जय श्रीराम । छब्बीस वीर जवान ही थे , वो रोटी पाने वाले थे
कुछ दिन देश की सेवा कर, वो घर पर आने वाले थे कुछ की बहनों की शादी थी, कुछ खुद करने वाले थे कुछ मां से बात किये ही थे, कुछ खा कर करने वाले थे कुछ की बीवी पेट से थी , कुछ पापा बनके आये थे कुछ हुआ धमाका आगे से , कुछ पीछे से बारूद चलाकुछ हुए शहीद वहीं पर थे , कुछ आगे होने वाले थे कुछ की मांए ही रोई थी, कुछ की मांये सदमें में थी दिल्ली वालों रहम करों ,मत वहम करो अब रहम करो अब दो आदेश जवानों को, चीरो फाडों और खत्म करों अब दो आदेश जवानों को, धरती में इनको दफन करो अगर न कर पाओ फैसला ,तुम सुनागाछी प्रस्थान करो या पहन के चूडी तुम नाचो ,और दिल्ली को तुम मुक्त करो.
जय हिन्द….।। जय भारत.
रमेश अग्रवाल,कानपुर -whatsapps में मिला डाल दिया..
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