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गणेशोत्सव का महत्व

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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14224675_1034931686620057_3079746304499199724_nजय श्री राम प्रतिवर्ष भादो  शुक्लपक्ष चतुर्थी से लेकर दस दिनों  तक पुरे देश में गणेशोत्सव धूम धाम से मनाया जाता है विदेशो में भी जहाँ भारतीय  लोग रहते उसे मनाते है.!शुरू में ये महाराष्ट्र के घरो तक सीमित था !महाराष्ट्र के राजाओ  सात वाहन ,  राष्ट्रकूट चाल्युक आदि ने इसकी परंपरा शुरू की थी छत्रपति शिवाजी भी पूजा करते थे.पेशवाओ ने इसे बढ़ावा दिया.शिवाजी की माँ जीजाबाई ने पुणे के कसबे गणपति में गणपति की स्थापना की थी.महाराष्ट्र में इन्हें मंगलकारी देवता के रूप मंगल्पूर्ति के नाम से पूजित है.!हिन्दुओ के ये आदि देवता है और किसी भी मांगलिक14142048_1034851999961359_6273767896079759499_n (1)कार्य,यज्ञ,विवाह  में या निमंत्रण कार्ड में इनकी प्रथम पूजा होती है या इनको बिना विघ्न कार्य संपन्न करने के लिए प्राथना की जाती.!दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता कला शिरोमणि के रूप में होती है.मैसूर और तंजोर में मंदिरों में गणेश जी की मूर्ती नृत्य मुद्रा में  अनेक मनमोहक प्रतिमाये है.!हिन्दुओ के ५ आदि देवताओ में गणेश जी भी है अन्य ४ है विष्णु जी,शंकरजी,सूर्य जी,गणेश जी और माँ दुर्गा.!इन्हें माता पार्वती और शंकर जी के पुत्र के नाम से जाना जाता लेकिन रामायण में भगवान् शंकर और माता  पार्वती के विवाह में इनकी पूजा की गयी थी.!ऐसी मान्यता है की एक बार माता पार्वती भोगावती नदी नहाने गयी और उन्होंने अपने लगाए उबटन से एक पुतला बना उसमे जान डाल कर उसका नाम गणेश रक्खा और दरवाजे में खड़ा कर कहा की किसी को अन्दर न आने देना.थोड़ी देर बाद भगवान् शंकर आये और जब अन्दर  जाने लगे तो गणेश जी ने रोका ,शिव जी अपना अपमान समझ कर गुस्से में त्रिशूल से उसका सिर काट दिया और अन्दर चले गए!शिवजी को गुस्से में देख कर माता पार्वती ने समझा की खाने में देरी से नाराज़ है इसलिए जल्दी से २ थालिया खाने की ले कर आई जब शंकर जी ने २ के बारे में पूंछा तो उन्होंने बहार खड़े पुत्र गणेश का नाम लिया जिसपर शंकर जी ने बताया की उन्होंने उसका  सिर काट दिया इसपर पार्वती जी रोने लगी तब शंकर जी ने गणों से पहले मिले जानवर का सिर काट कर लाने को कहा और गण लोग हाथी का सिर ले आये जिसे शंकर जी ने बालक के कटे शीश की जगह लगा कर जिन्दा कर दिया और इस तरह गणेश जी इस रूप में भगवन शिव और माता पार्वती के पुत्र हुए.!जब अंग्रेजो के विरुद्ध आजादी के लिए आन्दोलन चल रहा था तब १८९३ में लोकमान्य तिलक जी ने धार्मिक काण्ड के साथ राष्ट्रीय भावना को चेताने के लिए इसे सार्वजानिक रूप दिया और पहला पंडाल पुणे में लगाया जहां वे अपना सन्देश और राष्ट्र भक्ति की भावना इन पूजा के पंडालो के द्वारा करते थे धीरे धीरे पुरे महाराष्ट्र में ये सार्वजानिक हो गया और आज कल  महाराष्ट्र में करीब ५० हज़ार पंडाल लगाये जाते जिसमे जनता खूब उत्साह से भाग लेती है जिनमे लाल बाग के गणेश  जी सबसे  ज्यादा प्रसिद्द है !