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मर्यादा पुरुषोतम भगवान राम के प्रागट्य पर्व पर सत सत नमन

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय  श्री राम चैत्र नवरात्रों का समापन भगवान् राम के प्रगट्य दिवस राम नवमी से होता है जो देश विदेश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है भगवान् राम वैदिक मान्यता के अनुस्सर १० मुख्य अवतारों में ७ वे थे सो चैत्र शुक्ल नवमी को अयोध्या में  राजा दशरथ के यहाँ वरदान स्वरुप माता कौशल्य के यहाँ  चार भुजा के स्वरुप में प्रगटे थे और उस वक़्त सारे देवता उनकी स्तुति  करने आये थे बाद में माता के अनुरोध पर भगवान् राम बाल रूप में रोते हुए बन गए जिसको सुनकर महल में खूब खुशियाँ मानी गयी भगवान राम विष्णु के अवतार माने जाते है जो रावण और दुसरी राक्षस समूह को नष्ट करने के लिए देवताओ की प्राथना पर अवतार लिया था लेकिन वे अवतारी पुरुष की जगह अपने कार्यो आदर्शो से जन जन की अन्दर रम गए और इसीलिये वे मर्यादा पुरषोतम कहलाये जाने लगे.वे एक पुरुष न होते एक आस्था ,लोगो के मन में समां गए !गावो और बहुत जगह राम राम से अभिवादन किया जाता.सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि जी ने नारदजी की प्रेरणा से उनके बारे में रामायण लिखी लेकिन घर घर में उनको पहुचने का काम संत तुलसीदास जी ने १६३१ में रामचरितमानस लिख कर की .इसका घर घर पाठ  होता,लोगो को इसके दोहे याद रहते सुन्दर कांड और संपूर्ण रामायण के पाठ होते आश्विन माह में रामलीला के द्वारा इसको जीवत रक्खा गया बड़े लोग बच्चो को रामायण की कथा सुनते और चाहते की उनके बच्चे भगवन राम की तरह बने.राम जी गंभीरता में समुन्द्र के समान ऊँचाई में हिमालय के समान,सत्य के विग्रह मर्यादाओ को टूटने नहीं देते  उनकी छवि लौकिक है उनके बाल चरित्र को सुन कर सब मुग्ध हो जाते सबरे उठ कर माता पिता के पैर छूते राजकुमार हो कर भी सखावो  के साथ भोजन करते,गुरूजी के यहाँ  साधारण विद्यार्थियो की तरह जा कर शिक्षा ग्रहण  करते गुरु का सब काम आज्ञा लेकर करते राज्य में भी पिता दशरथ और गुरूजी से आज्ञा लेकर राज्य का कार्य करते थे.अपने चरित्र से उन्होंने एक आदर्श पुत्र,भी,राजा,पति,की भूमिका निभाई साथ में निषाद राज,सुग्रीव,विभीषण से दोस्त का आदर्श उद्धरण पेश किया केवट से उनका आदर्श को दिखता जब वे गंगा पार के लिए केवट के सब शर्त मान लेते.सुग्रीव की दोस्ती  के लिए बाली को छिप कर मारने पर लोग सवाल उठाठे लेकिन उन्होंने दोस्त का फ़र्ज़ निभाते बली को उसके गालात कार्य के लिए मारा.विश्वामित्र जी के साथ उन्होंने तारका को भी मर कर ये सन्देश दिया समाज को कष्ट देने वालो दुष्टो को कभी नहीं छोड़ना चाइये नहीं तो बाद में वे समाज को बहुत हानि पहुंचा सकते शावरी माता से उनकी आत्मीयता उनके चरित्र का एक बहुत अच्छा पहलू वे प्रेम के भूखे  न की सामन के उनको सच्चे प्रेम से जीता जा सकता.’रामायण में लिखा है “निर्मन मन जन सो मोई पावा ., मोई कपट  छल छिद्र न भावा “विश्वामित्र जी के साथ जनकपुरी जाते रास्ते  में अहिल्या माता का उद्धार करने में उन्होंने नारी के प्रति अपना सम्मान दिखया .