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जय श्री राम किसी भी देश के उन्नति को नापने के लिए शिक्षा और स्वस्थ्य सेवाए बहुत जरूरी होती है ,७० के दसक तक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल बहुत ही अच्छी शिक्षा देते और शिक्षक बहुत मग्न और मेहनत से पढ़ते लडको पर खूब ध्यान देते उनका पढ़ी के अलावा और कार्यो को निखालने में भी प्रयत्नशील रहते थे ट्यूशन बहुत कम होती थी और शिक्षक समय से कक्षाओं में हेट थे हम १९४४ सेक१९५४ तक ऐसे ही माध्यमिक स्कूल में पढ़े और परस्नातक भी ऐसी ही कॉलेज से किया फीस बहुत कम होती थी.लेकिन जैसे ही अध्यापको की यूनियन बन गयी नेता गिरी शुरू और धीरे धीरे स्तर घटता गया और जब पढाई न हो बात बात पर धरना हो तो इसका फायेदा लोगो ने प्राइवेट जिसे पुब्लिक स्कूल कहते है खोलने शुरू किये और धीरे धीरे लोह सरकारी सहायता स्कूलों को छोड़ पुब्लिक स्कूल जाने लगे .इन स्कूलों में फीस बहुत होती और दुसरी तरह के खर्चे होते चूंकि इसमें बाहरी दिखवा के साथ यूनिफार्म होती थी कोइ हड़ताल नहीं होती और टीचर्स समय से क्लासेज में जाते ये स्कूल दिल्ली के सीबीएसई और isc बोर्ड से संबधित होते इसलिए जांचने की पद्धति बहुत सरल थी इसलिए लोगो को अच्छे मार्क मिलते जिससे डिग्री कॉलेज में प्रवेश जल्दी मिल जाता जबकि प्रदेश बोर्ड से कम अंक आते नक़ल की बहुत समस्या थी इसलिए पब्लिक स्कूल गली गली में कुकुरमुत्ता की तरह फलने फूलने लगे.हमने अपने शहर में एक प्रतिष्टित स्कूल में १० साल पढ़ाया तब हमने पाया की यहाँ टीचर्स खूब ट्यूशन करते खास कर साइंस ,गणित और म्यूजिक के क्यिंकि प्रक्टिकल में ज्यादा मार्क्स मिल जाते थे,और ऐसे बच्चो को पास करने में टीचर्स मदद कर देते,इन स्कूलों में महिलाये बहुत होती तो स्टाफ रूम में पढाई की बात कम औरतो की बात ज्यादा होती और बहुत से टीचर्स बच्चो को जन्मादिन के नाम पर बहुत गिफ्ट ले लेते थे,हमारे उत्तर प्रदेश में सरकार बहुत कोशिस लार रही ज्यादा मार्क्स दिलाने की लेकिन न तो पढाई होती नक़ल खूब होती परिक्षये समाया से नहीं होती इसलिए आकर्षण कम हो कर पुब्लिक स्कूलों की तरफ बहुत है .इसका एक कारण है की सरकारी कर्मचारियो और अधिकारिओ की तनख्वाह में बहुत बढ़ोतरी .पुब्लिक स्कूल में हर काम परिक्षये भी समाया से होती और बहुत सी एक्स्ट्रा एक्टिविटीज भी होती जिससे लोगो का मन इस और ज्यादा हो गया परन्तु भारत ऐसे देश में सरकारी स्कूलों की जगह पुब्लिक स्कूलों की तरफ झुकाव बहुत अच्छा संकेत नहीं यदि सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल टीक से काम करने लगे तो फिर देश का बहुत भला होगा पुब्लिक स्कूल शिक्षा का व्यापारीकरण है क्योंकि हर लड़का ट्यूशन लेता फिर इन स्चूलो में अमीर घर के लड़के तरह तरह की पार्टी अर्रंगे करते इसलिए या तो साधारण घर के बच्चो को भी घर से पैसा लाना पड़ता या फिर इन्फीरियरिटी महसूस होता बहुत से बच्चो के माँ बाप फिर गलत ढंग से पैसा कमाना शुरू करते जिससे भ्रष्टाचार बढ़ता .इन स्चूलो में फीस हर साल बढ़ जाती और किताबे ड्रेस और दुसरी एक्टिविटीज के खर्चे एक माध्यमिक घर के लिए बहुत हो जाते जबकि सरकार माध्यमिक शीषक स्चूलो में बहुत अच्छी तन्ख्वाए देती ,एक पुलिस वाले के २ बच्चे जब पढ़ते तो उसे घूस भी ज्यादा लेनी पढ़ती सरकार को इन स्चूलो में पढने वाले बच्चो के माँ बाप के बारे में जांचना चाइये.इन स्कूलों का कायकलाप हो सकता यदिब सरकारे अपने अफसरों और कर्मचारियो को अपने बच्चे इन स्कूलों में पढना अनिवार्य कर दे जैसे इलाहाबाद उचक न्यायालय ने अपने एक फैसले में किया क्योंकि देश का विकास पुब्लिक स्कूलों से नहीं नापा जा सकता ये देश के लिए कलंक है इसके लिए इन स्कूलों में हड़ताल को बंद करके पुब्लिक स्कूलों की तरह लाना होगा और ट्यूशन को प्रतिबंधित करना पड़ेगा सरकारे सुधार करने में वोट बैंक की वजह से डरती है इसीलिये देश का ये हाल हो गया.डिग्री कॉलेज में तो हालत बहुत खराब वहां सबसे कम काम होता टीचर्स समय से जाते नहीं विद्यार्थी क्लासेज में जाते नहीं हाजरी मिल जाती परीक्षा में नक़ल होती उसके बाद नंबर बढ़ने की जुगार होती यदपि अब इसपर कुछ कमी आ रही लेकिन IIT,मेडिकल और दुसरी कोचिंग की वजह से विद्यार्थी कॉलेज नहीं जाते और इस तरह पढाई बहुत कम होती अब तो IIT और मेडिकल कोचिंग वाले ८ वे क्लास से अपना कोर्स के आते जिससे बच्चो का क्लास में मन नहीं लगता और उसका ध्यान कोचिंग में ही लगा रहता.पहले विश्वविद्यालय के ऑफिस से पता चल जाता की इस विषय की उत्तर पुस्तिका किस टीचर के पास गई और बस सिफारिस शुरू हो जाती एक बार हमें डिग्री कॉलेज की पुस्तिकाए जांचने को मिली हमने एक सिफारिश पर नंबर बढ़ने से मन कर दिया हंमारी परीक्षक रद्द कर दी गयी.इसके अलावा छुट्टियों में कमी के साथ इन में बहुत सुधर के साथ ७५% हाजरी ज़रूरी होनी चाइये और ये फर्जी नहीं होनी चाइये सब तरह की ट्यूशन और कोचिंग स बैन होना चाइये क्योंकि सरकार बहुत अच्छा पैक देती है.अभी भी इन कालेजो खास लार जों निजी देहातो में है बहुत नक़ल होती बाकायदा नक़ल करने वाले गैंग सक्रिय है शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतीकारी परिवर्तन की ज़रुरत है जो वोट बैंक की राजनीती के चलते सुधार की गुन्जहिस बहुत कम है.
