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माँ गंगा को हिन्दू धर्म और संस्कृित में विशेष स्थान प्राप्त है! इसकी घाटी में ऐसी सभ्यता का उदय और विकास कुा जिसका प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवमही और वैभवशाली जहां धर्म,अध्यात्म,सभ्यता संस्कृित की ऐसी किरण प्रस्फुलित हुई जिसने समस्त संसार आलोकित हुआ.इस घटी में रामायण ,महाभारत कालीन युग के साथ मगध महाजनपद का उद्ध्व हुआ. यही भारत का वह स्वर्णयुग विकसित हुआ जब मौर्या वंशीय राजाओ ने शासन किया.!ये देश की प्राकर्तिक सम्पदा ही नहीं जन जन की भावात्मक आस्था का आधार है महँ पवित्र नदीओ में सर्वश्रेष्ट और इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है!
भारत की सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण रखने वाले प्रमुख आधार स्तम्भों में माँ गंगा का महत्व पूर्ण स्थान है..माँ गंगा के दर्शन,स्पर्श,स्नान ,पान और नाम उच्चारण से जन्म जन्म के पाप कट जाते और भक्तो की ७ पीडिया तक पवित्र हो जाती..इनका अवतरण ही राजा सागर के ६०००० पुत्रों को उद्धार के लिए हुआ था.हर एक की इच्छा होती की अंतिम समय गंगा जल की बूंदे उसके मुँह में दी जाए और मरने के बाद उसकी रख हड्डिया गंगा जी में प्रवहित हो.देश के पहले प्रधान मंत्री नेहरूजी ने भी ऐसा वसीयत में लिखा था!हर मांगलिक कार्य में गंगा जल का इस्तेमाल होता है !
सतयुग में सभी तीर्थ थे,त्रेता में पुष्कर,द्वापर में कुरक्षेत्र और कलयुग में गंगा तीर्थ मन जाता है.गंगोत्री से गंगासागर तक इसकी लम्बाई २९०० किलो मीटर है यदपि नील(इजिप्ट ,मिसौरी मिसीसोपी (अमेरिका) चीन के आंगजे और यूरोप की दैनुक गंगा जी सेकई गुनी बड़ी है लेकिन वे गंगाजी की महिमा के आगे कही नहीं टिकटी!ये कहाँ से आती कहाँ सागर में मिलती कोइ नहीं जनता यदपि कहते की गोमुख से निकल कर गंगासागर मिलती.गंगोत्री के १३८०० फ़ीट ऊंचे जिस हिमनद से ये निकलती दिखाई देता बहुत दूर तक बर्फ का पहाड़ दिखाई देता उसके मुहानो में उनकी धाराओं से किस्में से जन्मा होता अदृश्य है इसी तरह बंगाल की खड़ी में कई धाराओं में बाट कर समुद्र में मिलती और ६० मील तक चिकनी बालुका में फैले पठार के बीच में होकर अदृश्य हो जाती!
गंगोत्री से लाया जल दक्षिण में रामेश्वर जी में चढाने की प्रथा जो उत्तर और दक्षिण भारत की राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है. गंगा जी ही ऐसी नदी है जिसका पानी बहुत दिनों तक ख़राब नहीं होता इसीलिये अँगरेज़ भी होने पानी के जहाज़ों में गंगाजल ले जाते थे.बहुत से विदेशिओ ने परिक्षण कर पता लगाया की इस जल में कीटाणुओं को नष्ट करने की अध्भुत क्षमता है.पहाड़ों में ऐसे रासयनिक वनस्पतियों के चलते ये क्षमता मिली और इसके जल के लगातार प्रवाह के कारण ऐसा फिर इसमें आक्सीजन की मात्र सबसे ज्यादा होती जो गंदे नाले इसमें मुिलते पहले उसमे कीटाणुओं की संख्या बहुत थी लेकिन मिलने के बाद बहुत काम रह जाती इसीलिये बहाई गयी हड्डियां भी गल जाती.
