विश्व को ज्ञान देने वाली भाषा संस्कृत को भारत ने ही क्यों भुला दिया ?
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम विश्व को हर क्षेत्र में ज्ञान का भण्डार हमारे देश ने महाभारत ,रामायण चारो वेद,पुरानो,श्रीमद भगवत गीता,श्रीमदभागवत,मेघदुतम,शकुंतलम,भारत मुनि का नाट्यशास्त्र वात्सायन का कामसूत्र,पशु पक्षिओ की कथाओ को सुनकर संपूर्ण राजनीती की शिक्षा देने वाला पंचतंत्र,ज्योतिष,आयुर्वेद,संगीत ऐसी अनूठी विधाए संस्कृत भाषा में रचित है जिसका अध्यन बिना संस्कृत के ज्ञान के नहीं हो सकता.विश्व के २६० विश्वविद्यालयो में संस्कृत पढ़ी जाती .देश के ४ गावो ऐसे है जहां संस्कृत में ही सब कार्य होते और २ उत्तराखंड के होने वाले है.इसका व्याकरण का अनुपम ग्रन्थ पारणीकृत अष्टाध्यायी विश्व के अनेक विध्यानो ने मानव मस्तिस्क की अभूतपूर्ण कृत मानी है.इसके व्याकरण की सर्वश्रेष्ठता,इसके लेखन,और वचन में एकरूपता होने के कारन बहुत से विदेशी विद्वान इस कंप्यूटर के लिए सर्वश्रेष्ट्र भाषा मानते है.!बहुत से विदेशी विद्वान जिन्होंने इसका अध्यन किया जैसे प्रोफ.मेक्डोनल् प्रो.दुयुबोई ,वोल ड्युरा इसको विश्व की सब भाषाओ की जननी मानते है हमारे यहाँ के महापुरषों श्री अरविन्दजी,महामना मालवीय जी,तिलक जी,आदि लोग संस्कृत के महान विद्वान थे और इसको सर्व श्रेष्ट्र भाषा मानते थे.नेहरूजी ने कहा था की संस्कृत के लिखे भाषा के लिखे ग्रन्थ सबसे बड़े धरोहर है और जबतक है हम लोगो को प्रेरणा देते रहेगे और जिसदिन इन महाकाव्यों को भूल जायेंगे भारत का अस्तित्व ख़तम हो जाएगा.जर्मनी ने हमारे ग्रंथो से पढ़ कर ही युद्ध सामग्री और विमान विकसित किये थे.प्रो मैक्समुलर ने संस्कृत का गहन अध्यन किया और घंटो उसके अध्यन में दूबे रहते थे पूछने पर कहते की ऐसा करते लगता हम ऋषीलोक में पहुँच जाता हूँ !संस्कृत के संपर्क में मुझे बौद्धिकता ,तर्कशीलता,से काफी कुछ अधिक आत्मा के सुख,सुकून,का एहसास होता और हमने जाना की यह जीवन निर्माण की भाषा है.भीमराव अम्बेडकरजी भी संस्कृत के पक्षदार थे वेह एक प्रस्ताव भी लाये थे जिससे संस्कृत को भारतीय सविधान की राज्यभाषा का स्थान दिया जाना था.!लन्दन शहर के एक “सेंट् जेम्स इंडिपेंडेट स्कूल “की स्थापना एक इसाई बैरिस्टर के द्वारा १९७५ में गयी थी और तबसे प्राथमिक कक्षाओ में निरंतर संस्कृत को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाता और उच्च कक्षाओ में एच्छिक रूप से अध्ययन की व्यवस्था है.पूछने पर प्रबंधन ने बताया की संस्कृत पढ़ने से विद्यार्थियो की गणित,विज्ञान ,और अन्य भाषा में ग्रहण शक्ति बढ़ जाती और “देवनागरी लिपि और बोलने वाली संस्कृत उंगलियों और जिव्व्हा की कठोरता को नियंत्रित करने का सर्वोतम है.!हम भारतवशियो के लिए संस्कृत अध्ययन इस कारन से भी करना चाइये की हमारे पूर्वजो ने हमारे लिए जिस महान ज्ञान राशी को हमारे लिए छोड़ा उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है !क्या कभी किसी ने सुना है कि संस्कृत पढ़ कर कोइ आतंकवादी,व्यभिचारी भ्रष्टाचारी बना हो,जबकि इसके विपरीत इसे पढ़ कर अपने जीवन को उत्क्रष्ट बनाने वालो से भारतीय ग्रन्थ भरे पढ़े है.वेड,उपनिषद,रामायण,गीता,आदि ग्रंथो को पढने वाला तो बस सद्गुणों को सीख सकता है और दुर्गुणों दुस्प्रवार्तियो की प्रेरणा कभी नहीं मिलती.देश के एकता,अखंडता की रक्षा के लिए इसका अध्ययन और पठन आवश्यकहै.हिमालय के शिखर से लेकर सागर की गहराइयों के तट पर बसे सभी प्रदेशो के विद्वानों की भाषा संस्कृत थी और हिन्दू,जैन,बौद्ध और अनेक मुसलमान विद्वानों ने इसके साहित्य को समद्ध करने में योगदान दिया.देश की सभी भाषाए संस्कृत से संजीवनी प्राप्त करती है.!विशेषगो से लेकर सामान्यजन तक मानते की संस्कृत ही सभी क्षेत्रीय भाषाओ की जननी है.!हमारे शक्तिपीठ ,चारो धाम,गंगा,यमुना,कृष्णा कावेरी ,गोदावरी आदि नदिया संपूर्ण देश के लिए पूज्य है जिनकी पावनता और भारतमाता की संकल्पना संस्कृत भाषा से हुई !भारतमाता,देश की अनुभूति और अभिव्यक्ति केवल संस्कृत भाषा में है!जब अमेरिकाकी एक कंपनी ने हल्दी और बासमती चावल पर अधिकार प्राप्त करने के लिए (पेटेंट करने)दावा किया था जिससे इनके इस्तेमाल करने पर हमें शुल्क देना पढता जो गलत था संस्कृत के अनेक विद्वानों ने संस्कृत ग्रंथो से इन के बारे में जानकारी प्राप्त कर संस्कृत में लिखित रामायण,आयुर्वेद के ग्रन्थ अदालत में साक्ष्य रूप में पेश किया जिससे अमेरिका कंपनी का पेटेंट का दावा ख़ारिज हो गया !यदि हमें इन ग्रंथो का ज्ञान नहीं होता तो अपनी वस्तुओ के लिए हमें शुल्क देना पडता.!इसमें संदेह नहीं की जिन लोगो को देश से प्यार है उन्हें संस्कृत को सीखने सिखाने और स्वीकारने के लिए सर्वदातैयार रहना चाइये.
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