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कश्मीर समस्या पर विभिन्न राये – दुर्भाग्यपूर्ण

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम  क्या एक साधारण सी घटना को अनावश्यक तूल नहीं दिया जा रहा? क्या एक देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त एक भटके हुए लड़के को स्थानीय नौजवानों का आदर्श बनाने का षड्यंत्र नहीं किया जा रहा? क्या यह हमारी कमी नहीं है कि आज देश के बच्चे-बच्चे को बुरहान का नाम पता है लेकिन देश की रक्षा के लिए किए गए अनेकों ऑपरेशन में शहीद हुए हमारे बहादुर सैनिकों के नाम किसी को पता नहीं? हमारे जवान जो दिन-रात कश्मीर में हालात सामान्य करने की कोशिश में जुटे हैं, उन्हें कोसा जा रहा है और आतंकवादी हीरो बने हुए हैं? एक अलगाववादी नेता की अपील पर एक आतंकवादी की शवयात्रा में उमड़ी भीड़ हमें दिखाई दे रही है लेकिन हमारे सैन्यबलों की सहनशीलता नहीं दिखाई देती जो एक तरफ तो आतंकवादियों से लोहा ले रहे हैं और दूसरी तरफ अपने ही देश के लोगों के पत्थर खा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कश्मीर की जनता पर जुल्म होते आए हैं, कौन कर रहा है यह जुल्म? सेना की वर्दी पहनकर ही आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं तो यह तय कौन करेगा कि जुल्म कौन कर रहा है? अभी कुछ दिन पहले ही सेना के जवानों पर एक युवती के बलात्कार का आरोप लगाकर कई दिनों तक सेना के खिलाफ हिंसात्मक प्रदर्शन हुए थे लेकिन बाद में कोर्ट में उस युवती ने स्वयं बयान दिया कि वो लोग सेना के जवान नहीं थे, स्थानीय आतंकवादी थे। इस घटना को देखा जाए तो जुल्म तो हमारी सेना पर हो रहा है! यह संस्कारों और बुद्धि का ही फर्क है कि कश्मीरी नौजवान ‘जुल्म’ के खिलाफ हाथ में किताब छोड़कर बंदूक उठा लेता है और हमारे जवान हाथों में बंदूक होने के बावजूद उनकी कुरान की रक्षा करते आए हैं। कहा जाता है कि कश्मीर का युवक बेरोजगार है तो साहब बेरोजगार युवक तो भारत के हर प्रदेश में हैं, क्या सभी ने हाथों में बंदूकें थाम ली हैं? क्यों घाटी के नौजवानों का आदर्श आज कुपवाड़ा के डॉ. शाह फैजल नहीं हैं जिनके पिता को आतंकवादियों ने मार डाला था और वे 2010 में सिविल इंजीनियरिंग परीक्षा में टॉप करने वाले पहले कश्मीरी युवक बने? उनके आदर्श 2016 में यूपीएससी में द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले कश्मीरी अतहर आमिर क्यों नहीं बने? किस षड्यंत्र के तहत आज बुरहान को कश्मीरी युवाओं का आदर्श बनाया जा रहा है? पैसे और पावर का लालच देकर युवाओं को भटकाया जा रहा है। कश्मीर की समस्या आज की नहीं है, इसकी जड़ें इतिहास के पन्नों में दफ़न हैं। आप इसका दोष अंग्रेजों को दे सकते हैं जो जाते-जाते बँटवारे का नासूर दे गए। नेहरू को दे सकते हैं जो इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए। पाकिस्तान को भी दे सकते हैं जो इस सबको प्रायोजित करता है। लेकिन मुद्दा दोष देने से नहीं सुलझेगा, ठोस हल निकालने ही होंगे। आज कश्मीरी आजादी की बात करते हैं, क्या वे अपना अतीत भुला चुके हैं? राजा हरि सिंह ने भी आजादी ही चुनी थी लेकिन 