गंगा जल पीने और इसकी मिट्ठी लगने से बहुत से रोग अच्छे हो जाते है मुग़ल सम्राट अकबर,औरंगज़ेब और दूसरे मुस्लिम शासक गंगाजल पीने और कहना बनने के लिए इस्तेमाल करते थे. गंगाजी के किनारे बहुत से प्रसिद्ध शहर और जाओ बेस है और खेती की उत्थान में भी आम भूमिका है. कुछ प्रसिद्ध शहर है ऋषिकेश, हरिद्द्वार, कनखल, शुक्ताल, गढ़मुक्तेश्वर, बिठूर, कानपूर, प्रयाग, श्रेंगवेरपुर, काशी, मुंगेर, पटना, बेलूरमठ, दक्षिणेश्वर कोलकाता! बहुत से मेले भी लगते जिसमे गढ़मुक्तेश्वर, प्रयाग का माघ मेला, गंगासागर के अलावा कुम्भ मेले भी प्रसिद्ध है. काशी विश्व की सबसे पुरानी नगरी है जिसे मान्यता अनुसार भगवान शिव ने स्थापना की थी इसे देश की धार्मिक राजधानी भी कहा जा सकता है.
इसका जिक्र बहुत शाश्त्रो और पुरानो में है य भहाँ कागवान् विश्वनाथ जी का मंदिर पुरे देश में प्रसिद्ध और १२ में से एक ज्योतिलिंग है !गो मुख से हरिद्द्वार तक २०० किलो मीटर का पहाड़ी सकरा मार्ग तय करटी है और रस्ते में ५ नदीओ के संगम होते देव,रूद्र,कर्ण,नन्द+ और विष्णु प्रयाग है जहाँ विष्णु प्रयाग में धौरी गंगा मिलती जिसके बाद ये गंगा जी कहलाती पच्छिम बंगाल में गंगा कई धाराओं में विभाजित हो जाती पद्मा (बंगाल में गंगा का श्रोस्त)जिसे फरीदपुर के बाद मेघना कहते जो नोआखली में सागर में मिलती.भगिरीथी और जालंगी की संयुक्त धारा को हुगली कहते जिसे वहाँ के लोग गंगा ही कहते है.इसके किनारे होग्ला घास पैदा होती जिससे इसका नाम हुगली पद गया !
गंगा जी के अवतरण की पौराणिक कथा ऐसी है.रघुवंश में एक राजा सगर थे जिनके तो पत्नी थी एक से अंशुमान के और दूसरे से ६०००० पुत्र हुए जो बहुत उद्दण्ड थे.एक बार राजा ने अश्वमेध यज किया जिसके घोड़े को इंद्रा चुरा कर पातळ में कपिल मुनि के आश्रम में रख आया !घोड़े को ढूड़ने राजा ने अपने ६०००० पुत्रों को भेजा जो मुनि के आश्रम पर गए और ये समझ के की इसने ही घोडा चुराया कपिलजी को मारना शुरू कर दिया जिससे क्रोध से उनकी आँख खुली और ६०००० भस्म हो गए.जब ये पिता के पास नहीं पहुंचे तो पिता ने पुत्र अंशुमन को भएका जिसने कपिलजी के आश्रम जा कर उन्हें प्रणाम किया खुश हो कर उन्होंने घोडा दे दिया और पूछने पर बताया की तुम्हारे भाइयो की मोक्ष गंगा माँ के जल से होगी.
यज्ञ करने के बाद पहले राजा फिर पुत्र अंशुमान और उसके बाद उनके पुत्र दिलीप और बाद में राजा भगीरथ ने माँ गंगा को लेन के लिए ब्रह्मा जी का टप किया जिससे प्रसन्न हो कर ब्रह्माजी ने वरदान मांगने को कहा भगीरथ जी न माँ गंगा को माँगा ब्रह्माजी देने को राज़ी हो गए पर माँ गंगा का बेग से पृथ्वी रसातल में समां जाएगी इसलिए भागीरथजी ने ब्रह्माजी के कहने से भगवान् शिव की तपस्या की और प्रसन्न हो कर वे राज़ी हो गए अपनी जटाओं में लेने को लेकिन माँ गंगा शिवजी को भी अपने बेग से बहाना चाहती इसलिए शिवजी ने उनको जटाओं में बंद कर दिया भगीरथ जी की प्राथना पर अपनी एक जटा से गंगाजी की एक धारा छोड़ी जो जगह बिन्दुसर कहलाता है.!
