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जय श्री राम सुना हे की मालदा में हिन्दू पलायन कर रहे हे। जेसे कश्मीर से हुवे असल में पलायन वाद कोई इलाज नहीं हे बल्कि ये आपका कबुलातनामाँ हे की आप में लड़ने की शक्ति मर गयी हे।भागो भागो मन चाहे इतना भागो पर तुम जहा भगोगे उस जगह को भी तुम दूसरा मालदा बनावोगे।क्योंकि तेरी कमजोरी ही उनकी ताकत हे।क्या करोगे हिन्दुओं इतनी संपत्ति कमाकर…??
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– एक दिन पूरे काबूल (अफगानिस्तान) का व्यापार सिक्खों का था, आज उस पर तालिबानों का कब्ज़ा है |
– सत्तर साल पहले पूरा सिंध सिंधियों का था, आज उनकी पूरी धन संपत्ति पर पाकिस्तानियों का कब्ज़ा है |
– एक दिन पूरा कश्मीर धन धान्य और एश्वर्य से पूर्ण पण्डितों का था, तुम्हारे उन महलों और झीलों पर आतंक का कब्ज़ा हो गया और तुम्हे मिला दिल्ली में दस बाय दस का टेंट..|
– एक दिन वो था जब ढाका का हिंदू बंगाली पूरी दुनियाँ में जूट का सबसे बड़ा कारोबारी था | आज उसके पास सुतली बम भी नहीं बचा |
– ननकाना साहब, लवकुश का लाहोर, दाहिर का सिंध, चाणक्य का तक्षशिला, ढाकेश्वरी माता का मंदिर देखते ही देखते सब पराये हो गए | पाँच नदियों से बने पंजाब में अब केवल दो ही नदियाँ बची |
– यह सब किसलिए हुआ ? केवल और केवल असंगठित होने के कारण ..| इस देश के मूल समाज की सारी समस्याओं की जड़ ही संगठन का अभाव है |
– आज भी इतना आसन्न संकट देखकर भी बहुतेरा समाज गर्राया हुआ है | कोई व्यापारी असम के चाय के बागान अपना समझ रहा है, कोई आंध्र की खदानें अपनी मान रहा है | तो कोई सोच रहा है ये हीरे का व्यापार सदा सर्वदा उसी का रहेगा |
कभी कश्मीर की केसर की क्यारियों के बारे में भी हिंदू यही सोचा करता था |
– तू अपने घर भरता रहा और पूर्वांचल का लगभग पचहत्तर प्रतिशत जनजाति समाज विधर्मी हो गया | बहुत कमाया तूने बस्तर के जंगलों से…आज वहाँ घुस भी नहीं सकता |
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आज भी आधे से ज्यादा समाज को तो ये भी समझ नहीं कि उस पर संकट क्या आने वाला है | बचे हुए समाज में से बहुत सा अपने आप को सेकुलर मानता है | कुछ समाज लाल गुलामों का मानसिक गुलाम बनकर अपने ही समाज के खिलाफ कहीं बम बंदूकें, कहीं तलवार तो कहीं कलम लेकर विधर्मियों से ज्यादा हानि पहुंचाने में जुटा है |
ऐसे में पाँच से लेकर दस प्रतिशत समाज ही बचता है जो अपने धर्म और राष्ट्र के प्रति संवेदनशील है | धूर्त सेकुलरों ने उसे असहिष्णु और साम्प्रदायिक करार दे दिया |
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इसलिए आजादी के बाद एक बार फिर हिंदू समाज दोराहे पर खड़ा है |
एक रास्ता है, शुतुरमुर्ग की तरह आसन्न संकट को अनदेखा कर रेत में गर्दन गाड़ लेना तथा दूसरा तमाम संकटों को भांपकर सारे मतभेद भुलाकर संगठित हो संघर्ष कर अपनी धरती और संस्कृति बचाना |
रमेश अग्रवाल कानपुर (WATS APPS की पोस्ट से )
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