धीरे धीरे विद्यार्थी राष्ट्र गीत गाने के साथ अंग्रेजो ले खिलाफ पर्चे भी बाटते जिससे अंग्रेजो में भय व्याप्त हो गया था.इसके साथ उन्होंने सामाजिक बुराइयों छुआ छूत और अन्य  दहेज़,भ्रष्टाचार,भ्रूण कन्या हत्या का सन्देश भी दिया जाता है.आजकल इज्मे विभिन्न राजनातिक और सामाजिक संगठन बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है.!बाद में  बंगाल में दुर्गा पूजा और दुसरे त्यौहार भी आज़ादी आन्दोलन का हिस्सा बन्ने लगे.!तिलक जी के साथ वीर सावरकर जी और कवी गोविन्द ने नासिक में मित्रमेला  संस्था बनाई जिसमे मराठी में देश भक्ति के गीतों का प्रचार करना था.इसमें बहुत बड़ी भागीदारी होने लगी और और राष्ट्रीय चेतना पुरे महाराष्ट्र में फैलने लगी बाद में वर्धा,नागपुर और अमरावती में भी शाखाये  खुल गयी और राष्ट्रीय आन्दोलन बहुत सक्रिय होने लगा .!गणेशजी के पांडाल महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश,गुजरात,आन्ध्र प्रदेश ,मध्य  प्रदेश और कर्नाटक में सजाये  जाते है. प्रेण महाराष्ट्र में एक क़स्बा है जहाँ भगवान् गणेश जी की मूर्तियाँ पुरे साल बनाई जाती और विदेशो में भी इनकी बहुत मांग होती है !भगवन गणेश बुद्धि के देवता है सुख,शांति,विद्या बुद्दी देते है !प्रजापति विश्वकर्मा जी की दोनों पुत्रियो रिद्धि और सिद्दि के साथ विवाह हुआ था और शुभ और लाभ इनके दो पुत्र है.!पहले समय आज के ही दिन बच्चो को स्कूल् भेजा जाता था और बच्चे खुश हो कर डंडे बजाते थे जिससे इसे लोकभाषा में डंडा चौथ भी कहा जाता है!इसदिन लोग व्रत.पूजा भजन आरती करते ,पूजा के पहले दक्षिणा अर्पित कर २१ लड्डूओं का भोग लगा ५ लड्डू भगवान् के पास रख बाकी बाँट देना चाइये.!गणेश जी के साथ माँ पार्वती,भगवान् शंकर ,नंदी जी और भगवन कार्तिकेय जी की मूर्तियाँ भी रखनी चाइये.वैसे १० दिन बाद भगवान् की मूर्तियों को विसर्जित किया जाता परन्तु अब अपनी सुविध्नुसार लोग विसर्जन कर देते!आजकल  समुद्र नदियो को प्रदुषण से बचने के लिए तालाबो में विजर्जन किया जाता और ईको फ्रेंडली सामान से बनया जाता है! इन १० दिनों में रंगोली,चित्रकला,नृत्य प्रतियोगिताये और हल्दी  उत्सव मनाया जाता है.!कलश स्थापना के लिए कलश में जलभर कर मूह पर लाल  कपडा लपेट कर उस पर स्थापित कर सिन्दूर लगते है !प्रतिमा सोने,चांदी,ताबे  मिट्टी की हो सकती है पञ्च तत्व गोबर,गाय मूत्र,दही दूध और घी से मूर्तियाँ भी बन रही है !गणेश जी को प्राथन पूजनीय के पीछे किवदंती है की एक बार देवताओ ने भगवान् शिव  से प्रथम पूजनीय देवता के नाम चुनने के लिए प्राथना की भगवान् शिव ने कहा जो प्रथ्वी का एक चक्कर पहले लगा कर आवेगा वही विजयी होगा!सब देवता अपने वाहनों पे चल दिए गणेश जी का वाहन  चूहा था इसलिए उन्होंने माता पार्वती और भगवान् की ७ बार परिक्रमा कर खड़े हो गए जब सब देवता आये तो शिवजी ने गणेशजी को विजयी घोषित कर प्रथम पूजा का अधिकारी बनया!माता पार्वती ने कहा समस्त तीर्थों में किया स्नान ,सम्पूर्ण देवताओं के लिए किया नमस्कार,सब यज्ञो का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत,मंत्र,योग और सयंम  का पालन -यह सभी साधन माता पिता के पूजन के सोलहवे अंश के बराबर भी नहीं होते!गणपति जी को इसका ज्ञान था!