जनकपुरी में उन्होंने आदर्श शिष्य का आदर्श उत्पन्न किया पुष्प बाटिका मे फूल तोड़ने के पहले माली की आज्ञा लेते और माता सीता को देखने के बाद सब प्रसंग गुरूजी से निसंकोच बता दिया वहां नगर वाशियो के साथ मिलते धनुष तोड़ने  के कोइ जल्दी नहीं दिखाई जबतक गुरूजी ने स्वयं नहीं कहा परुशराम जी के गुस्सा होने पर भी शालीनता का परिचय दिया.केकईजी १४ वर्ष  के दिए वनवास पर भी कोइ कटुता नहीं और आने के बाद सबसे पहले उनसे मिले.उन्होंने किसी राज्य को मिलाने की कोशिश नहीं की सुग्रीव और विभीषण के राज्य को उनको ही दे दिया.उन्होंने दुश्मन की भी अच्छी गुणों का आदर किया रावन  के मरने के बाद भी भी लक्ष्मण को उसके पास सीखने के लिए भेजा, उसके पांडित्य की प्रशंसा करते और मरने के बाद जब विभीषण रोये  तो उनके साथ दुःख जताते   उसे दाह क्रम और राज्यभिषेख की व्यवस्था की.वन में जब भरत जी मनाने आये तो उनको शांति से धर्म समझाते वापस भेजा इतने लोगो का आदर सत्कार किया और चरण पादुका दे कर संतुस्ट किया.उनके राज्य को राम राज्य कहा जाता क्योंकि उन्होंने ऐसा राज्य जहां किसी के साथ अन्याय न हो सब अपने धर्मका पालन करे इसकी व्यख्या रामचरितमानस में विस्तार से दी है रामराज्य की स्थापना में जनक जी की चारो पुत्रियो ने अपने कर्तव्य बलिदान से किया,भरत जी द्वारा चरण पादुका को सिंघासन पर रख कर और भगवान् राम के निषाद राज गुह की दोस्ती से हुई.हमेश शास्त्रों  की सीख पर चलते यहाँ तक नागरिको से अपनी गलतियां बताने के लिए भी कहा.! हमेश न्याय सत्य का साथ दिया और राज्य और माँ सीता का त्याग किया.चाये लक्ष्मण जी की मूर्छा के वक़्त संजीवनी लेन का प्रश्न हो या रावण को मरने का कभी शोर्ट कट नहीं अपनाए हनुमानजी का सहारा लिया या समुद्र में पुल बाँध कर सत्य संघर्ष और पुरषार्थ का मार्ग अपनाया.इसीलिये  महान कवि  मैथली शरण गुप्त ने लिखा “हे राम तुम्हारा चरित्र स्वयं काव्य है,कोइ कवि बन जाए सहज समन्य है ” राम शौर्य,धीरज,सत्य शील,बल विवेक,दया,परहित,क्षमा कृपा, बुद्दी ,सत्यवती,ज्ञान पवित्र भावनाओं धर्म के संरक्षक उदार हृदय की माहन विभूति है.भगवन  राम के प्रगट्य दिवस पर देश के कइ  राज्यों में शोभा यात्रा निकली जाती जिसमे अयोध्या,रामेश्वरम और आन्ध्र प्रलोग  के भद्रचलंम प्रसिद्ध है !जिसमे लाखो देशी विदेशी लोग सम्लित हो कर आयोजन को सफल बनाते है!अयोध्या में सबसे ज्यादा भीड़ होती जहाँ लोग सरयू में नहाने के बाद लोग कनक भवन,कौशल्य भवन,केकई  भवन कोप भवन,राम राज्याभिषेक स्थान को देखते और १४ कोसी परिक्रमा करते. !भगवान् राम ने भी रावण को मारने के लिए माँ दुर्गा की पूजा की थी आज के दिन भगवान् राम की पूजा करके व्रत रखते और रामायण,राम रक्षा स्त्रोत बजरंग बाण हनुमान चालीसा का पाठ करते है क्योंकि हनुमान जी की पूजा से भगवान् राम की कृपा बहुत जल्दी मिल जाती.आज के दिन कोइ भी नया कार्य शुरू किया जा सकता है.सीतामढी में पहले एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला इन दिनों लगता था जो १ माह तक चलता था जिसका जिक्र ब्रिटिश गजेट में भी मिलता है रजा महाराजा भी भाग लेते थे लेकिन अब केवल १ हफ्ते चलता जिसमेकपडा और दवाई बिकती है.