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श्राद्ध पर्व -भारत की अनोखी परंपरा

भारत के अतीत की उप्
भारत के अतीत की उप्
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जय श्री राम हमारे ऋषि मुनिओ ने वैदिक परंपरा में श्राद्ध पर्व का प्राविधान करके एक अनूठी मिशाल  कायम की जिसमे लोग अपने बिछुडे हुए प्रियजनों को याद कट उनके प्रति कृतज्ञता प्रगट सके.!हिन्दू धर्म में मान्यता है की शरीर नष्ट हो जाने के बाद भी आत्मा अमर रहती है जो अपने किये हुए कार्यो को भोगने के लिए विभिन्न योनियो में विचरण करती है !पुण्य का फल स्वर्ग और पाप का नरक होता है जिसमे बहुत सी यातनाये भोगनी पड़ती है.!पुण्य की वजह से मनुष्य और देव योनी प्राप्त होती है !इन योनियो के बीच एक और योनी होती जिसे प्रेत योनी कहते है.पित्र योनी प्रेत् योनी से ऊपर पितर योनी में रहते है!!पितरो को तर्पण और श्राद्ध के लिए १६ दिन अश्विन के प्रतिपदा से आमवस्या के दिन तक माना जाता है और जिस तिथी को प्रियजन की मृत्यु होती उसदिन उसका श्राद्ध किया जाता लेकिन तर्पण १५ दिन तक होता यदि किसी के प्रियजन की मृत्यु पूणमाशी को हुई तब उसे भादो की पूणमाशी को तर्पण के साथ श्राद्ध करने पड़ती है!श्राद्ध का अधिकार पुत्र  भाई,पौत्र  प्रपोत्र,,महिलाओं को है.!श्रधा पूर्वक करने के कारन इसे श्राद्ध कहते है.इसमें तर्पण १५ दिन और श्राद्ध तिथि के दिन किया जाता है!तर्पण यदि विधि खुद नहीं मालूम हो तो क्ष्रेष्ट ब्राह्मणों के निर्देशन में करना चाइये.!तलाब,नदी या अपने घर में व्यवस्थानुसार जौ,तिल,कुश ,पवित्र वस्त्रो आदि सामग्री द्वारा पितरो को शांत और ,ऋषियो,सूर्य भगवान् को प्रसन्न करने के लिए लिया जाता है.!सन्यासी का श्राद्ध द्वादशी को,कुत्ते,सांप,आदि काटने या अकाल मृत्यु वालो का चौदवी को और यदि तिथि नहीं मालूम हो तो आमवस्या को करना चाइये.!श्राद्ध के लिए श्रेष्ट ब्राह्मण को बुलवाकर भोजन करवाना चाइये इसमें खीर,दूध दही जरूर होना चाइये.!भोजन के पहले ४ ग्रास गाय,कुत्ते,कौवे और अतिथि के लिए निकाल देने चाइये.!ब्राह्मण स्वस्तिवाचन और वैदिक मंत्र पढ़ कर गृहस्थ और  पितरो की शांति के लिए शुभकामनाये व्यक्त करे !घर में किया श्राद्ध पुण्य तीर्थो में किये से  ८ गुना अच्छा मन जाता!यदि आर्थिक परिस्तिथ वश ब्राह्मण को भोजन न कराया जा सके तो गो को पेट भर खाना खिला दे,नहीं तो एकांत जगह में सूर्या भगवान् के सामने दोनों हाथ उठाकर पितरो के शांति के लिए प्राथना कर ले.!श्राद्ध तर्पण के लिए चांदी के बर्तन,कुश,जौ,कला तिल,का विशेष महत्व है!माना जाता की कुश और तिल भगवान् विष्णु के शरीर से और चांदी भगवान् शिव के नेत्रों से आई है!महुआ,पलाश के पत्र ,अत्यंत पवित्र माने जाते है.गई का दूध,गंगाजल,तुलसी सफ़ेद और हलके रंग के फूल शुभ मने जाते.हो सके तो पूजा के स्थान को गोबर से लीप कर शुद्ध कर ले.!