जय श्री राम हमारे ऋषि मुनिओ को देश की एकता की बहुत चिंता थी इसलिए देश की सांस्कृतिक ,भौगोलिक और आध्यात्मिक एकता के लिए उन्होंने बहुत से धार्मिक सामजिक त्योहारों और मेलो का आयोजन किया जिसमे कुम्भ मेले विश्व के सबसे बड़े मेलो में माने जाते है.जिसमे देश के विभिन्न भागो से बिना किसी भेदभाव के और विदेशो से करोडो लोग इन मेलो में आकर पवित्र नदियो में स्नानं करके पुण्य के भागी बन के अपने को भाग्यमान समझाते है.!इन कुम्भ मेला के लिए बहुत प्रसिद्ध पौराणिक कथा है जब देवता लोग राक्षसों से हार गए तो भगवान् विष्णु के समझाने पर असुरो के साथ समुद्र मंथन करके अमृत निकलने के लिए राजी हो गए इस मंथन में आखिर में भगवान् धन्वन्तरी जी हाथ में अमृत से भरा कुम्भ ले कर प्रगटे जिसे इंद्रा का पुत्र जयंत ले कर भगा असुरो ने उसका पीछा किया और इस तरह १२ दिनों तक देवताओ और असुरो के बीच युद्ध हुआ और अमृत की बूंदे प्रथ्वी में ४ जगह प्रयाग ,हरिद्धवार ,उज्जैन और नासिक में गिरी इसलिए इन ४ जगहों में कुम्भ मेले का आयोजन होता है.चूंकि युद्ध १२ दिन तक चला और देवताओ का एक दिन प्रथ्वी के एक साल के बराबर होता इसलिए १२ कुम्भ मेले होते जिसमे ४ प्रथ्वी में और ८ देवलोक में होते जहां मनुष्य नहीं जा सकते.इसीलिये इन ४ जगहों में हर १२ वर्ष के बाद कुम्भ मेले आयोजित किये जाते है.कलश की छीना झपटी में चन्द्रमाँ ने प्रस्वन रोकने,सूर्य ने घट फूटने,गुरु ने अपहरण और शनि ने देवेन्द्र के भय से कुम्भ की रक्ष की इसलिए इन ग्रहों की खास स्थित में कुम्भ मेले का आयोजन होता है.अंत में भगवान् ने मोहनी रूप रख कर अमृत देवताओं को पिला दिया था.!कुम्भ अंध विश्वास पर नहीं खगोलिक स्तिथ्यो पर आधारित है और इसका उल्लेख बहुत से शाश्त्रो पुरानो में पाया जाता है.कुम्भ का अर्थ कलश होता है जो हमारी सभ्यता का संगम है आत्म जाग्रति का प्रतीक ,उर्जा का स्रोत है .कलस के मुख में विष्णुजी,गर्दन में रूद्र ,आधार में ब्रह्मा बीच के भाग में संमास्त देविओ और अन्दर के जल को संपूर्ण सगरो का प्रतीक मन जाता है..प्रकर्ति और मानव का संगम है.!जब सूर्य और चन्द्र मकर राशी तथा गुरु मेघ या वृषभ राशि में हो और अमावस्या के दिन हो तो प्रयाग में होता है.!जब गुरु कुम्भ राशी में सूर्य मेघ राशी में तब हरिद्वार में होता है.!जब गुरु सिंह राशी में,सूर्य मेघ राशी में चन्द्र कर्क राशी में तब नासिक में होता और जब सूर्य तुला राशी,गुरु वृशिक राशी में तब उज्जैन में होता है.इलाहाबाद में गंगाजी के साथ यमुना जी का संगम है और हरिद्वार में गंगाजी इसलिए इन दोनों स्थानों में ६ वर्ष के बाद अर्ध कुम्भ मेले भी होते है.