झारखण्ड छतीसगढ़ में भी ये  धूम से मनाया जाता.भगवान् राम से भी ज्यादा उनके नाम की महिमा है क्योंकि रामजी ने अहिल्या का उद्धार किया परन्तु उनके नाम ने असंख्य लोगो का उद्धार किया जिसमे हनुमानजी,गणिका,व्याध,गज गिद्ध,शावरीमाता,ध्रुव,प्रहलाद तुलसीदास जी और असंख्य भक्त तर गए “राम एक तापस तिय तारी ,नाम कोटि खल कुमति सुधरी.”राम राम जपने से सकरात्मक उर्जा का संचार होता लगातार जप करने से रोम रोम पुलकित हो जाते जो एक परम शक्ति है.राम नाम लिख कर  या राम रक्षा स्त्रोत से अभिमंत्रित पर्ची बाँधने से रक्षा होती.नाम के बारे में लिखा है की “कहो कहा लगि नाम बढ़ाई ,राम न सकहि नाम गुन  गाई”भगवन राम के दर्शन और कृपा के लिए बस हनुमान जी का सहारा लेना चाइये!तुलसीदास जी को हनुमान जी ने दर्शन करवाए थे चित्रकूट में एक भूत के कहने से हनुमान जी से मुलाकात हुई और उन्होंने रामजी  के दर्शन की इच्छा की एक बार तो चूक हो गयी तब घाट के किनारे जब तिलक बच्चो को लगा रहे थे तो तुलसी दस्स्जी ने तोते का रूप रख कर कहा “चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़ ,तुलसीदास चन्दन घिसे तिलक देही रघुवीर.”तुलसी दस् जी को भगवान् के दर्शन हो गए.इस कलयुग में राम नाम ही सबसे बड़ा आधार और सरल उपाय है.!”कलयुग जोग न  जग्य  न ग्याना,एक आधार  राम भगवाना “सोते सुबह उठते राम राम बहुत संतोष प्रदान करता भगवान् से यही मानगो “नाथ एक वर मागहु राम कृपा कर देहु ,जन्मा जन्मा प्रभु पद कमल कबहू घटे जन मोहि ” तुलसीदासजी रामायण पहले संस्कृत में लिखना शुरू किया लेकिन शंकर जी ने स्वप्न में हिंदी में लिखने को कहा और पुरी होने पर उसपर सत्यम सिवम सुन्दरम लिखा.भगवान् राम अपने भक्तो की हर कामना पुरी करते एक बार वृन्दावन में तुलसीदास जीकृष्णा भगवान् के मंदिर में गए तो किसी ने कह दिया आपके इष्ट तो भगवान् राम है फिर कृष्णा जी के दर्शन क्यों?उन्होंने फ़ौरन ये दोहा पढ़ा “कहा कहाँ छवि आजू की भले बने हो नाथ, तुलसी म्मस्तक तव नवे,धनुष वाण लो हाथ “फ़ौरन मुरली की जगह भगवन के हाथो में धनुष वां आ गए.इस तरह भगवान् जी अपने भक्तो पर बहुत कृपालु है.रामानंद सागार ने रामायण सीरियल दिखा कर इसे घर घर पहूंचाया और इस पर एक बहुत मशहूर फिल्म राम राज्य बनी थी !राम के बारे में जितना भी कहा जाए कम एक  एक अथाह सागर है.आज कल देश के कोने कोने और विश्व में राम चरित लो पहुचने में हमारे धर्म गुरुओ और धार्मिक टीवी चैनलों का बहुत योगदान है जिन्होंने ने पुरे विश्व को राम माया बना दिया.लेकिन कुछ बुद्दिजीवी और हिन्दू विरोधी भगवन राम में भी गलती निकलने में लगे रहते लेकिन लोगो के विश्वास में कोइ कमी नहीं आ रही

.राम का नाम की महीमा ही ऐसी है.मरते वक़्त भी यही नाम लिया जाता. 10151352_611245775619632_2358395914339180479_n

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राम नवमी के पवन पर्व और रामजी के प्रगट्य दिवस पर सबलोगो को हार्दिक शुभकामनाये.भगवान् राम राष्ट्र को अपना आशीर्वाद प्रदान करे.

रमेश अग्रवाल, कानपुर

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