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने हमला कर दिया था। तब उन्होंने सरदार पटेल से मदद मांगी थी और कश्मीर का विलय भारत में हुआ था। कश्मीरी जनता को भारत सरकार की मदद स्वीकार है लेकिन भारत सरकार नहीं! प्राकृतिक आपदाओं में मिलने वाली सहायता स्वीकार है भारतीय कानून नहीं? केंद्र सरकार के विकास पैकेज मंजूर हैं, केंद्र सरकार नहीं? इलाज के लिए भारतीय डॉक्टरों की टीम स्वीकार है, भारतीय संविधान नहीं? क्यों हमारी सेना के जवान घाटी में जान लगा देने के बाद भी कोसे जाते हैं? क्यों हमारी सरकार आपदाओं में कश्मीरियों की मदद करने के बावजूद उन्हें अपनी सबसे बड़ी दुश्मन दिखाई देती है? अलगाववादी उस घाटी को उन्हीं के बच्चों के खून से रंगने के बावजूद उन्हें अपना शुभचिंतक क्यों दिखाई देते हैं? बात अज्ञानता की है, दुषप्रचार की है। हमें कश्मीरी जनता को जागरूक करना ही होगा। अलगाववादियों के दुष्‍प्रचार को रोकना ही होगा। कश्मीरी युवकों को अपने आदर्शों को बदलना ही होगा। कश्मीरी जनता को भारत सरकार की मदद स्वीकार करने से पहले भारत की सरकार को स्वीकार करना ही होगा। उन्हें सेना की वर्दी पहने आतंकवादी और एक सैनिक के भेद को समझना ही होगा। एक भारतीय सैनिक की इज्जत करना सीखना ही होगा। कश्मीरियों को अपने बच्चों के हाथों में कलम चाहिए या बंदूक यह चुनना ही होगा। घाटी में चिनार खिलेंगे या जलेंगे चुनना ही होगा। झीलें पानी की बहेंगीं या उनके बच्चों के खून की उन्हें चुनना ही होगा। यह स्थानीय सरकार की नाकामयाबी कही जा सकती है जो स्थानीय लोगों का विश्वास न स्वयं जीत पा रही है, न हिंसा रोक पा रही है। चूँकि कश्मीरी जनता के दिल में अविश्वास आज का नहीं है और उसे दूर भी उन्हें के बीच के लोग कर सकते हैं तो यह वहाँ के स्थानीय नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे कश्मीरी बच्चों की लाशों पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकनी बंद करें और कश्मीरी जनता को देश की मुख्यधारा से जोड़ने में सहयोग करें!आज ६३ दिन हो चूके  और ७५ लोग जिनमे सेना पुलिस के २ जवान भी शामिल है मारे जा चुके है!सऊदी अरब से हवाला के द्वारा अरबो रुपया आता जिससे मस्जिदे और मदरसों को बना कर लाऊड स्पीकर से देश विरोधी और हिन्दू और सेना के खिलाफ ज़हर उगला जा जाता है वहां वहाबी शिक्षा जिससे जिहादी तैयार हो दी जाती है.!अब NIA इसकी जांच कर रही.प्रधान मंत्री ने सर्व  दल की मीटिंग की थी जिसमे तय हुआ की बातचीत सबसे की जायेगी लेकिन भारतीय सविधान और प्रभुसत्ता से कोइ छेड़ छाड़ नहीं होगी.!गृह मंत्री राज नाथ सिंह जी २ दिन के लिए गए और विभिन्न लोगो से मिले जो मिलने आया उन्होंने काशीमीरियत,लोकतंत्र और मानवता के आधार पर बातचीत होगी.!संसद पर भी चर्चा हुई लेकिन अफ़सोस ज्यादातर विरोधियो ने पत्थर  फेकने वालो के लिए चिंता दिखाई लेकिन सेना जो देश की रक्षा कर रही उसके लिए एक शब्द भी नहीं कहा.!सरकार पेलेट बुलेट की जगह दुसरी चीज इस्तेमात करेगी.!लेकिन प्रदेश में घाटी,जम्मू और लद्दाख ३ क्षेत्र है लेकिन फिकर केवल घाटी की होती दुसरे क्षेत्रो की कोइ बात नहीं होती.!