नासिक गोदावरी के किनारे है जिसे गौतमी भी कहते क्योंकि ये ऋषि गौतम जी द्वारा तप से आई थी जो गंगा जी का ही रूप है इसी तरह उज्जैन शिप्रा नदी के किनारे है जिसे भगवान् महाकालेश्वर की वजह से काशी की उतरी गंगा के नाम से जाना जाता है.!कुम्भ तो प्राचीन काल से आता रहा अग्रेज़ी लेखो में भी उल्लेख मिलता लेकिन सबसे पहले ८वी शताब्दी के बौध तीर्थ यात्री हेन्सांग के लेख में मिलता जिसने सम्राट हर्षवर्धन के समय होने वाले जनवरी फरबरी (माघ मॉस) में ७५व दिनों तक चलने वाले कुम्भ मेले का वर्णन दिया था,वैसे सभी कुम्भ मेले का उतना ही महत्व है लेकिन प्रयाग की ज्यादा महत्त्व माना जाता.१४४ साल के बाद पड़ने वाले को महा कुम्भ कहते है.!आज कल उज्जैन में कुम्भ मेला हो रहा जो २२ अप्रैल से २१ मई तक होगा.उज्जैन का खास महत्व है क्योंकि ये राजा विक्रमादित्य जिनके नाम से विक्रम संवत होता है,कलिदास्जी ,राजा भरथरी ,अर्याभट्ट ,राजा भोज ,मौर्या राजाओ सवाई जय सिंह की कर्म भूमि और सम्बंधित है.देश के सप्तपुरियो में एक,१२ ज्योत्रिलिंगो में एक यहाँ है.भगवान् कृष्णा ने गुरु संदीपनी के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करके सुदामजी से दोस्ती हुई थी.भगवान् राम ने अपने पिता का श्राद्ध यही किया था और रामघाट यही है.और भगवन शिव ने त्रिपुरा राक्षस का बध यही किया था.उज्जैन भूमध्य रेखा के बीच में है इसलिए यहाँ का सूर्योदय खास होता है.अध्यात्मिक संस्कृतिकऔर भौगोलिक चेतना का महापर्व है धार्मिक जागृत द्वारा मानवता,त्याग,सेवा,उपकार प्रेम,सदाचरण,अनुशासन,अहिंसा,सत्संग,भक्तिभाव,अद्द्यन,चिंतन,परम शक्ति में विश्वास,और सन्मार्ग आदि आदर्शो गुणों को संयोजित करने वाला पर्व है.आदि शंकराचार्य जी ने साधुओ को १० भागो में विभाजित किया था.आजकल उज्जैन एक लघु भारत लग रहा है !कुम्भ में स्नानका खास महत्त्व होता कहा जाता हजारो यज्ञो का फल मिल जाता है कुम्भ में देश के विभिन्न अखाड़ो के साधू संत अपने शिविर लगाकर अपने झंडे और प्रतीक चिन्ह लगा कर धर्म के प्रसार और विभिन्न समस्याओ पर गहन चिंतन करते रहते नागा साधुओ के शिविर खास आकर्षण के केंद्र होते ये लोग ॐ नमो नारायण के नारे लगते,शिवजी के भक्त होते गुरु की सेवा आश्रमों में काम,प्राथना,तपस्या,योग क्रियाये और धर्म के प्रसार के साथ अपने चिन्ह त्रिशूल,डमरू,रुधाक्ष ,तलवार आदि रखते है.उज्जैन में भी नागाओ को दीक्षित करके उन्हें धर्म के प्रसार के लिए प्रेरित किया जाता परन्तु इनकी जिन्दगी बहुत ही कठिन और अनुशासित होती.साधू लोग अस्त्र शस्त्र क्यों रखते जबकि उनके हाथो में शास्त्र होने चाइये का एक घटना है १३९४ में तैमूर लंग ने हरिद्द्वर कुम्भ मेले में हजारो लोगो की हत्या कर दी थी तबसे आत्म रक्षा के लिए शस्र्त्र रखने का चलन हो गया..