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भगवान् जगन्नाथ रथयात्रा के साथ जय जगन्नाथ की धूम

भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम ! भगवान् जगन्नाथजी के पवन रथयात्रा पर्व पर आप सबको शुभकामनाएं!भगवन जगन्नाथजी  राष्ट्र को अपना आशीर्वाद प्रदान करे.!आसाढ़ शुक्ल द्विज को पुरे देश में रथयात्रा का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता जिसमे भगवान् जगानाथ (कृष्णा जी का दूसरा नाम) अपने बड़े भी बलबध्र जी और बहन सुभद्रा के साथ रथो में बैठ कर नगर भ्रमण  के लिए निकलते !ये त्यौहार  हर छोटे बड़े शहर में मनाया जाता लेकिन देश में सबसे धूमधाम से रथयात्रा ओडिशा के पूरी में मनाई जाती जहाँ ये दस दिन का समारोह होता है.इसमें देश विदेश के लोग बड़ी संख्या में आते है इस साल करीब १० लाख लोगो ने भाग लिया.इस में तीनो  मूर्तियाँ काठ की होती है और इनके हाथ पैर नहीं होते इसके पीछे एक मनोरंजक प्रसंग है.!एक बार माँ देवकी भगवान् कृष्णा और माता राधा जी के प्रसंगों को माता रुकमनी और भगवान् के अन्य भार्यायो को बता रही थी उसी वक़्त कृष्णा जी,बलराम जी और बहन सुभद्रा जी चुप्पे से किस्से सुनते इतने भाव विभोर हो कर खड़े रहे जैसे हाथ पैर न हो उसी वक़्त नारद जी आये और उन्होंने भगवान् से प्राथना की इस रूप का दर्शन अपने भक्तो को भी करवाहे जिसके लिए भगवान् ने नारद जी को वचन दिया और इसीलिये ऐसी मूर्तिया बंटी है.!असर में ये पर्व वैदिक काल से मनाया जाता है और ये देवता जनजाति के थे जिन्हें राजा इन्द्रध्रुम्न भगवान् को शबर रजा से यहाँ लाये थे और उन्होंने ही मूल मंदिर का  निर्माण करवाया था,जो बाद में नष्ट हो गया कब पता नहीं.वर्त्तमान मंदिर ६५१ऊन्ची दीवालों से घिरा है जिसे १२वी शताब्दी में चोल रजा “गंगदेव”और अनग भ्हेमदेव ने बनवाया था.इसका गुम्बद १९२!ऊंचा,समुद्र तट से ७ फर्लांग सतह से २० फीट ऊंचा चोटी सी पहाडी पर जिसे नीलगिर कहते बना है.अन्त्रराल के प्रतेक तरफ एकं  दरवाज़ा है पूर्व की तरफ मुख्या है जिसे सिंह द्वार कहते है.!इशे ४ खंड है जिसे महेश मंदिर (जहाँ भोग लगाया जाता),रंग मंदिर (नृत्य गान होता),सभा मंडप(भक्त लोग बैठते )और अंतराल.!इस क्षेत्र को  नीलगिरी,पुरषोतम,जगन्नाथ धाम,जगन्नाथ पूरी नीलांचल,शंख क्षेत्र और श्री क्षेत्र के नाम से जाने जाते है.पूरी सप्तपुरियो में एक और हिन्दुओ के ४ धमो में एक धाम है.मंदिर ४ लाख वर फूट में फैला और विश्व में इसकी भव्यता को देखने विदेशी और देश के लोह आते है.शिखर पपर सुदर्शन चक्र (८ आरे का)मंडित है.इसे नील चक्र भी कहते है.मालदा के राजा इन्द्रदुमन को भगवन विष्णु  ने सपन में कहा की समुद्र तट पर जाओ जहाँ तुम्हे एक लकड़ी का लट्ठा मिलेगा जिससे तुम हंमारी प्रतिमाये बनवा कर स्थापित करवा देना.रजा उस लट्ठे को लेकर आये तब विश्वकर्माजी एक मूर्तिकार के रूप में आये और रजा से मूर्तियाँ बनवाने के लिए एक महीने का समय इस शर्त पर माँगा की जबतक हम प्रतिमाये सौपे नहीं कोइ भी कमरे में न आये.समय से पहले जब कमरे से कोइ आवाज़ नहीं आई तो रजा ने कमरा खुलवाया लेकिन कमरे में कोइ नहीं मिला और अर्ध निर्मित मूर्तियाँ मिली राजा को बहुत अफ़सोस हुआ उसी वक़्त आकाशवाणी हुई की ये सब भगवान् की इच्छा से हुआ इसको तुम मंदिर में मंदिर में स्थापित करवा दो मूर्तिकार चाहता तो पहले एक पूरे कर के दुसरी बनता पर ऐसा नहीं हुआ१ये तीनो रथ हर साल नए तैयार करे जाते लकड़ी एकता का काम वसंत पंचमी से और बनाने का कार्य अक्षय तिथि से किया जाता इसके बनाने में किसी भी तरह की कील नहीं लगाई  जाती.!आसाढ़ शुला पक्ष द्विज को तीझांकिय निकलते रथ को भक्त और मंदिर के लोग खीचते .ये एक सामुदायिक पर्व है जिसमे नो रथ मंदिर के आगे रक्खे जाते और पूरी के रजा अपने रथ में आकर पहले पूजा करते फिर सोने की झाड़ू से रथ मंडप को साफ़ करते जिसे “घरपहनरा”कहते  फिर सबसे पहले बलभद्र जी का रथ जिसका नाम तालध्वज फिर ,सुभद्रा जी का (दर्प दालान) और अंत में भगवान् जगन्नाथ जी का ( नंदी घोष ) गुन्दीज मंदिर के लिए प्रस्थान करते है.जो ५ किलोमीटरहै !ये गुडिया भगवान् के भक्त राजा इन्द्रदुमन की धर्मपत्नी को भगवान् की मौसी माना जाता है.जहाँ वे ८ दिन रहते है.दसमी के दिन वापस की यात्रा शुरू होती जिसे  बहुदा यात्रा कहते.दशमी के दिन तीनो रथ मुख्या मंदिर के सामने भक्तो के दर्शन के लिए रक्खे जाते और एकादशी को मंदिर के अन्दर मूरियाँ पूजा करने के बाद रख दी जाती है.रथयात्रा के समय भक्त लोग नाचते गाते,रंगोली बनाते,संस्कृति झांकिया निकलते कोइ व्रत या उपवास नहीं करते.कोइ भेद भाव नहीं होता मंदिर में पकाने का चावल कोइ भी दे सकता !पुरने रथो  की लकडिया भक्त लोग खरीद कर ले जाते और घर में दरवाजे खिडकियों बनाने के काम लेट.!जब असाढ़ माह अधिक मॉस होता नई मूर्तिया बंटी और पुरानी मंदिर में दफना दी जाती लेकिन किसी तरह का बदलाव नहीं होता.इस बार मूर्तिया मौसी के घर तक नहीं पहुँच नहीं  सकी और भगवन जगन्नाथ के रथ का ध्वज उखड कर उड़ गया जिसको अच्छा नहीं मन जा रहा.मंदिर में साल भर महाप्रसाद की व्यवस्था है इसमें अरहर की दाल,चावल,सब्जी,दही,खीर,जैसे व्यंजन होते एक भाग भगवान् को अर्पित कर बाकी भक्तो को सस्ते दाम में बेच दिया जाता.रथ यात्रा के दिन एक लाख १४ हज़ार लोग रसोई और अन्य कार्यक्रम में लगे रहते है मंदिर के अन्दर २५००० लोग प्रसाद लेते है.अन्य दिनों में ५०० रसोइये ३०० सहयोगियो के साथ प्रसाद बनाते इसके लिए ७ बर्तन एक के ऊपर लकड़ी के रखे जाते और पहले सबसे ऊंचे का खाना बनता और इसी क्रम से बनता. इस मंदिर की कुछ खास बाते है जो चमत्कारी है.!

