वस्थ थे!११जन्वर्य सुबह १.२५ को उनको बहुत जोर से खांसी उठी और दौड कर निजी स्टाफ के कमरे में गए डॉ. चुग जब आये शास्त्रीजी मरनाशन हालत में थे डॉ चुग ने इतना ही कहा की आपने हमें कुछ समय नहीं दिया और वे चिर निद्रा में सोते हम सब को छोड़ गए.३ रसोइओ को पकड़ कर पूँछ कर छोड़ दिया गया की दिल के दौरे से मृत्यु हुई है.
रूस में पोस्ट मार्टम नहीं कराया गया और जब भारत में पार्थीव शरीर आया तो रूस के राष्ट्रपति ब्रेजनेव (brehznev) भी साथ में थे .जब घर वालो ने शरीर देखा तो चेहरा नीला था और वे पोस्ट मार्टम चाहते थे परन्तु उस वक़्त के कार्यवाहक प्रधानमंत्री नंदाजी और कांग्रेस नेताओ ने इजाज़त नहीं थी कहा कि इंजेक्शन देने से नीला हो गया है और उनका अंतिम संस्कार यमुना नदी केकिनारे नेहरूजी की समाधी शांतीवन के बगल में किया गया जिसे विजय घाट कहते है.
सबसे पहले राज्नारयांजी जांच शुरू करवाई परन्तु कोइ नतीजा नहीं निकला न ही उसका कोइ रिकॉर्ड है.सूचा अधिकार के तहत जानकारी मागने पर कहा गया की इसको सार्वजानिक नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे अन्तराष्ट्रीय सम्बन्ध और सुरक्षा को खतरा ही सकता है.इस तरह इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री के रहस्यम मौत का सच क्या कभी सामने आ पायेगा?इसमें राष्ट्रिय और अन्तराष्ट्रीय साजिस लगती है और अब इसकी मांग भी उठने लगी है की शास्त्रीजी से सम्बंधित फाइल्स सार्वजानिक की जाए.देखे शायद आगे सच सामने आ सके.!शास्त्रीजी को मरणोपरांत १९६६ में भारत रत्न से नवाज़ा गया चूंकि वे १९६५ युद्ध से जुड़े थे इसलिए इसकी स्वर्ण जयन्ती साल (५०)में दिल्ली के राजपथ पर एक प्रदर्शनी “शौर्यजंली”नाम से लगी थी जिसमे इस युद्ध से सम्बंधित सैनको की शौर्य गाथा की फोटो भी थी जिसे लोगो ने पसंद करने के साथ देशवाशियो का सैनिको के प्रति सम्मान था इसमें राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और तीनो सेनाध्यक्षो ने श्रधा सुमन अर्पित किये.
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