उज्जैन में एक महामंडलेश्वर महेश्वरानंद पुरी के शिविर में बहुत से विदेशी भक्त दिखाई पड़ते जिन्होंने गुरूजी से दीक्षा ले कर आध्यात्म में आ गए भगवा कपड़ो में ये शिविर में झाड़ू लगाने से लेकर खाना परोसने तक के काम खुद करते भारतीय ढंग से हाथ जोड़ कर लोगो का अभिभादन करते बहुतो ने हिंदी संस्कृत सीख लिए अपने नाम भारतीय रख लिए दुनिया की चका चौंध छोड़ कर सन्यासी हो गए.बहुत से तो महामंडलेश्वर की पदवी प् गए.कुम्भ मेले में जगह जगह रामायण,श्रीमद भगवत,शिव पुराण और श्री मद गीता पर कथाये और धार्मिक चर्चाये होती जिनका आस्था,संस्कार दिव्या टीवी पर प्रसारण होता सांस्कृतिक कार्यक्रम होते आध्यात्मिक गुरुओ के शिविरों में उनके अनुययियो के रहने प्रसाद की व्यवस्था है इसके अलावा मन अब आध्य्त्मा में है.प्रदेश के सरकार ने बहुत अच्छा इन्तिज़ाम किया और मुख्य मंत्री शिव राज जी ने खुद देख भाल की.बहुत से भारतीय उच्च डिग्री लेकर ऊंची नौकरी छोड़ कर आध्यात्म की रहा पर आ गए.इनमे से एक महामंद्रेश्वर शिवांगी नन्द गिरी बी ई आर्किटेक्ट उज्जैन की हैं सो साधू हो कर धर्म की सेवा कर रही दुसरी अघोर तांत्रिक डॉ शिवानी दुर्गा ने शिकागो विश्वविद्यालय से P.Hd occalt साइंस के साथ दस महाविद्या कर्मकांड में भी डिग्री ली वह अलवर की है और आजकल आध्यात्म जे जुड़ गयी.देखने में सिंहस्थ कुम्भ मेले बहुत अच्छा लगता !आधुनिक तकनीक के होते कुम्भ मेले भी वैसे ही आधुनिक हो गए,विदेशी भक्तो को भगवन कृष्णा शिवजी रामजी के भजनों को गाते बहुत अच्छा लगा एक मुस्लिम पंडित फारूक रामायणी दिन में ५ बार नवाज़ पढ़ते परन्तु इस कुम्भ में रोज़ ३ बजे से ६ बजे तक भगवान् रामजी की कथा कहते.चारो ओर वेद मंत्रो की गूँज के साथ हवन कुंड से उड़ता धुएं की महक पुरे क्षेत्र में फ़ैल कर बहुत ही आनद देती है..एक शिविर में बच्चो के आँख पर पट्टी बाँध कर कागज़ में कुछ लिख दिया जाता और ये पढ़ लेते इनके गुरूजी ने बताया की इनलोगों को वैदिक ध्यान की पद्धति से प्रशिषित किया गया भी हमने टीवी में देखा और टीवी वालो ने खुद इसकी परीक्षा ले कर आच्चर्यप्रगत किया.हो सकता आज कल के कुछ बुद्दिजीवी जो हिन्दू धर्म की आलोचना करते इसको स्वांग या और कुछ बताये लेकिन सच सत्य है छूप नहीं सकता..हमारा बहुत मन होता की वहां जा कर आनद उठाये लेकिन इस्वरीय आदेश के आगे नतमस्तक!स्वस्थ्य कारणों से टीवी से घर बैठेकथा और मेले का आनंद लेते है. और उम्मेद्द है की हमको भी पुण्य मिलेगा.कुम्भ मेले की आप सबलोगो को हार्दिक शुभकामनाये.
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