इन दिनों तम्बाकू पीना खाना,तेल की मालिश,उपवास,स्त्री सम्भोग,वर्जित है.पीतल कांसे के वर्तन शुद्ध मने जाते जबकि लोहे का अशुद्ध मन जाता है!यदि कई बच्चे अलग अलग रहते तो सबको अपने अपने घर में करना चाइये.!जिन पितरो की मुक्ति नहीं होती उनके लिए बिहार के गया में श्राद्ध करने से कहते है की पितरो की मुक्ति हो जाती है.!गया नामक एक परमवीर असुर था जिससे देवता लोग बहुत् परेशान थे.तब भगवान् विष्णु ने उसे गड़े से मारा इसीलिये इसे गया कहते है.और भगवान् विष्णु मुक्ति देने के लिए गदाधर के रूप में बैठे है भगवन ने इसे पुण्य क्षेत्र बना दिया यहाँ जो भी श्राद्ध,तर्पण,स्नान करेगा उसके पुरखे स्वर्ग ब्रह्लोक जायेंगे !ब्रह्माजी ने भी इसे पुण्य क्षेत्र मान कर यज्ञ किया था.भगवान् विष्णु के यहाँ दर्शन करने से तीनो ऋण से मुक्ति मिक जाती है!जो लोग अपने पित्रों के लिए श्राद्ध तर्पण करते उन्हें भी पुण्य मिलता जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता!ऐसा मन जाता की आमवस्या के दिन सभी पित्र अपने वंसज के द्वारा पिंड प्राप्त के लिए आते और यदि नहीं मिलता तो श्राप दे कर जाते लेकिन यदि पिंडदान मिलता  तो वंसज को सुख समृधि का आशीर्वाद दे कर जाते.इसलिए परिवार को तर्पण श्राद्ध जरूर करना चाइये.! मन जाता की पोटर लोग कौवे के रूप में नियति तिथि को घर में आते और यदि नहीं मिलता तो रुष्ट हो कर चले जाते है!गया के अलावा बद्रीनाथ जी में भी पितरो के लिए तर्पण और श्राद्ध करने का प्रावधान है जो किसी भी वक़्त हो सकता है.!ज्योतिष के अनुसार यदि तर्पण श्राद्ध टीक से नहीं होता तो “पित्र दोष “लग जाता जो बहुत कठिन होता है!महाभारत,वामन पुराण,मत्स्य पुराण,नारद पुराण में हरियाणा प्रदेश के “फल्गु तीर्थ”तर्पण श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध है जो कुरुक्षेत्र से २५ किलोमीटर कैथल जिले में है!याहन बहुत बड़ी संख्या में लोग आते है इसकी प्रसिद्धि भी गया की तरह है!आज कल श्री मद भगवत की ७ दिनों की कथा सुनने से भी पितरो की मुक्ति हो जाती.आजकल इन पित्र पक्ष में गया और फल्गु में श्रीमद भागवत की कथे होती और पितरो का तर्पण भी कराया जाता उनकी मुक्तो के लिए पोथी भी रखवा दी जाती इसका सजीव प्रसारण कई आध्यात्मिक चैनलों आस्था,संस्कार,आध्यत्म से होता है !इस तरह विभिन्न तरीको से १६ दिन विभिन्न कार्यक्रम देखे जा सकते और टीवी चैनलों से देखा जा सकता.इन दिनों गुजरात,राजस्थान,मालवा,निमाड़ आदि स्थानों पर १६ दिन एक पर्व मनाया जाता जिसे “संजा पर्व” कहते है कुंवारी कन्याये शाम की एक जगह इकट्ठा हो कर गोबर के माड़ने माँडती और संजा के गीत गाती आरती कर प्रशाद बाटती!हर दिन अलग अलग किस्म के माड़ने माड्ती  और नए गीत गाती.downloadimages (1)img1121006030_1_1

रमेश अग्रवाल,कानपुरdefaultdownload (4)images (6)images (9)images (10)images (11)

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