१.मंदिर के ऊपर का ध्वज हवा के  विपरीत दिशा में लहराता.२.गुमंद की छाया नहीं बनती.ऊंचाई २१४ फीट .मंदिर के पास खड़े हो कर गुम्बंद देख पाना असंभव है.मुख्या गुम्बंद की छाया दिन में भी नहीं दिखती.३.इसके ऊपर सुदर्शन चक्र जिसे नील चक्र भी कहते अष्ट धातु से बना है और बहुत पवित्र मन जाता है.पुरी में किसी जगह से भी आप मंदिर में लगे चक्र को देखेगे तो आपको अपने सामने ही लगेगा.!४.समुद्र तटो पर आमतौर पर हवा समुन्द्र से जमीन की तरफ जाती लेकिन यहाँ जमीन से समुद्र की और.!५.मंदिर के ऊपर गुम्बंद के आसपास अबतक कोइ पक्षी उड़ता नहीं देखा गया !इसके ऊपर से विमान से उड़या जा सकता.शिखर के आसपास पक्षी उड़ते नहीं नज़र आते जबकि अन्य जगह ऐसा नहीं होता.!६.मंदिर के अन्दर से आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते परन्तु मंदिर के बाहर से  सुना जा सकती.७हनुमान जी मंदिर की रक्षा करते है ३ बार समुद्र ने मंदिर तोड़ दिया तब भगवान् ने हनुमानजी को समुन्द्र को नियंत्रित करने के लिए नियुक्त किया.परन्तु हनुमान जी के दर्शन करने के लिए नगर प्रवेश के समय.समुद्र मंदिर तक आ जाता इससे परेशां हो कर भगवान् जगन्नाथ जी ने हनुमान जी को स्वर्ण  बेडीसे आब्रध कर दिया !सागर तट पर बेडी हनुमान जी का प्राचीन एक प्रसिद्ध मंदिर है.जहाँ लोग बहुत बड़ी संख्या में दर्शन करने आते.!१५५८ तक अर्चना होती रही लेकिन इस वर्ष अफगान के सरदार “कला पहाड़” ने आक्रमण कर दिया  मंदिर को ध्वस्त करके पूजा बंद करवा दी परन्तु विग्रह को चुप्ले से “चिल्का झील”में छिपा कर रख दिया जो बाद में फिर मंदिर में रक्खी  गयी.!इसके अलावा कोलकत्ता में हरे राम करे कृष्णा मंदिर पिछले ४५ सालो से रथयात्रा निकाल रहा जिसमे इस बार मुख्य मंत्री ममता जी ने शुरुहात की थी.अहमदाबाद में जमालपुर क्षेत्र में भगवान् जगन्नाथजी का मंदिर ४५० साल पुराना है जहाँ पिछले १३९ साल से रथ यात्रा धूम धाम से मनाई जाती है.मुख्यमंत्री सोने की झाड़ू से रथ और रास्ता साफ़ कर शुरुहात करते.इस साल  १०१ ट्रकों में विभिन्न तरह की सांस्कृतिक झांकियां निकले गए और अखाड़े विभिन्न कलाओ के प्रदर्शन के साथ निकले थे.पुरी छोड़ सब जगह एक दिन का होता.!हमारे कानपुर में २ दिन की होती है.!

रमेश अग्रवाल.कानपुर

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