यही हाल स्वस्थ्य क्षेत्र का है जहां सरकारी हस्पतालो में कोइ सुविधाए नहीं इनका भी वही हॉल जो शिक्षा में हुआ धीरे धीरे प्राइवेट हस्पताल बन्ने लगे सरकारी डाक्टर हस[ताल में कम निजी प्रैक्टिस में लगे रहे शिक्षा और डाक्टर जिन्हें राष्ट्र निर्माता और भगवान् मन जाता था व्यापारी बन गए जो प्रतिज्ञा डाक्टर पढाई ख़तम करने के बाद करते थे जहाँ बीमार की सेवा सबसे बड़ा धर्म माना जाता था अब डाक्टर्स पैसा बनाने की मशीन बन गए और धन के लालच में सारी इंसानियत और धर्म भूल गए.ज्यादा से ज्यादा धन कमाने में गलत काम जैसे विभिन्न टेस्टों के नाम पर और दवाई के नाम पर कमीशन लेना शुरू हो गया इसके साथ निजी हस्पताल पासे लेने ले लिए मरे हुए लोगो को भी एक दो दिन हस्पताल में रख लेते है.किसी तरह पैसा एथना ही धर्म हो गया कभी कभी गलत बीमारी बता कर धन ओगही करते हमारे घर के सामने एक डाक्टर है जिनसे दोस्ताना सम्बन्ध भी थे एक बार नाइजीरिया जहां हम काम करते थे ,वापस जाने के एक दिन पत्नी को पेट में बहुत जोरो का दर्द हुआ सामने दिखया तो कहा की ऑपरेशन करना पड़ेगा दुसरे डाक्टर को दिख्यता उन्होंने कहा हम गारंटी लेते ऑपरेशन की ज़रुरत नहीं केवल कुछ दावा ले लो.आज तक किसी ऑपरेशन की ज़रुरत भगवान् की दया से नहीं हुई.आज तो बहुत मामले में इलाज़ में लापरवाही के मामले आये है परन्तु बहुत ही कम मामले में डाक्टरों के खिलाफ कार्यवाही हो सकती क्योंकि एक तो कोइ दक्तात किसी डाक्टर के खिलाफ रिपोर्ट नहीं देगा और फिर पैसे के बल पर अच्छे से अच्छे वकील कर के अदालत में मुकदमा जीत जाते है.हम खुद भुक्तभोगी है हमारे केस में रीड की हड्डी का कानपूर के प्रसिद्ध हस्पताल में ऑपरेशन किया और दस दिन बाद छुट्टी कर दी घर जाते जब तबीयत ख़राब हुयी तो MRI करने को कहा जिससे पता चला की गलत ऑपरेशन हो गया १० दिन बाद कानपूर के प्रसिद्ध सर्जन से दुबारा ऑपरेशन किया जो दिन की जगह रात को किया और वो भी गलत कर दिया ३ हफ्ते बाद तीसरा कराया जो टीक हो गया परन्तु पहले दो गलत की वजह से उठने से मजबूर और २० साल से बेड पर है.इन २० सालो में परिवार को कितनी मानसिक,शारीरिक और आर्थिक कष्ट हुआ भगवान् ही जानते लेकिन हनुमानजी ने बचा लिया और अभी भी ८० साल में थोडा बहुत लेते लेते कार्य कर लेते.उपभोक्ता फोरम में ६ साल केस डाक्टरों के खिलाफ ;लड़ा फिर ४ साल सर्वोच्च न्यायालय में परन्तु एक तो विरोधी बड़े वकील कर सके और हमारी तरफ से हमारा छोटा लड़का था तो केस हारना था क्योंक कोर्ट ने अपना डाक्टर नियुक्त नहीं किया और एक डाक्टर जो विरोधी लाये उसने गालटी रिपोर्ट दे दी.हमने २ मामले में सुना की डाक्टरों के खिलाफ दंड हुआ एक मामले में १२ करोड़ और दुसरे मानले में ३ करोड़ हमारे देश में अभी बदलाव की बहुत ज़रुरत है.
रमेश अग्रवाल,कानपुर
क्रमश –
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