इससे उनकी माता  पिता के प्रति भक्ती और बुद्धिमता का परिचय मिला इसीलिये उन्हें बुद्दी के देवता कहते है.!उन्होंने वेद व्यास जी के अनुरोध पर महाभारत लिखने को तैयार हो गए लेकिन शर्त थी की वे कही रुके नहीं.!महाभारत प्रथम लिपिबद्ध काव्य था अतएव वे लेखन परंपरा के प्रारम्भ करता भी भगवान गणेशजी थे.!आज के दिन चाँद नहीं देखना चाइये ऐसा करने से कलंक लग जाता है भगवान् कृष्णा जी भी नहीं बच सके थे.जिन्हें मणि चोरी का कलंक लगा था.चंद्रमा जिन्हें अपनी सुन्दरता पर बहुत गर्व था गणेशजी को देख कर उनपर हंस दिए जिससे  उन्होंने क्रोध में श्राप दे दिया की तुम्हे देखने वाले को कलंक  लग जाएगा चन्द्र दुखी हुए तब देवताओ के समझाने पर वह गणेशजी की मोदक और अन्य सामग्री से पूजा की और क्षमा मागी गणेशजी ने उसे माफ़ कर दिया लेकिन लोगो को शिक्षा देने के लिए केवल  भादो शुक्ल चौथ को कलंक की बात कही!यदि देख लिया जाये तो गणेशजी के १२ नामो का जप करे या “ॐ गन गणपते नम: मन्त्र जाप करे.१२ नाम है:- बक्रतुंड,एकदन्तं,कृष्णापिंगाक्ष ,लम्बोदर,विकटमेव,विघ्न राजेंद्र,धूमवर्ण ,भालचंद्,विनायकंम ,गणपति ,गजानन और गजवक्त्र!गणपति जी देवलोक,मानव्लोक और राक्षस लोको में पूजित है !इनके ४ हाथो में पाश,अंकुश,वरद और मोदक होता है!महाराष्ट्र में प्राथना करते “जय देव जय देव जय मंगल मूर्ती ,दर्शन मात्रेण मनकामना पूर्ती “इनले विभिन्न अंग विशेष सन्देश देते है !ब्रज मस्तक:न्रेतत्व करने की योगता,कुशाग्र बुद्दी और सोच को ब्रज बांये रखना!छोटी आँखे:-चिंतनशील,गंभीर प्रकृति और चीजो को सूक्ष्मता से देखना!सूप जैसे कान :-भाग्यशाली दीघ्रायु,सबकी सुन कर अपनी बुद्दी और विवेक से निर्णय लेते हमेशा चौकन्ना रहते!जैसे सूप सब गंदगी को बहार कर देता उसी तरह बुरी बाते अन्दर नहीं आने देते.!लम्बी सूड:-हमेश हिलती दुलती जो सक्रियता को दर्शाता !सक्रिय रहने वाले को गरीबी और दुःख का सामना नहीं करता!सुख समृधि चाहने वालो को दहिनी सूडवाले तथा शत्रु को परास्त ,करने और ऐश्वर्य की लिए बाई सूद वाले गणेश जी की पूजा करनी चाइये.!बड़ा उदर:- हर अच्छी बुरी बात को पचा जाते है और निर्णय सूझ भूझ से करते है खुशहाली का प्रतीक.बातो को पचा लेने वाला सुखी रहता है!एकदंत:-भगवान् परुशराम जी के साथ युद्ध में एक दांत टूट गया था इसी टूटे दांत को लेखनी बना कर पुरी महाभारत लिख डाली जो उनकी बुद्दिमता का परिचय देता है!सीख्देता की चीजो का सदुप्रयोग कैसे किया जाता है!एक स्लोक जो शुभ कार्यो के लिए इस्तेमाल किया जाता है “वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ,निर्विघ्न कुरुमेदेव सर्व कार्यषु सर्वदा.”                                                                                                                                  विघ्न विनाशक भगवान् गणेशजी के उत्सव पर सभी लोगो को हार्दिक शुभकामनाये.भगवन गणेश जी राष्ट्र को सम्पन्नता प्रदान करे और बाहरी आतंरिक दुश्मनों से रक्षा करे.

रमेश अग्रवाल ,कानपुर -आभार नेट

ऊपर गणेश जी की प्रतिमा तमिलनाडु में २० लोगो ने ४ दिन में २ टन गन्ने से बनाई कितनी अच्छी कारीगरी का नमूना है

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