राजा भागीरथ आगे रथ में पीछे माँ गंगा पहाड़ों,व्रक्षो को तोड़ते बेग से आ रही थी रस्ते में उनके द्वारा जावनी मुनि के आश्रम का सामन बहा ले गयी जिससे क्रोधित हो कर उन्होंने गंगा जी को पी लिया बाद में भगीरथ जी की प्राथना में कान से निकल इसलिए माँ का एक नाम जाह्नवी या जहनुनन्दनी पद गया.फिर भगीरथ जी कपिल मुनि के आश्रम गए और माँ गंगा के स्पर्श से उनके ६०००० पूर्वज स्वर्गलोक को चले गए. इस तरह माँ गंगा विष्णु जी के पैर धोने से ब्रह्मा जी के कमांडर से शिव जी की जटाओं में गयी इसलिए त्रिदेव से उनका सम्बन्ध है.
ब्रह्माजी के कमांडर की कथा रोचक है वमन अवतार में भगवान् ने दूसरा पग जब बढ़ाया तो स्वर्ग में ब्रह्माजी ने धोकर जल को अपने कमांडर में भर लिया जो गण जी हुई.गंगा जी की एक शंका थी की उनमे स्नान करने से पापिओ का पाप उनपर आ जाएगा फिर उनका उद्दार कैसे होगा तब उन्हें बताया गया की साधु सन्यासी और तप करने वालो के स्नान करने से तुम पवित्र हो जाओगी !ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष दसमी को गंगा अवतरण माना जाता इसलिए इसे गंगा दशहरा भी कहते और इस दिन पूजन से १० तरह के पाप नष्ट हो जाते .
३ शारीरिक (१.बिना दिए दूसरे की वास्तु लेना,२.शास्त्र वर्जित हिंसा करना ३.पर स्त्री गमन करना),वास्विक (४..कटु बोलना, ५.झूठ बोलना,६.किसी का दोष पीछे से कहना ७.निष्प्रयोजन बाते करना )मानसिक (८.दूसरे के धन को अन्याय से लेना ,९.मन से दूसरे का अनिष्ट करना १०.नास्तिक बुद्धि रखना ).एक मान्यता के अनुसार भगवान् विष्णु की ३ पटरानियाँ थी माँ लक्ष्मी,माँ गंगा और माँ सरसवती .!माँ सरस्वती के श्राप से माँ गंगा और माँ गंगा के श्राप से माँ सरस्वती को नदी बन कर आना पड़ा और लक्ष्मी जी को श्राप से तुलसी और पद्मावती नदी के रूप में आना पड़ा.
भगवान् विष्णु ने कहा की कलयुग के ५००० पुरे होने पर तुम लॉफ वापस पृथ्वी पर आ जाओगी.!गंगा जी को भागीरथी,जाहन्वी ,विष्णुपदी ,अलकनंदा,मन्दाकिनी (मंद मंद बहने वाली),हरी प्रिय (भगवान् की पत्नी के रूप ),त्रिपथगा (स्वर्ग,पृथ्वी और पाताल में बहने वाली ),सुरसरि (स्वर्ग की नदी ) के नाम से भी जाना जाता है. भगवान् कृष्णा ने ब्रिज भूमि में विभिन्न रूपों में गंगाजी को प्रगट किया.१.कृष्णा गंगा -मथुरा के घाट में जहां कंस को मार भगवान् ने विश्राम किया था !२.मानसी गंगा :-भगवान् कृष्णा ने असुर वृषभसुर को मार कर हत्या के प्रायश्चित करने के लिए मन से गंगा को प्रगट किया था.
३.अलखगंगा-नंदबाबा बद्रीनाथ जाना चाहते थे इसलिए सब तीर्थो को स्थापित किया जो “आदिबदरी” गांव के पास है!४ चरण गंगा :-चरण पहाड़ी में गोप बलों की प्यास बुझाने के लिए मन से जल की धारा फुट पडी और एक कुंड बन गया जहाँ पैर धोहे थे.५.पारल गंगा:- माँ राधा जी ने अपने मन से प्रगट किया.ये पांचो गंगा हरिद्वार ,शुक्ताल,नैमिश्रयण ,प्रयाग और पुष्कर तीर्थ के बराबर है.इसी तरह दक्षिण भारत में नासिक में नर्मदा गौतमी कहलाती और गोदावरी दक्षिण की गंगा मानी जाती.वैसे गंगा माँ की महिमा को बखान करना नामुमकिन है.
गंगा माँ राष्ट्र को अपना आशीर्वाद दे !आप सबको माँ गंगा आशीर्वाद दे.!
रमेश अग्रवाल,कानपुर.
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे, आंकड़े या तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।
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