ज्यादातर मुस्लिम भी वहां की फिकर करते और भारत से नफरत करते लेकिन इन पत्थर  फेकने वालो को पैसे के अलावा अलगाववादी भी भड़काने का काम करते जबकि उनके अपने रिश्तेदार या बच्चे इसमें नहीं शामिल है.इसी प्रदेश ने चुनाव में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था!३ सितम्बर को २८ सदस्यों का प्रतिनिधि दल गृह मंत्री श्री राज नाथ सिंह के नृतत्व में २ दिनों के लिए कश्मीर के दौरे पर गया जिन्होंने सबको बात चीत के लिए कहा बहुत लोग मिले विचार दिए अलगाववादी नहीं आये हमारे विरोधी सीता राम येचुरी ,शरद यादब,डी राजा,,जय प्रकाश नारायण अलगाववादी नेताओ मीरवाज,यासीन मालिक,गनी  भट्ट ,शबीर शाह,से ये नेता मिले लेकिन गिलानी ने किवारे नहीं खोले.!जो व्यान विरोधियो ने दिए वे बहुत ही निंदनीय थे और दर्शाते की हमारे कुछ  नेता किस तरह कुर्सी के लिए देश को भी बेच दे.येचुरी ने कहा की वे सरकार से ४ विषय पर बात करेंगे.पेलेट गन बंद हो,जो सेना के लोग ज्यादती के दोषी पाए जाए उनके खिलाफ कार्यवाही हो,AFSPA हटाया जाये और युवको को नौकरी दी जाए.उन्होंने ये भी कहा की जनता बीजेपी और पीडीपी के गटबंधन से नाराज़ है ,,उन इलाको में ज्यादा उपद्रव हुआ जहा पीडीपी का प्रभाव और वे सेना की कार्यवाही बंद करना चाहते है!इन विरोधी नेताओं ने कहा की सरकार को १९४८ की दशा से बात  करना चाइये और 3७० को पुरे प्रदेश में लागू लिया जाए साथ ही पकिस्तान और अलगाववादिओ बिना शर्त बात हो जबकि अलगाववादी आज़ादी चाहते और पाकिस्तान जनमत और इसके लिए संयुक्त राष्ट्र को कई पत्र लिख चूका ऐसे में ये विरोधी अपनी मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए देश को बेचने को तैयार है.!ये हमारे देश का दुर्भाग्य है की पिछली सरकार  ने इन अलगाववादी नेताओं को जेड  क्षेणी की सुरक्षा जिसमे करीब १००० सुरक्षा कर्मी  हर साल रक्खे जाते,बहार जाने पर सरकार उनकी यात्रा होटल का खर्च सहन करती जिसका ९०% केंद्रीय सरकार और १०% प्रदेश सरकार देती है.जो लोग देश को तोड़ने की बात करे और कार्य करे उनको सुरक्षा देना मूर्खता है और जब सरकार इसे   बंद करने की तैयारी कर रही तो यही नेता इसके खिलाफ है !पीडीपी का नेता मुज्ज़फर बेग कहता  मुख्य मंत्री महबूबा को इस्तीफ़ा दे देना चाइये और एक  विधायक  इन्जीनीयर अब्दुल रशीद कहता की कश्मीर न तो कभी भारत का अंग था और न रहेगा.!मोदीजी ने बलूचिस्तान और pok का मामला उठा कर और अभी विएत्नाम और चीन में पकिस्तान का नाम लिए बिना जिस तरह आतंकवाद के लिए दोषी ठहराया उसका बहुत अच्छा नतीजा हुआ.पकिस्तान शांति की भाषा नहीं समझता उसे तो उसी की भाषा में जवाब देना चाइये और १९७१ वाली शिमला समझौते वाली गलती नहीं करनी चाइये.जनता को कश्मीर के मामले में सरकार का साथ दे वोटो की राजनीती करने वाले और देश को नीचा दिखने वाले विरोधी नेताओं की निंदा करनी चाइये.इंग्लिश मीडिया भी विरोधी नेताओ के सुर में सुर मिला रहा जोकि बहुत दुर्भाग्य पूर्ण है !हमें अपने सरकार और सेना पर पूरा भरोसा है की वे राष्ट्र की मर्यादा को गिरने नहीं देंगे.!जय हिन्द  जय भारत

रमेश अग्रवाल,कानपुर

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