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देश को गुलाम बनाने का अंग्रेजो का मास्टर स्ट्रोक

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम देश की बर्बादी का सबसे बड़ा कारण गुरुकुलो का ख़तम करना और कान्वेंट स्कुलो की भरमार ,१८५८ में इंडियन एजुकेशन एक्ट बनाया गया जिसकी ड्राफ्टिंग लार्ड मैकाले ने की थी लेकिन उसके पहले उसने देश की शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था.!उसके पहले भी कई अन्ग्रेक्स अधिकारिओ ने भारत में शिक्षा व्यवस्था पर अपनी रिपोर्ट दी थी.अंग्रेजो का एक अधिकारी था GM Lintarऔर दूसरा था Thoma Munro .दोनों ने अलग अलग इलाकों का सर्वे किया .१८५३ में Lintar ने उत्तर भारत का दौरा किया जिसमे उसने पाया की साक्षरता दर ९७% है और Munro ने दक्षनी क्षेत्र में दौरा करके पाया की साक्षरता १००% है.लार्ड मैकाले ने ब्रिटिश संसद में कहा की यदि भारत को हमेश के लिए गुलाम बनाना है तो इसकी गुरुकुल (देशी) और सांस्क्रतिक शिक्षा व्यवस्था को पुरी तरह नष्ट करना होगा और अंग्रेज़ी व्यवस्था लानी होगी तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी मगर दिमाग से अँगरेज़ पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेगे तो हमारे हित के कार्य करेगे हमारी नीतियाँ पर चलेगे और हमारे जाने के सैकड़ो साल बाद भी हमारे गुण गाते रहेगे.उसने यह भी बताया की भारत सोने का सागर है !उसने ये भी कहा की जिस तरह नई फसल के लिए पुरे खेत को जितना पड़ता है उसी तरह देशी शिक्षा की जगह अंग्रेज़ी शिक्षा लानी होगी.!जब संसद से उसे मंजूरी मिली तो उसने सबसे पहले गुरुकुलो को गैर कानूनी घोषित किया जिससे समाज से मिलनी वाली सहायता गैरकानूनी हो गयी !इसके बाद संस्कृत भाषा को गैरकानूनी घोषित किया गुरुकुलो को बंद करा कर आग लगा दी गुरुओ को मारा पीटा और जेल में बंद कर दिया.!१८५० तक देश में ७ लाख ३२ हज़ार गुरुकुल थे और ७ लाख ५० हज़ार गाव.इस तरह करीब करीब एक गाव में एक गुरुकुल था.जो आज की भाषा में “Institute of Higher Lerarning “हुआ करते थे जिसमे अनुसंधान की भी व्यवस्था होती थी.१८ विषय पढाये जाते थे गुरुकुल समाज के लोगो द्वारा संचालित थे और बच्चो को वही रहकर पढना पढता था और कोइ फीस नहीं ली जाती थी.उस वक़्त ब्रिटेन और यूरोप के दुसरे देश बहुत गरीब और पिछड़े थे लन्दन में पहला पब्लिक स्कूल १८६० में एक चर्च में खुला था जिसमे केवल धार्मिक शिक्षा दी जाती थी.देश में गुरुकुल ख़तम होने के बाद अंग्रेज़ी स्कूल खोले गए और पहला कान्वेंट स्कूल कलकत्ता में खोला गया जिसे उस वक़्त फ्री स्कूल कहा जाता था धीरे धीरे पुरे देश में ऐसे स्कूल खुले और फिर कलकत्ता मद्रास बंबई में यूनिवर्सिटीज खोली गयी जो आज भी मौजूद है.!मैकाले ने एक पत्र अपने पिता को लिखा”इन कान्वेंट स्कूलों में ऐसे बच्चे निकलेगे जो देखने में भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अँगरेज़ और इन्हें अपने देश संस्कृति और परम्पराओ के बारे में कुछ नहीं पता होगा जो अपने पूर्वजो को असभ्य ,गरीब समझेगे और जो समझेगे की अंग्रेजो ने उन्हें शिक्षा और विकास दिया.ऐसे बच्चे होंगे जो हमारे जाने के बाद भी हमारी अन्ग्रेज़ात को जिंदा रक्खेगे और उसकी भविष्यवाणी आज सच हो रही जब हमें अपनी मात्रभाषा में बात करते शर्म आती और अंग्रेज़ी दुसरो पर रोब डालने के लिए बोलते है.!उस वक़्त लोगो के घर में सोने की सिक्के और येते भरी रहती थी क्योंकि निर्यात से सोना मिलता था.अर्थ व्यवस्था को ख़तम करने के लिए टैक्स लगा दिया कई तरह का और सारा धन जहाजों में भर कर ले गए.इसीलिये आज वे इतने संपन्न हो सके क्योंकि हम लोगो उनकी कूटिनीति में फंसा गए!हमको बताया गया की अंग्रेज़ी अंतर्राष्टीय भाषा है जो गलत है विश्व के २०४ देशो में ११ देशो में ही अंग्रेज़ी पढी बोली और समझी जाती है.फिर कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा हो गयी.शब्दों के बारे में भी समृद्ध नहीं दरिद्र है बाइबिल भी अंग्रेज़ी में नहीं न ही ईशा मसीह भी अंग्रेज़ी बोलते थे उनकी भाषा “अरमेक”थी जो बंगला भाषा से मिलती जुलती थी समय के साथ जो विलुप्त हो गयी.संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है की भाषा भी फ्रेंच है न की अंग्रेज़ी !जो समाज अपनी मात्रया भाषा से कट जाता उसका कभी भला नहीं हो सकता यही मैकाले की रणनीती थी.
रमेश अग्रवाल , कानपूर

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